कविता: इतने ऊंचे उठो
इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन
देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से,
सिंचित' करो धरा, समता की भाव वृष्टिं से।
जाति-भेद की, धर्म-वेश की
कोले-गोरे रंग-द्वेष को
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है ॥
नए हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो
नई तूलिका से चित्रों के रंग उभारों।
नए राग को नूतन स्वर दो
भाषा को नूतन अक्षर दो
युग की नई मूर्ति-रचना में
इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है ॥
लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है
जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है।
तोड़ो बंधन, रुके न चिंतन
गति, जीवन का सत्य चिरंतन
धारा के शाश्वत प्रवाह में
इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है ॥
चाह रहे हम इस धरती को स्वर्ग बनाना
अगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लाना।
सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे
सब हैं प्रतिपल साथ हमारे
दो कुरूप को रूप सलोना
इतने सुंदर बनो कि जितना आकर्षण है ॥
- द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
कविता ’इतने ऊँचे उठो’ का सप्रसंग भावार्थ:
पद 1: इतने ऊँचे उठो ……………….. मलय पवन है॥
प्रसंग: प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ’गुँजन’ से ली गई हैं । इस कविता का शीर्षक ’इतने ऊँचे उठो’ है। इस कविता के कवि ’श्री द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी’ है।प्रस्तुत पंक्तियों में, सभी भेदभावों से ऊपर उठकर समाज में समानता का भाव जगाने की बात कही गई है।
अर्थ: प्रस्तुत पद्य पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हमें नए समाज निर्माण में अपनी नई सोच को जाति, धर्म, रंग-द्वेष आदि जैसे भेदभावों से ऊपर उठकर सभी को समानता की दृष्टि से देखना चाहिये। जिस प्रकार वर्षा सभी के ऊपर समान रूप से होती है उसी प्रकार हमें भी सभी के साथ समान रूप से पेश आना चाहिए। हमें नफरत की आग को समाप्त कर समाज में शीतल हवा की तरह सुख- शांति लाने का प्रयत्न करना चाहिए।
पद 2 :नये हाथ से, …………………. जितना स्वयं सृजन है॥
प्रसंग: प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ’गुँजन’ से ली गई हैं । इस कविता का शीर्षक ’इतने ऊँचे उठो’ है। इस कविता के कवि ’श्री द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी’ है।प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समाज में मौलिक कार्य करने और नव निर्माण करने का संदेश दिया है ।
अर्थ: इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि नए समाज के निर्माण में हमें आगे बढ़कर अपनी कल्पनाओं को आकार देकर उन्हे वास्तविक जीवन में लाने का प्रयत्न करना चाहिए। जिस प्रकार कोई कलाकार अपनी कूँची से अपने चित्रों में रंग भरता है, और जिस प्रकार संगीतकार अपने नए राग में स्वरों को पिरोता है, उसी प्रकार हमें भी अपने समाज को नया रूप देने के लिए सृजनात्मक बनना होगा और सृजन को हमें अपने अंदर मौलिक रूप से ग्रहण करना होगा।
पद3: लो अतीत से उतना ……………… जितना परिवर्तन है।
प्रसंग: प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ’गुँजन’ से ली गई हैं । इस कविता का शीर्षक ’इतने ऊँचे उठो’ है। इस कविता के कवि ’श्री द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी’ है। प्रस्तुत पंक्तियों में भूतकाल की कुप्रथाओं को त्यागने और अच्छी बातों को ग्रहण करने का संदेश दे कर विकास करने को कहा है।
अर्थ: कवि कहते हैं कि हमे अतीत की कुप्रथाओं को छोड़कर केवल अच्छी बातों को ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि ये अच्छी घटनाएँ ही हमारे भविष्य निर्माण में हमारे काम आएँगी जबकि पुरानी परंपराएँ हमें सदैव पीछे की ओर ही खींचेंगी, इनसे हमारा विकास अवरुद्ध होगा। कवि कहते हैं कि जिस तरह परिवर्तन सदैव होता रहता है उसी प्रकार हमें भी सभी पुरानी परंपराओं के बंधनों को तोड़कर हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए,क्योंकि आगे बढ़ना ही जीवन है।
पद4: चाह रहे हम इस………………… जितना आकर्षण है॥
प्रसंग: प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ’गुँजन’ से ली गई हैं । इस कविता का शीर्षक ’इतने ऊँचे उठो’ है। इस कविता के कवि ’श्री द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी’ है। प्रस्तुत पंक्तियों में, सभी भेदभावों से ऊपर उठकर समाज में समानता का भाव जगाने की बात कही गई है।
अर्थ: कवि कहते हैं कि हम धरती को स्वर्ग की तरह सुंदर बनाना चाहते हैं और और यदि कहीं स्वर्ग है तो उसे धरती पर लाना चाह्ते हैं ।सूरज , चन्द्र , चाँदनी और तारे हर क्षण हमारे साथ हैं ।कवि कहते हैं कि रूढ़िवादी परंपराओं की जकड़न से हट कर युवाओं को नई सोच को बढ़ावा देना चाहिए । जिससे परिवर्तन की ऐसी धारा बहेगी कि धरती स्वर्ग समान हो जाएगी ।
मौखिक प्रश्न:
प्रश्न क: संसार किन ज्वालाओं में जल रहा है।
उत्तर: संसार विभिन्न तरह के भेदभाव की ज्वालाओं में जल रहा है ।
प्रश्न ख: कविता में किन बंधनों को तोड़ने की बात की गई है?
