Wednesday, October 6, 2021

NCERT Class 9 Hindi Sparsh Chapter 1 Dukh Ka Adhikar Explanation, Notes and Question Answers.

NCERT Class 9 Hindi Sparsh Chapter 1 Dukh Ka Adhikar Explanation, Notes and Question Answers

लेखक परिचय:

 लेखक का नाम: यशपाल

जन्म: सन् 1903

जन्म स्थान : फ़िरोजपुर छावनी

लेखक के बारे में :- आरंभिक शिक्षा फ़िरोजपुर छावनी में , उच्च शिक्षा लाहौर में पाई । विद्यार्थी काल से क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े रहे । अमर शहीद भगत सिंह के  साथ मिल कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में भाग लिया । वर्ग-संघर्ष, मनोविश्लेषण और पैना व्यंग्य इनकी कहानियों की विशेषता है ।

प्रमुख रचनाएँ:

उपन्यास :-

देशद्रोही , पार्टी कामरेड, दादा कामरेड , झूठा सच , तेरी, मेरी और उसकी बात।

कहानी संग्रह— ज्ञानदान , तर्क का तूफ़ान , पिंजड़े की उड़ान . फूलों का कुर्ता और उत्तराधिकारी ।

आत्मकथा- सिंहावलोकन ।

पुरस्कार:- तेरी, मेरी और उसकी बात उपन्यास पर साहित्य अकादमी

मृत्यु: सन् 1976 को उनका स्वर्गवास  हो गया।

पाठ -1 दुःख का अधिकार

मनुष्यों की पोशाकें( dresses) उन्हें विभिन्न श्रेणियों (divisions) में बाँट देती हैं। प्रायः(often) पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार (rights)और उसका दर्जा (status) निश्चित करती है। वह हमारे लिए अनेक बंद दरवाजे खोल देती है, परंतु कभी ऐसी भी परिस्थिति आ जाती है कि हम जरा नीचे झुककर समाज की निचली श्रेणियों ( lower class)की अनुभूति(feelings) को समझना चाहते हैं। उस समय यह पोशाक ही बंधन और अड़चन( hindrance) बन जाती है। जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं, उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है

व्याख्या: लेखक का कहना है कि लोगों की पोशाकें उन्हें समाज के अलग- अलग स्तर में बाँट देती हैं । पहनावा समाज में हमारे अधिकारों और हमारे सामाजिक स्थिति को निश्चित करता है कई बार हमारा पहनावा हमारे लिए प्रगति के मार्ग खॊल देता है अतः हमारा पहनावा या पोशाक अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । किंतु कई बार ऐसी स्थिति भी आती है जब यह पोशाक ही हमारे लिए बंधन या रोक बन बन जाती है । ऐसा तब होता है जब हम अपने से नीचे के स्तर के व्यक्ति की अनुभूतियों को समझना चाहते हैं तब पोशाक एक बंधन बन रुकावट डालती है । हमें डर होता है कि यदि हम अपने से निचले स्तर के लोगों से बात्चीत करेंगे तो लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे ? लेखक ने इस बात की तुलना हवा में तैरती हुई कटी पतंग से की है । जिस प्रकार हवा कटी हुई पतंग को नीचे गिरने से रोकती है उसी प्रकार पोशाक भी हमें अपने स्तर से नीचले स्य्तर के व्यक्ति की भावनाओं को समझने से रोकती है । इस प्रकार लेखक ने पोशाक के माध्यम से समाज की मनःस्थिति को प्रकट किया है ।

बाज़ार में फुटपाथ पर कुछ खरबूजे (musk melons) डलिया में और कुछ जमीन पर बिक्री(sell) के लिए रखे जान पड़ते थे। खरबूजों के समीप एक अधेड़ उम्र की औरत बैठी रो रही थी। खरबूजे बिक्री के लिए थे, परंतु उन्हें खरीदने के लिए कोई कैसे आगे बढ़ता? खरबूजों को बेचनेवाली तो कपड़े से मुँह छिपाए सिर को घुटनों पर रखे फफक-फफककर रो (weeping bitterly)रही थी।

व्याख्या : लेखक बाजार में एक स्त्री को देखते हैं जो खरबूज़े बेच रही थी उसके कुछ खरबूज़े एक टोकरी पर और कुछ फुटपाथ पर थे। वह एक प्रौढ़ उम्र की स्त्री थी । वह जोर-जोर से रो रही थी इस लिए उसके खरबूज़े खरीदने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था ।

पड़ोस की दुकानों के तख्तों (woody planks)पर बैठे या बाजार में खड़े लोग घृणा से उसी स्त्री के संबंध में बात कर रहे थे। उस स्त्री का रोना देखकर मन में एक व्यथा-सी उठी, पर उसके रोने का कारण जानने का उपाय क्या था? फुटपाथ पर उसके समीप बैठ सकने में मेरी •पोशाक ही व्यवधान hindrance बन खड़ी हो गई।

व्याख्या : लेखक को स्त्री की यह स्थिति अजीब सी लगती है । आसपास के दुकानों के लोग स्त्री के बारे में घृणा से बातें कर रहे थे । उस स्त्री का रोना देख कर लेखक पीड़ा महसूस करते हैं किंतु उसके पास जा कर उसके दुःख को जानने में संकोच का अनुभव करते हैं । लेखक कहते हैं कि अच्छी पोशाक पहन कर उस स्त्री के हाल न जान सके । उनकी पोशाक उस स्त्री के समीप बैठ सकने में रुकावट बन गई ।

