Thursday, June 9, 2022

स्मृति (संचयन पाठ 2) class 9th CBSE

 स्मृति 

(संचयन भाग १  पाठ २)

 

1. भाई के बुलाने पर घर लौटते समय लेखक के मन में किस बात का डर था?

उत्तर:- जब लेखक झरबेरी से बेर तोड़ रहा था तभी एक आदमी ने पुकार कर कहा कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं, शीघ्र चले आओ। यह सुनकर लेखक घर की ओर लौटने लगा। पर लेखक के मन में भाई साहब की मार का डर था। इसलिए वह सहमा-सहमा जा रहा था। उसे समझ में नहीं रहा था कि उससे कौन-सा कसूर हो गया। उसे आशंका थी कि कहीं बेर खाने के अपराध में उसकी पेशी हो रही हो। वह अज्ञात डर से डरते-डरते घर में घुसा।


2. मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में ढेला क्यों फेंकती थी?

उत्तर:- मक्खनपुर पढ़ने जाने वाले बच्चों की टोली पूरी वानर टोली थी।  बच्चों  में बाल सुलभ चंचलता तो होती ही है उन बच्चों को पता चल गया था कि कुएँ में साँप रहता है। लेखक ढेला फेंककर साँप से फुसकार करवा लेना बड़ा काम समझता था। बच्चों में ढेला फेंककर फुसकार सुनने की आदत सी हो गई थी। कुएँ में ढेला फेंककर  साँप की आवाज़  सुनने की लालसा उनके मन में रहती थी।


3. ‘साँप ने फुफकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नहीं, यह बात अब तक स्मरण नहीं’ – यह कथन लेखक की किस मनोदशा को स्पष्ट करता है?

 

उत्तर:- यह कथन लेखक की बदहवाश मनोदशा को प्रकट करता है ।जैसे ही लेखक ने टोपी उतारते हुए कुएँ में ढेला फ़ेंका , वैसे ही टोपी के नीचे दबी चिट्ठियाँ चक्कर काटती हुई कुएँ में गिर गई। इस बात से लेखक इतना घबराया कि उसने झपट्टा  मार कर चिट्ठियाँ पकड़ने की कोशिश की, किंतु चिट्ठियाँ उसकी पकड़ से बाहर हो चुकी थी। उनको पकड़ने की घबराहट में खुद लेखक भी कुएँ में गिरते-गिरते बचा । इसी घटनाक्रम के कारण लेखक को यह ध्यान ही नहीं रहा कि कुएँ में ढेला गिरने  परसाँप ने फुफकार मारी या नहीं, ढेला उसे लगा या नही |


 

4. किन कारणों से लेखक ने चिट्ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया?

उत्तर:-  लेखक ने अपनी जान जोखिम में डालते हुए , बड़े भाई साहब की लिखी हुई चिट्ठियाँ कुएँ से बाहर निकालने का निर्णय लिया । इसका कारण यह था कि बचपन में वे झूठ बोलना जानते ही नहीं थे। सच बोलने पर रुई की तरह पिटाई होने का डर  था । पिटाई की बात सोच कर ही लेखक का शरीर तो क्या , मन भी काँप जाता ।  उधर शाम भी  ढलने लगी थी ।   चिट्ठियों को सु्रक्षित डाक खाने में डालना लेखक अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते थे । इसके अतिरिक्त लेखक ने अपने बचपन में बहुत से साँप मारे थे और साँप मारना वे अपने बाएँ हाथ का खेल समझते थे । इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए लेखक ने कुएँ में उतर कर चिट्ठियाँ निकालने का निर्णय लिया।


 

5. साँप का ध्यान बाँटने के लिए लेखक ने क्या-क्या युक्तियाँ अपनाई?

उत्तर:- साँप का ध्यान बाँटने के लिए लेखक ने निम्नलिखित युक्तियाँ अपनाई
1.
उसने साँप के ऊपर कुएँ की भुरभुरी मिट्टी डाली , जिससे साँप  का ध्यान उस तरफ़ हो गया

2. कुएँ मे जगह कम होने के कारण लेखक ने डंडे से साँप को दबाने का ख्याल छोड़ दिया।
3.
उसने साँप का फन पीछे होते ही अपना डंडा चिट्ठियों की ओर कर दिया और लिफाफा उठाने की चेष्टा की।
4.
डंडा लेखक की ओर खीच आने से साँप का आसन बदल गया और  मौका पाते ही लेखक ने तुरंत लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिए और उन्हें अपनी धोती के छोर में बाँध लिया।

 


 

 

