अर्थ - बकवास करना , फालतू की बातें कर परेशान करना , उबाऊ बातें करना-
वाक्य प्रयोग 1. - इरा सुबह से ही मेरा सिर खा रही है।
वाक्य प्रयोग 2 . अब अगर तुमने मेरा सिर खाना बंद न किया तो मैं घर छोड़ कर चला जाऊँगा।
सिर खपाना-
अर्थ - व्यर्थ के काम में दिमागी मेहनत करना, ऐसा मेहनत का काम करना जिस से मस्तिष्क थक जाए पर कोई उचित परिणाम न निकले।
वाक्य प्रयोग 1. सुबह से मैं इस सवाल पर सिर खपा रहा हूँ पर इसका हल ही नहीं निकल रहा।
वाक्य प्रयोग 2 . हम सब यहाँ तुम्हारी समस्या पर सिर खपा रहे हैं और तुम हो कि मॉल में मज़े कर रहे हो!
अपना सिर ओखली में देना / ऊखल में सिर देना-
अर्थ - जान बूझ कर मुसीबत लेना, जोखिम लेना
वाक्य प्रयोग 1. - जब रामेश्वर इस प्रोजेक्ट को करने को तैयार ही बैठा तो तुम्हें बीच में बोल कर अपना सिर ओखली में डालने की क्या जरूरत थी।
वाक्य प्रयोग 2 . पुलिस जब दूसरों से चोरी के बारे में पूछताछ कर रही थी तो असद ने बीच में जवाब देने शुरू कर दिए। पुलिस को लगा कि असद चोरी के बारे में बहुत कुछ जानता है। अब पुलिस उसके पीछे पड़ गई है। भई जब वह जानता ही न था तो जानबूजकर अपना सिर ओखली में क्यों देना था?
अपने सिर लेना
अर्थ - जिम्मेदारी लेना
वाक्य प्रयोग 1. राम को सारा काम अपने सिर लेने की आदत है । वह दूसरे पर भरोसा ही नहीं कर पाता।
वाक्य प्रयोग 2 . आखिर
मौत सर पर खेलना
अर्थ - भारी संकट से घिरा होना।
वाक्य प्रयोग 1. पीछे हटता तो बड़ी खाई थी और आगे भेड़िए मुँह फ़ाड़े ताक पर थे। ऐसा लग रहा था मानो मौत सिर पर खेल रही हो।
वाक्य प्रयोग 2 .रावण के सिर पर मौत खेल रही थी इसीलिए वह सीता को चुरा लाया।
सिर पर नंगी तलवार लटकना-
अर्थ जान का खतरा होना , भय बना होना।
वाक्य प्रयोग 1. भाई साहब के गुस्से को देखकर मुझे लगता मानो सिर पर नंगी तलवार लटक रही हो।
वाक्य प्रयोग 2 . परीक्षा के दिन ऐसे मालूम होते हैं मानो सिर पर नंगी तलवार लटक रही हो।
सेहरा सिर बँधना
अर्थ श्रेय प्राप्त होना।
वाक्य प्रयोग 1. गीता, मोहन और कुलदीप तीनों ने इस प्रोजेक्ट पर बहुत मेहनत की थी किंतु बेहतर काम का सेहरा उनके बॉस को मिल गया।
वाक्य प्रयोग 2 . कुछ लोग काम तो कुछ नहीं करते किंतु सब करे धरे का सेहरा खुद के सिर बँध लेने में माहिर होते हैं।
मियाँ की जूती मियाँ का सिर
अर्थ :अपना अहित स्वयं करना।
वाक्य प्रयोग 1. जिन तर्कों से केजरीवाल भाजपा पर आरोप लगा रहा था अब उन्हीं बातों का प्रयोग कर लोग उसकी मज़ाक बना रहे हैं । इसे ही कहते हैं मियाँ की जूती मियाँ के सिर ।
वाक्य प्रयोग 2 . जिन नियमों की आड में सब इंस्पेक्टर लोगों से पैसे वसूल कर भ्रष्टाचार कर रहा था उन्हीं में अब खुद फ़ँसकर कोर्ट के चक्कर काट रहा है। आखिर मियाँ की जूती मियाँ के सिर पड़ ही गई।
सिर मढ़ना
अर्थ : आरोप लगाना
वाक्य प्रयोग 1. कुछ कर्मचारी बहुत चालाक होते हैं । वे हर चीज का सेहरा तो खुद के सिर बाँध लेते हैं लेकिन गलतियाँ दूसरे के सिर मढ़ देते हैं।
वाक्य प्रयोग 2 . वैसे तो कोमल और गीता बहिनें हैं किंतु जब भी कोई गलती होती है तो कोमल उस गलती को अपनी बहिन गीता के सिर मढ़ देती है।
सिर आँखों में बैठाना
अर्थ : बहुत अधिक सम्मान करना, किसी वस्तु को सम्मान और विनम्रता पूर्वक ग्रहण करना
वाक्य प्रयोग 1. आप के हर आदेश को हम सिर आँखों पर बैठाए
वाक्य प्रयोग 2 .