एक आदमी ने घृणा (Hatred) से एक तरफ थूकते हुए कहा, "क्या ज़माना है। जवान लड़के को मरे पूरा दिन नहीं बीता और यह बेहया (shameless) दुकान लगा के बैठी है। " दूसरे साहब अपनी दाढ़ी खुजाते हुए कह रहे थे, "अरे जैसी नीयत होती है। अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है। "

व्याख्या: एक आदमी ने उस स्त्री के लिए घृणा से थूकते हुए कहा देखो क्या जमाना आ गया है बेटे को मरे एक दिन पूरा भी नहीं हुआ और यह बेशर्म औरत यहाँ दुकान लगा कर बैठी है । उसके नज़र में उस औरत ने मानो बड़ा अपराध कर दिया हो । तभी दूसरा आदमी अपनी दाढ़ी खुजलाते हुए कहता है कि "अरे जैसी नीयत होती है। अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है। " वे दोनों उसे पैसों का लालची ठहरा रहे थे ।

सामने के फुटपाथ पर खड़े एक आदमी ने दियासलाई की तीली (match stick)से कान खुजाते हुए कहा, "अरे, इन लोगों का क्या है? ये कमीने लोग रोटी के टुकड़े पर जान देते हैं। इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई (husband -wife), धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।"

व्याख्या: लोग इतने पर ही न रुके । सामने की दुकान का आदमी गालियाँ देते हुए कहने लगा कि ये लोग रोटी के टुकड़े को ही सब कुछ मानते हैं । इनके लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण रोटी ही है । यहाँ पर "ये कमीने लोग" उन गरीब लोगों के लिए कहा गया जो दिन रात मेहनत कर किसी तरह अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं । लेखक इस कथन के द‍वारा गरीबों के प्रति समाज की असंवेदनशीलता प्रकट करना चाहते हैं ।

परचून की दुका ( grocery store) पर बैठे लाला जी ने कहा, "अरे भाई, उनके लिए मरे-जिए का कोई मतलब न हो, पर दूसरे के धर्म-ईमान का तो खयाल करना चाहिए। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और वह यहाँ सड़क पर बाज़ार में आकर खरबूजे बेचने बैठ गई है। हज़ार आदमी आते-जाते हैं। कोई क्या जानता है कि इसके घर में सूतक है। कोई इसके खरबूजे खा ले तो उसका ईमान-धर्म कैसे रहेगा? क्या अँधेर है! "

व्याख्या: तभी सामने के परचून की दुकान के दुकानदार ने ने कहा कि अगर इस महिला के लिए कोई मरे या जिए इसका कोई महत्त्व नहीं तो कम से कम उस को दूसरों के धर्म ईमान के बारे में सोचना चाहिए था क्योंकि किसी के मरने पर बारह दिन तक सूतक रहता है तो उस व्यक्ति का छुआ हुआ सामान नहीं खा सकते । अब वह बाज़ार में खरबूज़े बेच रही है । यदि किसी को उस स्त्री के पुत्र के निधन के बारे में पता न हो तो वह खरबूज़े खा लेगा और उसका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा । इस स्त्री ने अँधेर मचा रखा है अर्थात यह किसी परंपरा का पालन नहीं कर रही । लोगों ने उस स्त्री पर आक्षेप लगाए किंतु किसी को भी उस से सहानुभूति न थी और न कोई उस से इस कठिन परिस्थिति में भी खरबूज़े बचने के निर्णय लेने का असली कारण जानना चाहता था। लेखक यहाँ समाज की रूढ़ीवादी परंपराओं को प्रकट कर रहे हैं जहाँ परंपरा व्यक्ति और परिवार से अदहिक महत्त्वपूर्ण हो गई है ।

पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर पता लगा उसका तेईस बरस जवान लड़का था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती हैं। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर ज़मीन में कछियारी करके परिवार का निर्वाह करता था। खरबूज़ों की डलिया बाजार में पहुँचाकर कभी लड़का स्वयं सौदे के पास बैठ जाता, बैठ जाती। कभी लड़का परसों सुबह मुँह-अँधेरे बेलों में से पके खरबूजे चुन रहा था। गीली मेड़ की तरावट में विश्राम करते हुए एक साँप पर लड़के का पैर पड़ गया। साँप ने लड़के को डँस लिया।

व्याख्या : जब लेखक को उस औरत के बारे में जानने की इच्छा हुई तो लेखक ने वहाँ पास-पड़ोस की दुकानों से उस औरत के बारे में पूछा और पूछने पर पता लगा कि उसका तेईस साल का एक जवान लड़का था। घर में उस औरत की बहू और पोता-पोती हैं। उस औरत का लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर ज़मीन में सब्जियाँ उगाने का काम करके परिवार का पालन पोषण करता था। खरबूजो की टोकरी बाजार में पहुँचाकर कभी उस औरत का लड़का खुद बेचने के लिए पास बैठ जाता था, कभी वह औरत बैठ जाती थी। पास-पड़ोस की दुकान वालों से लेखक को पता चला कि लड़का परसों सुबह अँधेरे में ही बेलों में से पके खरबूजे चुन रहा था। खरबूजे चुनते हुए उसका पैर दो खेतों की गीली सीमा पर आराम करते हुए एक साँप पर पड़ गया। साँप ने लड़के को डँस लिया।