उत्तर: रूढ़िवादी परंपराओं के बंधन तोड़ने की बात की गई है
प्रश्न ग: युग की नई मूर्ति रचना का क्या अर्थ है?
उत्तर: दुनिया में विकास के लिए परिवर्तन लाना ही युग की नई मूर्ति रचना है।
लिखित प्रश्न :
प्रश्न क:ज्वालाओं से जलते जग में मलय पवन की तरह बहने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर : जिस प्रकार मंद-मंद बहने वाली हवा तपन(गर्मी) को शांत करती है , उसी प्रकार हम भी नए प्रगतिशील विचारों के शीतल झोंकों से जाति-भेद, रंग-द्वेष जैसी रुढिवादी परंपराओं की तपन से झुलसते समाज की प्रेम की शीतलता प्रदान करें
प्रश्न ख:मौलिकता और सृजन का क्या संबंध है?
उत्तर: मौलिक विचार ही उत्तम रचना का साधन बनते हैं किसी का अनुसरण या नकल करके हम उसकी अनुकृति तो बना सकते हैं किन्तु कुछ नवीन नहीं बना सकते । मौलिकता के द्वारा ही नया सृजन संभव है ।
प्रश्न ग:कवि अतीत से किस पोषक को लेने की बात कह रहा है ?
उत्तर:कवि अतीत से वह पोषक लेने की बात कर रहा है जो हमारी सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा है वह अतीत से उन परंपराओं को आगे ले जाने को कह रहा है जिन पर हम गर्व करें और जो हमारी प्रगति में सहायक हो।
प्रश्न घ.समाज में परिवर्तन कैसे आएगा ?
उत्तर: समाज में परिवर्तन नई विचारधारा से आएगा । नई सोच वाले प्रगतिशील युवाओं के प्रयासों से संसार रूढ़िवादी परम्पराओं की जकड़न से मुक्त होगा । इस परिवर्तन से धरती स्वर्ग जैसी सुंदर हो जाएगी ।
आशय स्पष्ट कीजिए :
पंक्ति – सिंचित करो धरा समता की भाव वृष्टि से
आशय : धरती पर गोरे काले , जाति-पाँति और धर्म के आधार पर भेद-भाव न रहे ।सभी एक दूसरे को समान भाव से देखें
पंक्ति – जीर्ण –शीर्ण का मोह मृत्यु का द्योतक है
आशय : पुराने का मोह प्रगति में बाधा डालता है अगर हम पुरानी और महत्वहीन परंपराओं से ही जुड़े रहेंगे तो जीवन की गतिशीलता नहीं रहेगी और गतिहीन समाज मृत-समान ही है ।
पठित पद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर :
चाह रहे हम इस धरती को स्वर्ग बनाना
अगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लाना।
सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे
सब हैं प्रतिपल साथ हमारे
दो कुरूप को रूप सलोना
इतने सुंदर बनो कि जितना आकर्षण है ॥
प्रश्न i. इन पंक्तियों में "हम" किसके लिए आया है?
उत्तर: ’हम’ देश के युवा नागरिकों के लिए आया है ।
प्रश्न ii. किस बात की बात की जा रही है?
धरती को स्वर्ग बनाने की चाह की जा रही है ।
प्रश्न iii. सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे के साथ होने का अर्थ क्या है?
उत्तर: इसका अर्थ है समस्त प्रकृति का साथ होना।
प्रश्न iv. दो कुरूप को रूप सलोना _ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर: कुप्रथाओं से कुरूप समाज में सुधार लाकर सुंदर बनाने की बात कही है ।
भाषा ज्ञान :
1. दिए गए पर्यायवाची कविता से चुनकर लिखिए:
धरा – धरती
आकाश – गगन
संसार- दुनिया
वायु- पवन
ठंडा- शीतल
वर्षा- वृष्टि
2. विलोम शब्द लिखिए –
स्वर्ग-नरक
कुरूप-सुरूप
आकर्षण- विकर्षण/ प्रतिकर्ष
नूतन – पुरातन
जीवन – मृत्यु
समता- विषमता
वर्तमान – अतीत
मौलिक – कृत्रिम
3. तद्भव शब्द के तत्सम रूप लिखिए :
सूरज- सूर्य
चाँद – चंद्रमा
ऊँचा- उच्च
हाथ –हस्त
दुनिया- विश्व
गाँव- ग्राम
5. दिए गए शब्दों से विशेषण बनाएँ –
चिंतन – चिंतित
प्रवाह – प्रवाहित
स्वर्ग - स्वर्गिक / स्वर्गीय
आकर्षण – आकर्षित
रचना – रचित
गति - गतिशील
6. संज्ञा शब्दों के लिए आए विशेषण कविता से चुनकर लिखें –
अक्षर – नूतन
जग - जलता
गगन - ऊँचा
प्रवाह – शाश्वत
रूप – सलोना
सत्य - चिरंतन
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