सिर चढ़ाना
अर्थ : अनुपयुक्त व्यक्ति को अत्यधिक महत्व देना। अनावश्यक महत्त्व देकर बिगाड़ना। नम्रता न सिखाना।
वाक्य प्रयोग 1. बच्चों को ज्यादा सिर चढ़ाने से वे बड़ों का आदर नहीं करते।
वाक्य प्रयोग 2 . मैनेजर ने अपने कर्मचारियों को इतना सिर चढ़ा लिया कि अब वे उसी की बात नहीं मान रहे।
सिर धूनना
अर्थ : पछताना, पश्चाताप करना।
वाक्य प्रयोग 1. समय पर मेहनत न करने और बाद में सिर धूनने से कोई लाभ नहीं।
वाक्य प्रयोग 2 . जब लोग सुकेश के पिता से उसकी शिकायत करते थे तब तो उन्होंने कोई ध्यान न दिया । अब सुकेश गंदी सोहबत में पड़कर नशे का आदी हो गया है तो उसके पिता अपना सिर धून रहे हैं ।
सिर की बाज़ी लगाना
अर्थ : जान की परवाह न करना ,
वाक्य प्रयोग 1. भारतीय सिपाही देश की खातिर अपने सिर की बाजी लगा देते हैं।
वाक्य प्रयोग 2 .जब तीन बच्चे आग में घिर गए तो माँ ने अपने सिर की बाज़ी लगाकर उन्हें बचा लिया।
सिर छिपाना
अर्थ : रहने के लिए आश्रय ढूँढ़ना,
वाक्य प्रयोग 1. गरीब लड़की सिर छिपाने के लिए दर-दर भटक रही है।
वाक्य प्रयोग 2 . अब उस कुख्यात अपराधी के पीछे पुलिस पड़ी है तो वह सिर छिपाने के लिए दर-दर भटक रहा है।
सिर नीचा करना/ सिर झुकाना
अर्थ लज्जित होना , शर्मिंदा होना
वाक्य प्रयोग 1. बच्चों की गलत हरकतों के कारण उनके माता पिता को भी सिर झुकाना पड़ता है।
वाक्य प्रयोग 2 . जब गोपाल को चोरी करते हुए पकड़ लिया गया तो लज्जा से उसका सिर नीचा हो गया।
सिर पर पैर रख कर भागना
अर्थ : बहुत तेज भागना
वाक्य प्रयोग 1. पुलिस के आने की खबर सुनते ही चोर सिर पर पैर रख कर भागे।
वाक्य प्रयोग 2 . गली के कुत्तों को भौंकता देखकर बच्चा सिर पर पैर रख कर भागा।
1 .हँसते-खिलखिलाते रंग-बिरंगे फूल क्यारी में देखकर
जी तृप्त' हो गया ।
नथुनों से प्राणों तक खिंच गई
गंध की लकीर-सी
आँखों में हो गई रंगों की बरसात
अनायास कह उठा
वाह
धन्य है वसंत ऋतु !
2.लौटने को पैर ज्यों बढ़ाए तो
क्यारी के कोने में दुबका
एक नन्हा फूल अचानक बोल पड़ा
सुनो,
एक छोटा-सा सत्य तुम्हें सौंपता हूँ
धन्य है वसंत ऋतु, ठीक है!
पर उसकी धन्यता उसकी कमाई नहीं
वह हमने रची है,
हमने !
यानी मैंने
3.मुझ जैसे मेरे अनगिनत साथियों ने
जिन्होंने इस क्यारी में अपने-अपने ठाँव पर
धूप और बरसात,
जाड़ा और पाला झेल
सूरज को तपा है पूरी आयु एक पाँव पर ।
तुमने ऋतु को बखाना ,
पर क्या कभी पलभर भी
तुम उस लौ को भी देख सके
4. जिसके बल
मैंने और इसने और उसने
यानी मेरे एक-एक साथी ने
मिट्टी का अँधेरा फोड़ सूरज से आँखें मिलाई हैं ?
उसे यदि जानते तो तुमसे भी
रँग जाती एक ऋतु ।
-भारतभूषण अग्रवाल
काव्यांश1: हँसते-खिलखिलाते रंग-बिरंगे……………………………………..धन्य है वसंत ऋतु!