लड़के की बुढ़िया माँ बावली होकर ओझा को बुला लाई। झाड़ना-फूँकना हुआ। नागदेव की पूजा हुई। पूजा के लिए दान-दक्षिणा चाहिए। घर में जो कुछ आटा और अनाज था, दान-दक्षिणा में उठ गया। माँ, बहू और बच्चे 'भगवाना' से लिपट-लिपटकर रोए, पर भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला। सर्प के विष से उसकासब बदन काला पड़ गया था।

व्याख्या : एकमात्र युवा बेटे को साँप के काटने पर माँ लगभग पागल -सी ही हो गई और एक ओझा को बुला लाई । ओझा के द्वारा नागदेवता की पूजा करवाई गई। इस पूजा को करवाने के लिए भी थोड़ा धन चाहिए था । इसमें घर में मौजूद जो कुछ आटा या अनाज था लग गया । बाकि बचा हुआ ओझा को दान देने में खत्म हो गया । माँ , भगवाना की पत्नी और बच्चे सब भगवाना से लिपट कर रोए । किंतु भगवाना को बचा न सके। साँप के विष से भगवाना का शरीर काला पड़ गया । "भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।" वाक्य से भगवाना की मृत्यु और लाचार परिवार की मार्मिक स्थिति प्रकट की गई है। इस घटना के द्वारा समाज में फ़ैले अंधविश्वास और अज्ञान को प्रकट कर रहे हैं जहाँ उचित चिकित्सा के बिना एक युवक मर जाता है ।

जिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है, परंतु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जाए?
उसके लिए तो बजाज की दुकान से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके लिए
माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।

व्याख्या : समाज की कूरीतियों पर कटाक्ष करता हुआ यह वाक्य हृदय को छू लेने वाला है । "जिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है, परंतु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जाए? उसके लिए तो बजाज की दुकान से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।" यहाँ पर परिवार की आर्थिक दशा का उल्लेख तो हो ही रहा है साथ ही उन परंपराओं पर भी हथौड़ा मारा गया है जो मृत व्यक्ति को जीवित व्यक्ति से अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध कर देती हैं ।

भगवाना परलोक चला गया। घर में जो कुछ चूनी-भूसी थी सो उसे विदा करने
में चली गई। बाप नहीं रहा तो क्या, लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे।
दादी ने उन्हें खाने के लिए खरबूजे दे दिए लेकिन बहू को क्या देती? बहू का बदन
बुखार से तवे की तरह तप रहा था। अब बेटे के बिना बुढ़िया को दुअन्नी-चवन्नी
भी कौन उधार देता।

व्याख्या : भगवाना की मृत्यु होने पर घर में रखा हुआ जो कुछ भी धन था वह भी अंतिम संस्कार में खर्च हो गया । मरने वाला तो चला गया किंतु जीवित लोगों को तो भूख प्यास लगती ही है ।छोटे बच्चे भूख के मारे बुरी तरह रोने लगे । दादी ने उन्हें खाने के लिए खरबूज़े दिए किंतु आकस्मिक रूप से हुए पति वियोग में भगवाना की पत्नी बुखार से पीड़ित हो गई । उस के खाने के लिए तो अन्न चाहिए था । अब जब भगवाना नहीं रहा तो परिवार को उधार भी देने को कोई तैयार न था क्योंकि लोगों को लगता था कि जब कमाने वाला बेटा ही न रहा तो बुढ़िया उधार चुकता न कर पाएगी ।

बुढ़िया रोते-रोते और आँखें पोंछते-पोंछते भगवाना के बटोरे हुए खरबूजे डलिया
में समेटकर बाज़ार की ओर चली-और चारा भी क्या था?

बुढ़िया खरबूजे बेचने का साहस करके आई थी, परंतु सिर पर चादर लपेटे, सिर को घुटनों पर टिकाए हुए फफक-फफककर रो रही थी।

कल जिसका बेटा चल बसा, आज वह बाज़ार में सौदा बेचने चली है, हाय रे पत्थर-दिल!

व्याख्या – लेखक कहता है कि बुढ़िया खरबूजे बेचने का साहस करके बाजार तो आई थी, परंतु सिर पर चादर लपेटे, सिर को घुटनों पर टिकाए हुए अपने लड़के के मरने के दुःख में बुरी तरह रो रही थी। लेखक अपने आप से ही कहता है कि कल जिसका बेटा चल बसा हो, आज वह बाजार में सौदा बेचने चली आई है, इस माँ ने किस तरह अपने दिल को पत्थर किया होगा?

उस पुत्र वियोगिनी के दुःख का अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुःखी माता की बात सोचने लगा। वह संभ्रांत महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। उन्हें पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद पुत्र वियोग से मूर्छा आ जाती थी और मूर्छा न आने की अवस्था में आँखों से आँसू न रुक सकते थे। दो-दो डॉक्टर हरदम सिरहाने बैठे रहते थे। हरदम सिर पर बरफ रखी जाती थी। शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र-शोक से द्रवित हो उठे थे।