6. कुएँ में उतरकर चिट्ठियों को निकालने संबंधी साहसिक वर्णन को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर:- चिट्ठियाँ सूखे कुएँ में गिर पड़ी थीं। कुएँ में साँप था। कुएँ में उतरकर चिट्ठियाँ लाना बड़ा ही साहस का कार्य था। लेखक ने इस चुनौती का स्वीकार किया। लेखक ने पाँच धोतियों  और कुछ रस्सियों को जोड़कर  रस्सी बनाई और उसके सिरे पर डंडा बाँधा और उस  सिरे को कुएँ में डालकर उसके दूसरे सिरे को कुएँ के चारों ओर घुमाने के बाद गाँठ लगाकर अपने छोटे भाई को पकड़ा दिया। लेखक इसी धोती के सहारे कुएँ में उतरा। जब वह धरातल के चार-पाँच गज उपर था, उसने साँप को फन फैलाए देखा। वह कुछ हाथ ऊपर धोती पकड़े लटका रहा ताकि वह उसके आक्रमण से बच जाए।

साँप को धोती पर लटककर मारना संभव नहीं था और डंडा चलाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी। उसने डंडे से चिट्ठियों को खिसकाने का प्रयास किया कि साँप डंडे से चिपक गया। साँप का पिछला हिस्सा लेखक के हाथ को छू गया। लेखक ने डंडा फेंक दिया। डंडा लेखक की ओर खीच आने से साँप का आसन बदल गया और लेखक ने तुरंत लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिए और उन्हें अपनी धोती के छोर में बाँध लिया

 


7. इस पाठ को पढ़ने के बाद किन-किन बाल-सुलभ शरारतों के विषय में पता चलता है?

उत्तर:- इस पाठ को पढ़ने के बाद लेखक की अनेक  बाल-सुलभ शरारतों के विषय में पता चलता हैजैसे  वे  झरबेरी के बेर तोड़कर ने  खाने  का आनंद लेते हैं। स्कूल जाते समय रास्ते में शरारतें करते हैं।
बड़ों से छिपकर कठिन एंव जोखिम पूर्ण कार्य करते हैं। हैं।कुएँ मे अपनी आवाज़ की प्रतिध्वनि सुन कर खुश होते है कुएँ में ढेला फेंककर खुश होते हैं। स्कूल जाते समय आम तोडकर खाते थे।  गलत काम करने के बाद सज़ा मिलने से डरते, किंतु फ़िर भी अपनी अनेक  बाल-सुलभ शरारतों से बाज नहीं आते।


8. ‘मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उलटी निकलती हैं’- का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- इस कथन का आशय है कि मनुष्य हर स्थिति से निपटने के लिए तरह-तरह के अनुमान लगता है और भावी योजनाएँ बनाता है। परंतु उसकी सारी योजनाएँ सफल नहीं होती। उसे कभी सफलता मिलती है तो कभी विफलता। इससे कई बार मनुष्य निराश हो जाता है। कभी कभी तो उसकी योजनाएँ एकदम उलटी और मिथ्या साबित हो जाती हैं , जैसे कि पाठ के  ग्यारह वर्षीय लेखक के साथ हुआ। वे बड़े आत्मविश्वास के साथ कुएँ में उतर कर साँप को मारने और चिट्ठियाँ उठा कर लाने की योजना बनाते हैं , किंतु कुएँ  में उतरते ही उनकी सारी योजना धरी रह जाती हैं। कुएँ में  साँप को मारने के लिए डंडा घुमाने की जगह नहीं थी । साँप फ़न उठाये लहरा रहा था। ऐसी स्थिति में लेखक का अनुमान गलत साबित हुआ और  उनकी पूर्व निर्धारित योजना असफ़ल हो गई ।  बाध्य होकर लेखक को तुरंत नई  योजना बनानी पड़ी और अपनी सूझ-बूझ से वे चिट्ठियाँ वापस लाने में सफ़ल हुए।


 

9. ‘फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है’ – पाठ के संदर्भ में इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है  इस पंक्ति का आशय है कि मनुष्य तो कर्म करता है, पर उसे फल देने का काम ईश्वर करता है। मनचाहे फल को पाना मनुष्य के बस की बात नहीं है। यह तो उस शक्ति पर ही निर्भर करता है जो फल देती है। इस पाठ के लेखक ने कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने के तरह-तरह के अनुमान लगाए, योजनाएँ बनायीं और उसमे फेर-बदल भी करना पड़ा, अंततः उसे सफलता मिली। इस पूरे घटनाक्रम मे  कुछ क्षण ऐसे भी आए जब लेखक की जान को भी खतरा था ,किंतु वे उस खतरे की परवाह किए बिना अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहे । इस प्रकार बिना किसी दुर्घटना के सुरक्षित वापस आने पर वह किसी अदृश्य शक्ति के प्रति नतमस्तक हो गए। इस प्रकार लेखक ने अपने जीवन की सुरक्षा के लिए किसी ईश्वरीय शक्ति की सत्ता को स्वीकार किया।    

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