भावार्थ: प्रस्तुत पंक्तियाँ “रंग जाती एक ऋतु” कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता कवि भारत भूषण अग्रवाल जी हैं । इन पंक्तियों के माध्यम से कवि फूल ओर वसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कहते हैं कि क्यारी में कितने सुन्दर- सुन्दर फूल खिले हैं, रंग-बिरंगे इन सुन्दर हँसते हुए फूलों को देखकर मन में आनंद की अनुभूति हो रही है। लग रहा है जैसे इसकी सुगन्ध एक लकीर खींचते हुए नाक से होकर सीधे मन के भीतर चली गई हों। रंग बिरंंगे फूल देख कर महसूस हो रहा था मानो फूलों की भी बर्षा हो रही है। वसंत की सुंदरता को यूँहजार ही कहते हैं कि वाह! धन्य है वंसत ऋतु जो इतना सुहावनी है।
काव्यांश 2: लौटने को पैर ज्यों बढ़ाए तो....................................................हमने! यानी मैंने।
भावार्थ: प्रस्तुत पंक्तियाँ “रंग जाती एक ऋतु” कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता कवि भारत भूषण अग्रवाल जी हैं । इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने फूल और वसंत ऋतु का वर्णन किया है। जब कवि वसंत ऋतु की तारीफ करते हैं ओर वापस जाने के लिए जेसे ही पैर उठाते हैं, तभी क्यारी का एक नन्हा सा फूल कवि को कहता है सुनो एक छोटी सी सच्चाई तुम्हें बताता हूँ। तुम वंसत ऋतु की तारीफ कर रहे हो कि वो धन्य है, वो सब तो ठीक है लेकिन यह धन्यता उसकी खुद की मेहनत नहीं है, यह सुन्दरता और खुशबू हमने रची है यानि कि मैंने रची है।
काव्यांश 3: मेरे अनेक अनगिनत साथियों ने.............................................देख सके।.
भावार्थ: प्रस्तुत पंक्तियाँ रंग जाती एक ऋतु कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता कवि भारत भूषण अग्रवाल जी हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने फूल और वसंत ऋतु का वर्णन किया है। नन्हा फूल कवि को कहता है कि वसन्त ऋतु की सारी सुंदरता हमने रची है, अर्थात मुझ जैसे अनेक कितने ही नन्हे-नन्हें फूल हैं जो इस क्यारी में अपने स्थान में रहकर धूप, बरसात, ठण्ड और ठंडी से पड़ने वाले पाले को झेलते हैं। उस सूरज की भीषण गर्मी को सहकर हमने पूरा जीवन इस क्यारी में बिताया है एक ही पाँव में खड़े होकर अर्थात जड़ के सहारे खड़े हो कर अपनी पूरी उम्र बिताई है।अगर तुम वसंत ऋतु आने के पीछे हमारी इस मेहनत और बलिदान को जान लेते। ।तुम आकर उस वसंत ऋतु का बखान कर रहे हो।किंतु तुमने कभी हमारे बारे में नहीं सोचा, हमारी मेहनत और परिश्रम को कभी नहीं समझा।
काव्यांश 4: जिसके बल....................................... रंग जाती एक ऋतु।
भावार्थ प्रस्तुत पंक्तियाँ रंग जाती एक ऋतु कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता कवि भारत भूषण अग्रवाल जी हैं। । इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने फूल और वसंत ऋतु का वर्णन किया है। नन्हा सा फूल कवि को अपनी जीवन के संघर्ष को बताते हुए आगे कहता है कि क्या तुम्हें पता है मैं और मेरे सभी साथी एक रोशनी की तलाश में धरती का अंधेरा चिर कर अंकुरित होते हैं और बाहर निकलते हैं और उस तपते सूरज से सामना करके संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते हैं। अगर तुम लोग भी उस संघर्ष और परिश्रम को समझ पाते तो तुम से भी एक नई ऋतु की शुरुआत हो जाती, एक ऋतु तुम्हारे रंग से भी रंग जाती।
जन्म - (लहरतारा , काशी ) मृत्यु - ( मगहर , उत्तरप्रदेश )
कबीर भक्ति काल के निर्गुण शाखाके क्रांतदर्शी कवि माने जाते है । इन्होंने
अपने काव्य द्वारा धर्म के वाह्याडम्बरों पर गहरी चोट की है । इनकी भाषा यद्यपि
पूर्वी जनपद की थी , किंतु अपने दोहों में इन्होंने मिली –जुली भाषा का प्रयोग
किया है । जिसे विद्वानोंने पंचमेल खिचड़ी
भाषा या सधुक्कड़ी भाषा कहा है । कबीर अनपढ़ थे । उनके शिष्यों ने उनकी रचनाओं का
संकलन किया है । कबीर की रचनाओं मेंबीजक, कबीर परचाई, साखी
ग्रन्थ, कबीर ग्रंथावली शामिल हैं।
दोहा१: ऐसी बाँणी बोलिये ,मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै ,औरन कौ सुख होइ।।
प्रसंग : प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है। इस साखी के कवि 'कबीरदास 'जी है। इसमें कबीर ने मीठी बोली बोलने और दूसरों