व्याख्या –अपने पुत्र को खोने वाली उस माँ के दुःख का अंदाजा लगाने के लिए लेखक पिछले साल उसके पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुःखी माता की बात सोचने लगा। वह बेचारी महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से ही नहीं उठ पाई थी। लेखक अपने पड़ोस में रहने वाली संपन्न परिवार की महिला के बारे में बताते हुए कहते हैं कि वे बार बार बेहोश हो जाती थीं । दो डॉक्टर सदा उनके सिरहाने पर बैठे रहते थे जब वे होश में होतीं थी तो उनकेआँसू रुकते नहीं थे सारे शहरवासियों को उनसे संवेदना थी । इन दोनों स्त्रियों की तुलना लेखक इस लिए कर रहे थे क्योंकि दोनों स्त्रियों को समान रूप से पुत्र वियोग का दुःख झेलना पड़ा । पुत्र खोने का दुःख सबको समान होता है । चाहे वह अमीर हो या गरीब । किंतु एक स्त्री को सम्पन्नता के कारण अपने दुख को प्रकट करने का अवसर मिला और उसके दुख को सबने अनुभव किया । वहीं विपन्नता के कारण दूसरी स्त्री के पास न तो दुःख मनाने का समय था न ही उसे अपने दुख को प्रकट करने का अवसर मिला । किसी को भी उस से कोई संवेदना न थी ।

जब मन को सूझ का रास्ता नहीं मिलता तो बेचैनी से कदम तेज़ हो जाते हैं
उसी हालत में नाक ऊपर उठाए, राह चलतों से ठोकरें खाता मैं चला जा रहा था
सोच रहा था

शोक करने , ग़म मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और ..... दुखी होने का भी एक अधिकार होता है ।

व्याख्या – समाज की इस दोहरी मानसिकता , दोहरे मापदंड , गरीबी -अमीरी के इस गहरे विभाजन से लेखक विचलित हो उठा और बेचैनी में तेज़ कदमों से चलते हुए आगे बढ़ने लगा । लेखक बेचैन हालत में नाक ऊपर उठाए चल रहा था और अपने रास्ते में चलने वाले लोगों से ठोकरें खाता हुआ चला जा रहा था और सोच रहा था कि शोक करने और ग़म मनाने के लिए भी इस समाज में सुविधाएँ चाहिए और… दुःखी होने का भी एक अधिकार होता है।

पाठ का सारांश ( Summary ):

दुःख का अधिकार "यशपाल "द्‍वारा लिखा गया लेख है , जिसकी शुरुआत उन्होंने पोशाक के बारे में बात करते हुए की है । लेखक ने आम आदमी की संकीर्ण सोच का परिचय देते हुए बताया है कि अच्छी पोशाक पहनने पर लोग किसी गरीब के दुख बँटाने पर संकोच महसूस करते हैं । इस लेख में दो छोटी कथाओं के द्वारा समाज के दोहरी सोच और मापदंड का परिचय दिया गया है । एक तरफ़ भगवाना की माँ जो अपने एक मात्र युवा पुत्र को साँप के द्वारा डसे जाने के कारण खो चुकी है । घर की माली हालत इतनी खराब है कि बीमार बहु और छोटे छोटे पौत्र जो भूख से बिलबिला रहे थे उनको खिलाने के लिए भी घर में कुछ नहीं है। इन परिस्थितियों में शोक में डूबी बूढी स्त्री किसी प्रकार साहस रख कर खरबूज़े बेचकर अपने परिवार का उदर भरना चाहती है , किंतु समाज के रूढ़िवादी लोग उसके दुख और परिस्थितियों को नज़रअंदाज़ करते हुए उस पर व्यंग्य करते हैं । उस पर उनका धर्म भ्रष्ट करने का आरोप लगाते हैं । यहाँ तक कि उसको धन का लालची बताते हैं । उस पर व्यंग्य करते हुए वह घोषित कर देते हैं कि गरीबों के लिए धन ही सर्वस्व है । इन परिस्थितियों में लेखक को अपने पड़ोस की एक संभ्रांत महिला की याद आती है , उसे भी पुत्र शोक हुआ था । वे पुत्र की मृत्यु के बाद वे अढाई मास तक पलंग से उठ भी न सकी थीं । बार बार उन्हें मूर्छा आ जाती थी। दो डॉक्टर उनके सिरहाने पर बैठे रहते थे और हरदम उनके सिर पर बरफ़ रखी जाती थीं । पूरा शहर उनके शोक से द्रवित हो उठा और हर जगह उनकी चर्चा थी । लेखक इन दोनों स्त्रियों की तुलना करते हुए करते हुए समझाना चाहते हैं कि पुत्र शोक का दुःख तो दोनों के लिए समान है , किंतु एक संपन्‍न परिवार की महिला को शोक मनाने का अवसर मिला और लोगों की सहानुभूति मिली , किंतु गरीब स्त्री को न तो अपने पुत्र की मृत्यु के शोक का अवसर मिला और न सहानुभूति । साथ ही उसे इन परिस्थियों में लोगों की घृणा का भी सामना करना पड़ा । इन दोनों कथाओं से लेखक बेचैन हो जाते हैं ।वे सभ्य समाज में गरीबों की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि शोक करने के लिए , ग़म मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और .... दुःखी होने का भी एक अधिकार होता है ।

शब्दार्थ:

पोशाक- Dress – वस्त्र, पहनावा
अनुभूति- Feelings – एहसास
अड़चन - obstacle – विघ्न, रुकावट,बाधा
अधेड़ - middle aged( b/w 40 yrs to 60 yrs) – आधी उम्र का, ढलती उम्र का
व्यथा - agony , pain – पीड़ा,दुःख
व्यवधान - disruption – बाधा ,रुकावट
बेहया- Shameless – बेशर्म , निर्लज्ज
नीयत - motive – इरादा,आशय
बरकत - Profit , good luck – वृद्धि, लाभ,  सौभाग्य
खसम - husband – पति
लुगाई - wife – पत्नी