को दुःख न देने की बात कही है
व्याख्या -: इसमें कबीरदास जी कहते है कि हमें अपने मन का
अहंकार त्याग कर ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जिसमे हमारा अपना तन मन भी स्वस्थ
रहे और दूसरों को भी कोई कष्ट न हो अर्थात दूसरों को भी सुख प्राप्त हो।
दोहा२: कस्तूरी कुंडली
बसै ,मृग ढूँढै बन माँहि। ऐसैं घटि- घटि राँम है , दुनियां देखै नाँहिं।।
प्रसंग - प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है। इसके कवि कबीरदास जी है इसमें कबीर कहते है कि जिस तरह
हिरण कस्तूरी प्राप्ति के लिए इधर उधर भटकता रहता है उसी तरह लोग भी ईश्वर
प्राप्ति के लिए भटक रहे है।
व्याख्या - कबीरदास जी कहते है कि जिस प्रकार एक हिरण
कस्तूरी की खुशबु को जंगल में ढूंढ़ता फिरता है जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में
विद्यमान होती है परन्तु वह इस बात से बेखबर होता है, उसी प्रकार संसार के कण- कण में ईश्वर विद्यमान है
और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को विभिन्न धार्मिक स्थलों में ढूंढ़ता है। अर्थात
कबीर का मानना है कि अगर ईश्वर को ढूंढ़ना ही है तो अपने मन में ढूंढो।
दोहा३: जब मैं था तब हरि
नहीं ,अब हरि हैं मैं नांहि। सब अँधियारा मिटी गया , जब दीपक देख्या माँहि।।
प्रसंग - प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीर जी मन
में अहम् या अहंकार के मिट जाने के बाद मन में परमेश्वर के वास की बात कहते है।
व्याख्या - कबीर जी कहते हैं कि जब इस हृदय में 'मैं ' अर्थात मेरा अहंकार था तब इसमें परमेश्वर का वास नहीं था परन्तु अब
हृदय में अहंकार नहीं है तो इसमें प्रभु का वास है। जब परमेश्वर रूपी दीपक
के दर्शन हुए तो अज्ञान रूपी अहंकार का नाश हो गया।
दोहा४: सुखिया सब संसार
है , खायै अरु सोवै। दुखिया दास कबीर है , जागै अरु रोवै।।
प्रसंग - प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी है।इसमें कबीर जी अज्ञान
रूपी अंधकार में सोये हुए मनुष्यों को देखकर दुःखी हैं और रो रहे है हैं।
व्याख्या - कबीर जी कहते हैं कि संसार के लोग अज्ञान रूपी
अंधकार में डूबे हुए हैं अपनी मृत्यु आदि से भी अनजान सिर्फ़ खाने और सोने में व्यस्त
हैं। ये सब देख कर कबीर दुखी हैं वे प्रभु
को पाने की आशा में हमेशा जागते रहते हैं। क्योंकि उन्हें ज्ञान हो चुका है कि
ईश्वर प्राप्ति ही जीवन का उद्देश्य है
दोहा५: बिरह भुवंगम तन
बसै , मंत्र न लागै कोइ। राम बियोगी ना जिवै ,जिवै तो बौरा होइ।।
प्रसंग - प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गयी है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीर कहते हैं
कि ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और अगर रह भी जाता है तो वह पागल
हो जाता है।
व्याख्या - कबीरदास जी कहते हैं कि प्रेमी
से अलगाव (विरह)एक
सर्प के समान है जोलगातार हमें डसता रहता है और शरीर का क्षय करता
है । इस विरह रूपी सर्प के विष पर किसी भी मंत्र का प्रभाव नहीं पड़ता है
,क्योंकि यह विरह ईश्वर के न मिल पाने के कारण है कबीर कहते हैं कि राम
अर्थात ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और यदि वह जीवित रहता भी है
तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। ईश्वर
से मिलन ही इस कष्ट से मुक्ति का उपाय है।
प्रसंग- प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीरदास जी निंदा
करने वाले व्यक्तियों को अपने पास रखने की सलाह देते हैं ताकि आपके स्वभाव में सकारात्मक
परिवर्तन आ सके।
व्याख्या - इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि हमें हमेशा निंदा
करने वाले व्यक्तिओं को अपने निकट रखना चाहिए। हो सके तो अपने आँगन में ही उनके
लिए घर बनवा लेना चाहिए अर्थात हमेशा अपने आस- पास ही रखना चाहिए, ताकि हम
उनके द्वारा बताई गई हमारी गलतिओं को सुधार सकें।इससे हमारा स्वभाव बिना साबुन और पानी की मदद के
ही साफ़ हो जायेगा।
दोहा७: पोथी पढ़ि - पढ़ि
जग मुवा , पंडित भया न कोइ। ऐकै अषिर पीव का , पढ़ै सु पंडित होइ।
प्रसंग - प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं।इसमें कबीर जी पुस्तकीय