परचून की दुकान- grocery store आटा ,दाल ,चावल आदि की दुकान।

सूतक A twelve days time period after death when the family of the dead is considered impure hence avoided to touch and eat with them – छूत, परिवार में किसी के मरने पर कुछ निश्चित समय तक परिवार के लोगों को न छूना।

कछियारी - growing vegetables- खेतों में तरकारी बोना।
निर्वाह Living – गुजारा

मेड़ weir - खेत के चारों तरफ़ मिट्टी डालकर बनाया हुआ घेरा, दो खेतों के बीच की सीमा

तरावट- wetness गीलापन, नमी, शीतलता, ठंडक

ओझा Exorcist - झाड़-फूक करने वाला ( मंत्र द्वारा इलाज करने वाला)

छन्नी –ककना -minor jewellary - मामूली गहना , जेवर ।

सहूलियत - facilities -सुविधा ।

प्रश्‍न अभ्यास

मौखिक

I.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए:

प्रश्न 1. किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?

उत्तर: किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें उसकी सामाजिक स्थिति या दर्जे (श्रेणी)का पता चलता है।

प्रश्न 2. खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था?

उत्तर: खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे इसलिए खरीदने नहीं आता था, क्योंकि वह कपड़े से  मुंह छुपाए हुए सिर को घुटनों पर रख फफक-फफककर रो रही थी।

प्रश्न 3. उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा ?

उत्तर: उस स्त्री को देखकर लेखक का हृदय पीड़ा से भर उठा और वह उसके दुख का कारण जानने के लिए बेचैन हो गया।

प्रश्न 4. उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?

उत्तर: उस स्त्री के बेटे की मृत्यु का कारण एक साँप के द्वारा डसा जाना  था। जब उस स्त्री का बेटा खरबूजे के खेत में बने हुए मेड़ पर खरबूज़े चुन रहा था, तभी किसी जहरीले साँप ने उसे डस लिया था।

प्रश्न 5.बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता?

उत्तर: उस बुढ़िया के परिवार में केवल उसका लड़का ही काम करता था। और उसके मरने के बाद लोगों को डर लगने लगा कि उनके पैसे वापस कौन देगा। इसलिए उसे कोई भी उधार नहीं देता था।

लिखित :

II.() निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए:

प्रश्न 1. मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है?

उत्तर: मनुष्य के जीवन में पोशाक का बहुत बड़ा महत्व है। पोशाक सिर्फ शरीर ढकने के काम नहीं आती बल्कि पोशाक समाज में मनुष्य का सामाजिक दर्जा भी तय करती है। हम जब कभी किसी व्यक्ति से मिलते हैं तो पहले उसकी पोशाक देखते हैं । पोशाक से ही मनुष्य की आर्थिक स्थिति पता चलती है। इस पोशाक से उसके अधिकार तय होते हैं और जीवन में आगे बढ़ने के लिए नए रास्ते भी खुल जाते हैं, किंतु कभी-कभी पोशाक लोगों की अनुभूतियों को समझने में बाधक भी बन जाती है।

प्रश्न 2 पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?

उत्तर: पोशाक हमारे लिए तब बंधन और अड़चन बन जाती है , जब हम अपने से नीचे दर्जे वाले के साथ उसका दुख बाँटते हैं। कभी कभी ऐसा होता है कि हम नीचे झुक कर समाज के निचले वर्ग के  दर्द को जानना चाहते हैं। ऐसे समय में हमारी पोशाक अड़चन बन जाती है क्योंकि अपनी अच्छी पोशाक के कारण हम झुक नहीं पाते हैं। हमें यह डर सताने लगता है कि अच्छे पोशाक में झुकने से आस -पास के लोग क्या कहेंगे? कहीं अच्छी पोशाक में झुकने के कारण हम समाज में अपना दर्जा न खो दें।

प्रश्न 3. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया ?

उत्तर: लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया क्योंकि वह फटे -पुराने कपड़े पहने फुटपाथ पर बैठी थी। लेखक एक अच्छी पोशाक पहने हुए थे, उन्हें समाज में बनाई अपनी प्रतिष्ठा के बिगड़ जाने का  डर था इसलिए उस गरीब और उपेक्षित स्त्री से चाहते हुए भी उसके रोने का कारण नहीं पूछ पाये |

प्रश्न 4. भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?

उत्तर: भगवाना के पास डेढ़ बीघा जमीन पर सब्जियां और ख़रबूज़े उगाकर बेचता था। इस प्रकार कछियारी करके अपने परिवार का निर्वाह करता था। कभी-कभी वह स्वयं दुकानदारी करता था तो कभी दुकान पर उसकी माँ बैठती थी।

प्रश्न 5. लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?

उत्तर: लडके की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने चल पड़ी क्योंकि लड़के के इलाज में बुढ़िया की सारी जमा पूँजी ख़त्म हो गई थी। जो कुछ बचा था वह लड़के के अंतिम संस्कार में खर्च हो गया। उसके बेटे के छोटे-छोटे बच्चे थे वह बहुत भूखे थे। उसकी बहू की तबीयत बहुत खराब थी। वह बुखार से पीड़ित थी । अब बच्चों की भूख मिटाने की जिम्मेदारी बुढ़िया पर आ गई थी इस लिए वह अपने बेटे भगवाना द्वारा ही तोडकर लाए हुए खरबूजे बेचने चल पड़ी ताकि कुछ कमा कर ला सके ।

प्रश्न 6. बुढ़िया के दुःख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?