ज्ञान को महत्त्व न देकर ईश्वर - प्रेम को महत्त्व देते हैं। व्याख्या - कबीर जी कहते है कि इस संसार में मोटी - मोटी पोथियाँ
(किताबें ) पढ़ कर कई मनुष्य इस संसार से
चले गए परन्तु कोई भी मनुष्य पंडित (ज्ञानी ) नहीं बन सका। यदि किसी व्यक्ति
ने ईश्वर प्रेम का एक भी अक्षर पढ़ लिया तो वह पंडित बन जाता है अर्थात ईश्वर
प्रेम ही एकमात्र सत्य है और इसे जानने वाला ही वास्तविक ज्ञानी है।
दोहा८: हम घर जाल्या
आपणाँ , लिया मुराड़ा हाथि। अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि।।
प्रसंग - प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं।इसमें कबीर मोह - माया
रूपी घर को जला कर अर्थात त्याग कर ज्ञान को प्राप्त करने की बात करते हैं।
व्याख्या - कबीर जी कहते हैं कि उन्होंने ज्ञान रूपी मशाल
लेकर अपने हाथों से अपना घर (माया –मोह) जला दिया है अर्थात उन्होंने मोह -माया
रूपी घर को जला कर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब उनके हाथों में जलती हुई
मशाल ( लकड़ी ) ,यानि ज्ञान है।कबीरदास जी अपने शिष्यों से कहते है कि जो उनके
साथ चलना चाहता हैं अर्थात उनका अनुयायी
बनना चाहता हैं ,उसे भी मोह - माया से मुक्त होकर ज्ञान प्राप्त होगा।
प्रश्न-
अभ्यास
(क
) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न: मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने
तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
उ.१.मीठी
वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता प्राप्त होती है क्योंकि मीठी वाणी
बोलने से मन का अहंकार समाप्त होता है। मन प्रसन्न होता है और सुनने वाला भी प्रसन्न
होता है प्रतिक्रिया स्वरूप, दूसरे
से भी हमें अच्छा व्यवहार मिलता है । इस प्रकार मीठी वाणी अपने मन को तो शीतलता प्रदान
करती ही है, सुनने वाले को भी सुखपहुँचाती है।
प्रश्न 2: दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे
मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उ.कबीर
ने साखी में दीपक को ज्ञान का प्रतीक औरअँधकार को अज्ञान का प्रतीक
माना है। जिस तरह दीपक के प्रकाश से अँधकार मिट जाता है उसी प्रकार जब हमें यह ज्ञान
प्राप्त होता है कि ईश्वर तोहमारी आत्मा में ही है हमारे
स्वयं के भीतर ही विद्यमान है तो उसी समय हमारा अज्ञान रूपी अँधकार नष्ट हो जाता है।ज्ञान
के प्रभाव से मनुष्य का अहंकार (अहम्)
नष्ट
होता है और परमात्मा का साक्षात्कार होता है ।
प्रश्न 3: ईश्वर कण-कण
में व्याप्त है । पर हम उसे क्यों देख नहीं पाते?
उ.ईश्वर
कण-कण में व्याप्त है पर हम
उसे क्यों देख नहीं पाते, इसका कारण यह कि
हमारे मन में अज्ञानता का पर्दा पड़ा हुआ है। हम ईश्वर को उसी तरह बाहर ढूँढ़ते हैं
जैसे मृग अपनी कुंडली में बसी कस्तूरी को बाहर वन में ढूँढता है। उसी प्रकार हम भी
ईश्वर को अज्ञानवश बाहर ढूँढ रहे हैं लेकिन
वे तो हमारे भीतर- बाहर
सर्वत्र विराजमान हैं। अज्ञानतावश हम उनका
अनुभव नहीं कर पाते।
प्रश्न 4: संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और
दुखी कौन ? यहाँ सोना और जागना किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया
है? स्पष्ट कीजिए।
उ.कबीर
ने दुनिया को सुखी और स्वयं को दुःखी माना । क्योंकि दुनिया भगवान की प्राप्ति के प्रति
उदासीन है और अपने दैनिक जीवन में व्यस्त हैं किन्तु एक जागरूक आत्मा निरंतर भगवद प्राप्ति
के लिए प्रयासरत रहती है और भगवान से विरह पर दुःख का अनुभव करती है। यहाँ पर जागना
जागरूकता या ज्ञान का प्रतीक है जबकि सोना
ईश्वर के प्रति उदासीनता या अज्ञानता का प्रतीक
माना गया है।
प्रश्न 5: अपने स्वभाव को निर्मल रखने के
लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
उ. अपने
स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने निंदक
(आलोचना करने वाले)
को
अपने पास रखने का सुझाव दिया।कबीर के अनुसार आलोचक हमारा सबसे बड़ा हितैषी होता है
।क्योंकि वह हमारी कमियों को सामने लाता है जिससे हमें उन कमियों को सुधारने का
अवसर मिलता है और बिना प्रयास ही हमारा स्वभाव निर्मल होता जाता है।
प्रश्न 6:’ऐकै अषिर पीव का पढै सु पंडित होइ’-
इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उ.”