उत्तर: बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद इसलिए आई कि उस संभ्रांत महिला के पुत्र की मृत्यु पिछले साल ही हुई थी। पुत्र के शोक में वह महिला ढ़ाई महीने(Two and half month) बिस्तर से उठ नहीं पाई थी। उसकी देखभाल के लिए  दो-दो डॉक्टर हरदम लगे रहते थ॥ सिर पर बरफ़ रखी जाती थी । शहर भर के लोगों में उस महिला के दुःख की चर्चा थी, जबकि यहाँ बाजार में सभी उस बुढ़िया के बारे तरह-तरह  में बातें  कर रहे थे। अमीर होने के कारण ।एक महिला के पास अपना दुख प्रकट करने के समय और सुविधा थी  पर, दूसरी ओर एक बुढ़िया जो बहुत ही गरीब थी उसके पास  दुख प्रकट करने के लिए न तो समय था और न हीं  सुविधा थी।

III.() निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए:

प्रश्न 1. बाज़ार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में तरह- तरह की बातें कर रहे थे। कोई कह रहा था कि बेटे की मृत्यु के तुरंत बाद बुढ़िया को बाहर निकलना ही नहीं चाहिए था। कोई कह रहा था कि सूतक की स्थिति में वह दूसरे का धर्म भ्रष्ट कर सकती थी इसलिए उसे नहीं निकलना चाहिए था। किसी ने कहा, कि ऐसे लोगों के लिए रिश्तों नातों की कोई अहमियत नहीं होती। वे तो केवल रोटी को अहमियत देते हैं। कोई उसे बेशर्म कह रहे थे और कई लोग तो उस पर थूक कर जा रहे थे। अधिकांश लोग उस स्त्री को नफरत की नजर से देख रहे थे। कोई भी उसकी दुविधा को नहीं समझ रहा था।

प्रश्न 2. पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?

उत्तर: पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को यही पता चला कि इसका बेटा ही एकमात्र घर में काम करने वाला था। वह कछियारी ( vegetable farming)करके अपने माँ के साथ बाजार में फल व सब्जी बेचता था। एक दिन पहले साँप के काटने से बुढ़िया के इकलौते जवान बेटे की मृत्यु हो गई । काफ़ी झाड़-फूंक करने के बाद भी वह बच न सका था । उनकी मृत्यु के अगले दिन, बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे और बहू बुखार से तड़प रही थी। जब किसी व्यक्ति ने बुढ़िया को पैसे उधार (loan) नहीं दिए तो पुत्र की मृत्यु के शोक को हृदय में दबाए बुढ़िया पुत्र के द्वारा ही तोड़े गए खरबूजों को बेचने  के लिये बाजार में आई थी।

प्रश्न 3. लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?

उत्तर: लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया ने जो उचित लगा, जो उसकी समझ में आया किया। उसने झटपट ओझा को बुलाया। ओझा झाड़-फूँक शुरु किया। घर में नागदेव की पूजा भी करवाई। पूजा के लिये दान दक्षिणा चाहिए ।  बुढ़िया ने घर में जो कुछ आटा और अनाज था, वह दान  दे दिया। परंतु उसका बेटा बच नही पाया।

प्रश्न 4. लेखक ने बुढ़िया के दुःख का अंदाजा कैसे लगाया ?

उत्तर:  लेखक को बुढ़िया के दुख का अंदाजा उसके पड़ोस में रहने वाली एक संभ्रांत महिला के पुत्र के शोक से हुआ। लगातार ढाई महीने तक दो डाक्टरों की निगरानी में रहने के बाद भी वह महिला हर पंद्रह मिनट में मूर्छित हो जाती थी। वह बिस्तर से उठ नहीं पाती थी और लगातार आँसू बहाती रहती थी। पुत्र के निधन का दुख अर्थ-भेद के आधार पर कम-ज्यादा नहीं होता। परंतु समाज ने निर्धन बुढ़िया को शोक मनाने का भी अधिकार न दिया था।

प्रश्न 5. इस पाठ का शीर्षकदुःख का अधिकारकहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस पाठ में मुख्य पात्र एक बुढ़िया है जो पुत्र शोक से पीड़ित है। उस बुढ़िया की तुलना एक अन्य संभ्रांत घर की स्त्री से की गई है जिसने ऐसा ही दर्द झेला था। लेखक इस तथ्य को महसूस करते हैं कि पुत्र शोक संपन्न अथवा विपन्न दोनों के लिए समान ही होता है । संभ्रांत परिवार की स्त्री ढ़ाई महीने तक पुत्र की मृत्यु का शोक से उबर न सकी थी। उसके शोक मनाने की चर्चा कई लोग करते थे। लेकिन बुढ़िया की गरीबी ने उसे पुत्र का शोक मनाने का भी मौका नहीं दिया। बुढ़िया को मजबूरी में दूसरे ही दिन खरबूजे बेचने के लिए घर से बाहर निकलना पड़ा। ऐसे में लोग उसे नफरत की नजर से ही देख रहे थे। कुछ लोग उस बूढ़ी स्त्री के लिए अपमान जनक शब्द भी बोल रहे थे । किसी को उसके प्रति सहानुभूति न थी ।जहाँ संभ्रांत स्त्री को संपन्नता के कारण शोक मनाने का पूरा अधिकार मिला ,वहीं दूसरी ओर  एक गरीब स्त्री इस अधिकार से वंचित रह गई। इसलिए इस पाठ का शीर्षक बिलकुल सार्थक है।

IV.() निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:

प्रश्न 1. जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देती उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।

उत्तर: यह कहानी समाज में फैले अंधविश्वासों और अमीर- गरीब के भेदभाव को उजागर करती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक अमीरों के अमानवीय व्यवहार और गरीबों की विवशता को दर्शाता है। लेखक के अनुसार जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देती, उसी प्रकार खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें अपने से नीचे हैसियत वालों से एकदम मिलने जुलने नहीं देती। उस समय यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन कर हमारे मानवीय व्यवहार प्रकट से  रोक देती है।

प्रश्न 2. इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।

उत्तर: जब बुढ़िया अपने पुत्र की मृत्यु के दूसरे दिन ही खरबूज़े बेचने फ़ुटपाथ पर बैठ गई किंतु उस समय भी शोक के कारण घुटनों में सिर दबाए रो रही थी तब किसी ने उसकी मज़बूरी नही जाननी चाही और एक आदमी कान में दियासलाई की तीली से खुजाते हुए यह वाक्य बोला कि इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है। गरीबों को दो वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से नसीब हो पाती है, इसलिए अपनी भूख मिटाने के लिए उसे रोज पैसा कमाने जाना पड़ता है, चाहे उसके घर में कितना मुसीबत क्यों न आ पड़े। लेकिन हमारे  समाज में प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक परंपराओं और रूढ़ियों का पालन करना पड़ता है। ऐसे में  गरीबों की मजबूरी को ना समझ कर समाज के कुछ लोग इस तरह के व्यंग्य करते है, और उनकी मजबूरी को उनका लालच सिद्ध करने की कोशिश करते है और ऐसे कटु वाक्य  कहने में भी लोग संकोच नहीं करते ।

प्रश्न 3. शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और …… दुखी होने का भी एक अधिकार होता है।

उत्तर: लेखक के अनुसार संभ्रांत महिला जो धनी थी उसके पास अपने शोक को प्रकट करने के लिए बहुत समय  और सहूलियत थी। लेकिन वहीं दूसरी ओर गरीब बुढ़िया जिसको अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए, अपने बेटे की मृत्यु होने के बाद दूसरे दिन ही काम करने जाना पड़ता है। यह सब यह दर्शाता है, कि गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए, क्योंकि दुःख के समय में भी इतना धन होना चाहिए, कि जिससे  कोई व्यक्ति अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण कर पाए। गरीब को तो रोटी कमाने की उलझन ही उसे दुख मनाने के अधिकार से वंचित कर देती है।

भाषा-अध्ययन

1.निम्‍नांकित शब्द समूह को पढ़ो और समझो--

(क) कङ्घा, पतङ्ग, चञ्चल, ठण्डा, सम्बन्ध

(ख) कंघा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंधा

(ग) अक्षुण्ण, सम्मिलित, दुअन्नी, चवन्नी, अन्न

(घ) संशय, संसद, संरचना, संवाद, संहार।

(ङ) अँधेरा, बाँट, मुँह, ईट, महिलाएँ, में, मैं

ध्यान दो कि ङ. ञ् ण् न् और म् ये पाँचों पंचमाक्षर कहलाते हैं। इनके लिखने की विधियाँ तुमने ऊपर देखीं इसी रूप में या अनुस्वार के रूप में। इन्हें दोनों में से किसी भी तरीके से लिखा जा सकता है और दोनों ही शुद्ध हैं। हाँ, एक पंचमाक्षर जब दो बार आए तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा; जैसे- अम्मा, अन्न आदि। इसी प्रकार इनके बाद यदि अंतस्थ य. र. ल, व और ऊष्म श, ष, स. ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा, परंतु उसका उच्चारण पंचम वर्णों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है; जैसे- संशय, संरचना में 'न्', संवाद में 'म्' और संहार में 'ङ्' ।

(ं) यह चिह्न है अनुस्वार का और (ँ) यह चिह्न है अनुनासिक का। इन्हें क्रमशः बिंदु और चंद्र-बिंदु भी कहते हैं। दोनों के प्रयोग और उच्चारण में अंतर है। अनुस्वार का प्रयोग व्यंजन के साथ होता है अनुनासिक का स्वर के साथ।

नीचे रंगीन अक्षर पंचमाक्षर हैं।

क ख ग घ
च छ ज झ
ट ठ ड ढ (ड़, ढ़)
त थ द ध
प फ ब भ
य र ल व
श ष स ह 
क्ष त्र ज्ञ

ङ. ञ् ण् न् और म् अनुस्वार व्यंजनों के साथ प्रयोग किए जाते है। नीचे दी पंक्तियों में इनका प्रयोग समझें।

(क) कङ्घा, पतङ्ग, चञ्चल, ठण्डा, सम्बन्ध

(ख) कंघा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंधा

कङ्घा --कंघा, पतङ्ग= पतंग, चञ्चल= चंचल ठण्डा=ठंडा, , सम्बन्ध= संबंध दोनों तरीके शुद्ध और मान्य हैं ।