पीव" का अर्थ प्रिय अथवा प्रेम से
है। कबीर दास जी का मानना है कि बड़े- बड़े ग्रंथ पढ़ने से कोई विद्वान नहीं बनता।किंतुभगवान के नाम का एक अक्षर मात्र
प्रेम से आत्मसात करने से ही व्यक्ति विद्वान बन जाता है।कबीर के अनुसार उसी शिक्षा
का महत्त्व है जो हमें ईश्वर की ओर उन्मुख कर दे। अन्यथा किताबी शिक्षा व्यर्थ है।
प्रश्न 7 : कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा
स्पष्ट कीजिए।
उ.७.कबीर
ने अपनी साखी द्वारा जनता को ईश्वर भक्ति का प्रभावशाली संदेश दिया । कबीर की साखी
की विशेषता यह कि यह जन भाषा है । यह आसानी से सुग्राह्य है। कबीर ने अपने ज्ञान को
अपनी साखियों के माध्यम से जन- जन तक पंहुचाया।इसमें अनेक क्षेत्रों की भाषाओं
यथा -
अवधी,
राजस्थानी,
भोजपुरी
और पंजाबी भाषाओं का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है ,
इसीलिए
विद्वानों ने इसे पंचमेल खिचड़ी या सधुक्कड़ी भाषा का नाम प्रदान किया । दोहा छंद में
लिखी गई ये साखियाँ गाने में सुमधुर और व्यवहारिक और नैतिक ज्ञान से ओत- प्रोत हैं।कबीर ने अपनी साखी द्वारा जनता
को ईश्वर की भक्ति का प्रभावशाली संदेश दिया ।सरल भाषा के प्रयोग के कारण आसानी से
याद भी हो जाती है। इन्हीं सब खूबियों के कारण आज भी कबीर के दोहे सामयिक और जनता में
प्रचलित है ।
ख)
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
1 विरह
भुवंगम तन बसै, मंत्र
न लागे कोइ।
भावार्थ:
पंक्ति
का आशय यह है कि प्रेमी से अलगाव (विरह)एक
सर्प के समान है जोलगातार हमें डसता रहता है और शरीर का क्षय करता
है । इस विरह रूपी सर्प के विष पर किसी भी मंत्र का प्रभाव नहीं पड़ता है ,क्योंकि
यह विरह ईश्वर के न मिल पाने के कारण है और ईश्वर से मिलन ही इस कष्ट से मुक्ति का
उपाय है।
२.
कस्तूरी कुंडली बसै
, मृग ढूँढै बन मांहि।
भावार्थ:
इस पंक्ति का भाव है कि भगवान हमारे शरीर के
अंदर ही वास करते हैं। जैसे हिरण की नाभि में कस्तूरी होती है,
जिसकी
सुगंध निकलने पर मृग उस से प्रभावित होकर चारों तरफ ढूँढ़ता फिरता है।ठीक उसी प्रकार
मनुष्य ईश्वर की खोज में विभिन्न धार्मिक स्थलों में घूमता रहता है किंतु वे तो हमारे
अंत: करण में ही विद्यमान हैं। अज्ञान
वश व्यक्ति उन्हें प्राप्त नहीं कर पाता।
3.जब
मैं था तब हरि नहीं, अब
हरि हैं मैं नाहि।
भावार्थ:
इसका भाव यह है कि जब तक मनुष्य मेंअहंकार की भावना रहती हैं,अज्ञानरहता है तब तक उसे भगवान की
प्राप्ति नहीं होती,किन्तु
अज्ञान हटते ही उसे ईश्वर मिल जाते हैं और भीतर बाहर सब तरह से ईश्वर की चेतना का अनुभव
है। आशय यह है कि ईश्वर प्राप्ति के लिए पूर्ण समर्पण आवश्यक है।
४.
पोथी पढ़ पढ़ जग मुवा,
पंडित भया न कोइ।
भावार्थ:
इस पंक्ति का भाव है किज्ञान की बड़ी बड़ी पुस्तकें
पढ़ने से कोई विद्वान नहीं बनता जब तक कि ईश्वर के प्रति प्रेम नहीं है। प्रेम से ईश्वर
के नाम का एक अक्षर भी व्यक्ति को तत्वज्ञानी और पंडित
(विद्वान) बना
देता है।
भाषा अध्ययन-
1.पाठ
में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए-
हम सब जानते हैं कि विद्या और ज्ञान का हमारे जीवन में अत्यंत महत्त्व है। इसीलिए जब भी हम कोई वेद , वेदांग पुराण आदि पढ़ते हैं तो गणेश वंदना के साथ ही सरस्वती और वेदव्यास जी का पूजन अवश्य ही करते हैं ।
कहा जाता है कि जब ब्रह्मा जी ने समस्त सृष्टी का निर्माण कर लिया किंतु स्वर के अभाव में उन्हें सब बेकार और सूना ही लग रहा था। तब भगवान नारायण की प्रेरणा से उन्होंने एक अत्यंत सुंदर श्वेत वर्ण वाली देवी का सृजन किया। जिनके सुमधुर वाणी से प्रसन्न होकर उसका नाम स रस वती कहा गया।
प्रत्येक वर्ष माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी यानी बसंत पंचमी के दिन वाणी और विद्या की देवी सरस्वती की पूजा होती है। क्योंकि वेद और पुराणों में बताया गया है कि ज्ञान और वाणी की देवी मां सरस्वती इसी दिन प्रकट हुई थी। भगवती सरस्वती ज्ञान और कला की देवी है। ज्ञान के उपासक तो देवी की वंदना करते ही हैं किंतु संगीत, साहित्य और चित्र कला के क्षेत्र में भी जो विशिष्ट प्रगति चाहते हैं । उन्हें प्रतिदिन देवी के विभिन्न नामों का जाप कर उन्हें प्रसन्न करने हेतु प्रयत्न शील रहना चाहिए। सभी को मालूम है कि शहनाई वादक उस्ताद विस्मिल्लाह खान रोज प्रात: सरस्वती वंदना करते थे। इसी प्रकार स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी ने भी सरस्वती वंदना कर अपना विशिष्ट स्थान बनाया था।
यहाँ पर सरस्वती देवी के 108 नाम दिए जा रहे हैं और साथ ही उनके अर्थ भी बताए गए हैं । प्रतिदिन इन नामों को स्मरण और जाप करने से निश्चित ही माता सरस्वती आपको आर्शिवाद प्रदान करेंगी। देवी के नामों का जप कोई भी व्यक्ति कर सकता है। शिखा सूत्र युक्त लोगों को देवी के नाम के आगे ओम लगा कर मंत्र जप करना चाहिए। शेष लोगों के लिए सिर्फ़ नामोच्चारण ही पर्याप्त है।
1- सरस्वती ॐ सरस्वत्यै नमः।
मधुर रस युक्त वाणी के कारण
2- महाभद्रा ॐ महाभद्रायै नमः।
भद्रा का शाब्दिक अर्थ कल्याण करने वाली है। देवी सरस्वती सभी के लिए महान कल्याण कारिणी होने से उनका नाम महाभद्रा है ।
3- महामाया ॐ महामायायै नमः।
अपनी माया से रावण , कुंभकरण जैसे प्रतापी लोगों की बुद्धि भी आवरण से ढक लेती हैं अंत: देवी सरस्वती का एक नाम महामाया भी है।
4- वरप्रदा ॐ वरप्रदायै नमः।
प्रसन्न होने पर मन चाहे वरदान देती हैं इस्लिए उनका नाम वर प्रदा है।
5- श्रीप्रदा ॐ श्रीप्रदायै नमः।
विद्या और बुद्धि के बल पर मनुष्य धन भी प्राप्त करता है अतः देवी श्री अर्थात धन संपन्नता देने वाली भी हैं ।
6- पद्मनिलया ॐ पद्मनिलयायै नमः।
श्वेत पद्म अर्थात सफ़ेद कमल ही इनका घर है अंत: देवी सरस्वती का नाम पद्मनिलया भी है।
7- पद्माक्षी ॐ पद्मा क्ष्रैय नमः।
कमल पत्र के समान नेत्र होने से देवी सरस्वती पद्माक्षी भी कहलाती हैं ।
8- पद्मवक्त्रगा ॐ पद्मवक्त्रायै नमः।
वक्त्र का अर्थ है मुख । देवी सरस्वती का मुख भी कमल के समान सुंदर होने से पद्मवक्त्रगा कहलाती हैं।
9- शिवानुजा ॐ शिवानुजायै नमः।
देवी भागवतम पुराण के अनुसार भगवती देवी ने संसार के कल्याण हेतु तीन युगलों को प्रकट किया था जिसमें विष्णु के साथ काली, ब्रह्मा के साथ लक्ष्मी और शिव के साथ देवी सरस्वती ने जन्म लिया था। शिव के साथ जन्म लेने के कारण देवी सरस्वती शिवानुजा भी कहलाती हैं।