जब कोई पंचमाक्षर एक साथ दो बार आता है तो वह अनुस्वार में नहीं बदलते उदाहरण= अक्षुण्ण, सम्मिलित, दुअन्‍नी , चवन्‍नी , अन्‍न

यदि अंतस्थ य. र. ल, व और ऊष्म श, ष, स. ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा, परंतु उसका उच्चारण पंचम वर्णों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है; जैसे- संशय, संरचना में 'न्', संवाद में 'म्' और संहार में 'ङ्' ।

( ँ ) चंद्रबिंदु वाले शब्द अनुनासिक हैं इनका उच्चरण अलग होता है और नाक से बोलने की प्रतीति होती है अनुनासिक का स्वर के साथ प्रयोग किए जाते है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए

उत्तर:

शब्दपर्याय
ईमानविश्वास, सच्चाई ,भरोसा
बदनकाया, शरीर , तन
अंदाजाअनुमान, आंकलन
बेचैनीपरेशानी, व्याकुलता, अकुलाहट ,अधीरता
गमदुःख, शोक
दर्जाश्रेणी, पदवी, दर्जा, स्तर, स्थिति
जमीनपृथ्वी, धरती, वसुधा ,भूमि
जमानायुग, काल,समय
बरकतइजाफा, वृद्धि, बढ़त , प्रगति

प्रश्न 3. निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्मों को छाँटकर लिखिए

उदाहरण: बेटा-बेटी।

उत्तर-
शब्द युग्म
पोता- पोती          खसम-लुगाई

दुअन्नी-चवन्नी        झड़ना-फूंकना     

धर्म-ईमान           दान-दक्षिणा         

 छन्नी- ककना         चूनी-भूसी

पास-पड़ोस           फफक-फफककर

प्रश्न 4. पाठ के संदर्भ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यांशों की व्याख्या कीजिए:

बंद दरवाजे खोल देना, निर्वाह करना, भूख से बिलबिलाना, कोई चारा होना, शोक से द्रवित हो जाना।

उत्तर: बंद दरवाजे खोल देना– अवसर मिलना - अच्छे व्यवहार को देखकर लोग प्रभावित हो जाते हैं। इस प्रभाव में आकर वे उस व्यक्ति के लिए सभी बंद दरवाजे खोल देते हैं।

निर्वाह करना– गुजारा करना -  गरीब लोगों का जीवन निर्वाह बहुत मुश्किल से होता है।


भूख से बिलबिलाना- भूख के कारण तड़पना-- खाना न मिलने के कारण भगवाना के बच्चे भूख से बिलबिला उठे।

कोई चारा होना: कोई उपाय न होना:- लंबे समय तक काम न मिलने के कारण मोहन के घर में अनाज का एक भी दाना न बचा । घर का सामान बेचने के अलावा  उनके सामने कोई चारा नहीं रह गया। ।

शोक से द्रवित होना– दुःख देखकर करुणा से पिघल जाना- भगवाना की माँ के दुःख  को देखकर लेखक  शोक से द्रवित हो गया ।

प्रश्न 5. निम्नलिखित शब्द-युग्मों और शब्द समूहों को अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
(
) छन्नी-ककना, अढाई-मास, पास-पड़ोस, दुअन्नी-चवन्नी, मुंह-अंधेरे, झाड़ना -फूंकना
(
) फफक-फफककर, बिलख-बिलखकर, तड़प-तड़पकर, लिपट-लिपटकर

उत्तर: (क) १. छन्नी-ककना- भगवाना को बचाने के लिए गरीब माँ ने अपने छन्नी-ककना तक बेच दिए।
२. अढाई-मास- हमारी परीक्षा अढाई-मास बाद शुरू होंगी ।
३. पास-पड़ोस- हमारे पास-पड़ोस के लोग बहुत ही अच्छे स्वभाव के हैं ।
४. दुअन्नी-चवन्नी- अब दुअन्नी-चवन्नी का जमाना नहीं रहा ।
५. मुंह-अंधेरे- वह मुंह-अंधेरे ही उठ जाता है।
६. झाड़-फूंक – साँप काटने पर झाड़-फूंक करने में समय बरबाद न कर किसी योग्य डॉक्टर के पास जाना चाहिए ।

(ख) १. फफक-फफककर- भूख के मारे भगवाना के बच्चे फफक-फफककर रो रहे थे।
२. बिलख-बिलखकर: चोट लगते ही बच्चा बिलख-बिलखकर रोने लगा।
३. तड़प-तड़पकर : बंगाल में अकाल के दौरान सैंकड़ों लोग भूख से तड़प-तड़पकर मर गए।
४. लिपट-लिपटकर : पति के मृत शरीर को देख स्त्री उससे लिपट-लिपटकर रोने लगी ।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए-
(क) 1. लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे।
2. उसके लिए तो बजाज की दुकान से कपड़ा लाना ही होगा।
3. चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
(ख) 1. अरे जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी ही बरकरत देता है।
2, भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।
उत्तर-
(क) 1. मज़दूर सुबह उठते ही शहर की ओर चल पड़े।
2. इस सप्ताह बच्चे की वर्दी लानी ही होगी।
3. चाहे इलाज के लिए खेती-बाड़ी ही क्यों न बेचना पड़े।
(ख) 1. अरे जैसी मेहनत करोगे वैसे ही परिणाम पाओगे।
2. उसका भाग्य जो एक बार बदला तो फ़िर उसने पलट कर पीछे न देखा ।

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