10- पुस्तकधृत ॐ पुस्तकध्रते नमः।
हाथ में पुस्तक धारण करने के कारण देवी पुस्तक धृता: भी कहलाती हैं।
11- ज्ञानमुद्रा ॐ ज्ञानमुद्रायै नमः।
देवी सरस्वती सदैव ज्ञानमुद्रा धारण करती हैं
12- रमा ॐ रमायै नमः।
सामान्य रूप से रमा का अर्थ विष्णु पत्नी लक्ष्मी माना जाता है। लेकिन रमा का अर्थ सौभाग्य प्रदायिनी है। देवी सरस्वती भी भक्तों को सौभाग्य प्रदान करती हैं अंत: उनका एक नाम रमा भी है।
13- परा ॐ परायै नमः।
परा विद्या की अधिष्ठात्री देवी होने से देवी का ?क नाम परा है।
14- कामरूपा ॐ कामरूपायै नमः।
देवी काम रूपा हैं। मन के भीतर उत्पन्न सभी इच्छाएं देवी की प्रेरणा से ही उत्पन्न होने से वे कामरूपा कहलाती हैं।
15- महाविद्या ॐ महाविद्यायै नमः।
विद्या की अधिष्ठात्री देवी को महाविद्या के नाम से भी जाना जाता है।
16- महापातक नाशिनी ॐ महापातक नाशिन्यै नमः।
देवी सस्वती प्रसन्न होने पर बड़े से बड़े पातकों का भी क्षण भर में नाश कर देती हैं अंत: वे महापातक नाशिनी भी कही जाती हैं।
17- महाश्रया ॐ महाश्रयायै नमः।
समस्त विश्व को आश्रय देने वाली देवी होने से महाश्रया कहलाती हैं।
18- मालिनी ॐ मालिन्यै नमः।
श्वेत मल्ली पुष्प की माला धारण करने से मालिनी नाम से भी सरस्वती देवी को जाना जाता है।
19- महाभोगा ॐ महाभोगायै नमः।
समस्त भोगों की अधिकारिणी होने से महाभोगा कहलाती हैं।
20- महाभुजा ॐ महाभुजायै नमः।
विशाल भुजाओं के कारण देवी सरस्वती का एक नाम महाभुजा है।
21- महाभागा ॐ महाभागायै नमः।
अत्यंत पुण्ययुक्त /भाग्य युक्त होने के कारण महाभागा नाम है।
22- महोत्साहा ॐ महोत्साहायै नमः।
देवी भगवती सरस्वती भक्तों के हृदय में उत्साह स्फुरण करती हैं अंत: महोत्साहा नाम से जानी जाती हैं ।
23- दिव्याङ्गा ॐ दिव्याङ्गायै नमः।
देवी के अंग प्रत्यंग दिव्य हैं अंत: वे दिव्याङ्गा हैं। यहाँ पर एक प्रार्थना है कि कृपया आधुनिक भाषाशास्त्रियों की भाँति दिव्याङ्ग का अर्थ विकृत अंग न समझें। दिव्याङ्गा का अर्थ अलौकिक हैं।
24- सुरवन्दिता ॐ सुरवन्दितायै नमः।
देवी सरस्वती देवताओं द्वारा पूजित होने से सुरवन्दिता कहलाती हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी जिनकी कृपा कटाक्ष के लिए प्रतीक्षारत हों , वे देवी निश्चित रूप से सुरवन्दिता हैं।
25- महाकाली ॐ महाकाल्यै नमः।
देवी एक स्वरूप में महाकाली या नील सरस्वती भी कहलाती हैं। ये तंत्र शास्त्र की देवी हैं। तांत्रिक सिद्धि महाकाली रूप की आराधना के बिना असंभव है।
26- महापाशा ॐ महापाशायै नमः।
पाश अर्थात बंधन। मूर्खों पापियों को देवी सदैव संसार के महान पाश में बाँधे रहती हैं अंत: महापाशा कहलाती हैं।
27- महाकारा ॐ महाकारायै नमः।
अपने विशाल आकार के कारण वे महाकारा: कहलाती हैं। आश्चर्य का विषय है कि देवी सूक्ष्म से सूक्ष्म में और विराट से विराट जगत में समाहित हैं।
28- महाङ्कुशा ॐ महाङ्कुशायै नमः।
अधर्मियों और पापियों में अङ्कुश लगाने के कारण वे महाङ्कुशा कहलाती हैं।
29- सीता ॐ सीतायै नमः।
सीता का एक अर्थ मुक्ति भी है। भगवती सरस्वती ज्ञान की देवी हैं । प्रसन्न होने पर भक्तों को मुक्ति प्रदायिनी ज्ञान प्रदान करने से वे सीता भी कहलाती हैं।
30- विमला ॐ विमलायै नमः।
अत्यंत पवित्र होने से देवी सरस्वती विमला कहलाती हैं
31- विश्वा ॐ विश्वायै नमः।
दक्ष की एक कन्या जो धर्म को ब्याही थी और जिससे वसु, सत्य, ऋतु आदि दस पुत्र उत्पन्न हुए थे।
सरस्वती का एक नाम विश्वा भी है ।
32- विद्युन्माला ॐ विद्युन्मालायै नमः।
विद्युत की माला के समान स्वरूप होने से विद्युन्माला है।
33- वैष्णवी ॐ वैष्णव्यै नमः।
विष्णु की आराधना का ज्ञान प्रदान कराने वाली और स्वयं विष्णु की आराधिका होन वैष्णवी हैं।