Tuesday, April 25, 2023

साखी

 साखी

कवि परिचय

कवि का नाम    - कबीरदास  

जन्म - (लहरतारा , काशी )      मृत्यु - ( मगहर , उत्तरप्रदेश )

                                                        

कबीर भक्ति काल के निर्गुण शाखा  के क्रांतदर्शी कवि माने जाते है । इन्होंने अपने काव्य द्वारा धर्म के वाह्याडम्बरों पर गहरी चोट की है । इनकी भाषा यद्यपि पूर्वी जनपद की थी , किंतु अपने दोहों में इन्होंने मिली –जुली भाषा का प्रयोग किया है । जिसे विद्वानों  ने पंचमेल खिचड़ी भाषा या सधुक्कड़ी भाषा कहा है । कबीर अनपढ़ थे । उनके शिष्यों ने उनकी रचनाओं का संकलन किया है । कबीर की रचनाओं में  बीजक, कबीर परचाई, साखी ग्रन्थ, कबीर ग्रंथावली शामिल हैं।


दोहा१: ऐसी बाँणी बोलिये ,मन का आपा खोइ।

अपना तन सीतल करै ,औरन कौ सुख होइ।। 

प्रसंग : प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है। इस साखी के कवि 'कबीरदास 'जी है। इसमें कबीर ने मीठी बोली बोलने और दूसरों को दुःख न देने की बात कही है

व्याख्या -: इसमें कबीरदास जी कहते है कि हमें अपने मन का अहंकार त्याग कर ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जिसमे हमारा अपना तन मन भी स्वस्थ रहे और दूसरों को भी कोई कष्ट न हो अर्थात दूसरों को भी सुख प्राप्त हो।

दोहा२: कस्तूरी कुंडली बसै ,मृग ढूँढै बन माँहि।
ऐसैं घटि- घटि राँम है , दुनियां देखै नाँहिं।।

प्रसंग - प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है। इसके कवि कबीरदास जी है इसमें कबीर कहते है कि जिस तरह हिरण कस्तूरी प्राप्ति के लिए इधर उधर भटकता रहता है उसी तरह लोग भी ईश्वर प्राप्ति के लिए भटक रहे है।

व्याख्या - कबीरदास जी कहते है कि जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबु को जंगल में ढूंढ़ता फिरता है जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान होती है परन्तु  वह इस बात से बेखबर होता है, उसी प्रकार संसार के कण- कण में ईश्वर विद्यमान है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को विभिन्न धार्मिक स्थलों में ढूंढ़ता है। अर्थात कबीर का मानना है कि अगर ईश्वर को ढूंढ़ना ही है तो अपने मन में ढूंढो।

दोहा३: जब मैं था तब हरि नहीं ,अब हरि हैं मैं नांहि।  
सब अँधियारा मिटी गया , जब दीपक देख्या माँहि।।

प्रसंग - प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है।  इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीर जी मन में अहम् या अहंकार के मिट जाने के बाद मन में परमेश्वर के वास की बात कहते है।

व्याख्या - कबीर जी कहते हैं कि जब इस हृदय में 'मैं ' अर्थात मेरा अहंकार था तब इसमें परमेश्वर का वास नहीं था परन्तु अब हृदय में अहंकार नहीं है तो इसमें प्रभु का वास है।  जब परमेश्वर रूपी दीपक के दर्शन हुए तो अज्ञान रूपी अहंकार का नाश हो गया। 

दोहा४: सुखिया सब संसार है , खायै अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है , जागै अरु रोवै।।

प्रसंग - प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है।  इस साखी के कवि कबीरदास जी है।  इसमें कबीर जी अज्ञान रूपी अंधकार में सोये हुए मनुष्यों को देखकर दुःखी हैं और रो रहे है हैं।  

व्याख्या - कबीर जी कहते हैं कि संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे हुए हैं अपनी मृत्यु आदि से भी अनजान सिर्फ़ खाने और सोने में व्यस्त हैं। ये सब देख कर कबीर दुखी हैं  वे प्रभु को पाने की आशा में हमेशा जागते रहते हैं। क्योंकि उन्हें ज्ञान हो चुका है कि ईश्वर प्राप्ति ही जीवन का उद्‍देश्य है   

दोहा५: बिरह भुवंगम तन बसै , मंत्र न लागै कोइ।
राम बियोगी ना जिवै ,जिवै तो बौरा होइ।।

प्रसंग - प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गयी है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीर कहते हैं कि ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और अगर रह भी जाता है तो वह पागल हो जाता है।  

व्याख्या - कबीरदास जी कहते हैं कि प्रेमी से अलगाव (विरह)एक सर्प के समान है जो  लगातार हमें डसता रहता है और शरीर का क्षय करता है । इस विरह रूपी सर्प के विष पर किसी भी मंत्र का प्रभाव नहीं पड़ता है ,क्योंकि यह विरह ईश्वर के न मिल पाने के कारण है कबीर कहते हैं कि राम अर्थात ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और यदि वह जीवित रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों  जैसी हो जाती है।   ईश्वर से मिलन ही इस कष्ट से मुक्ति का उपाय है 

दोहा६: निंदक नेड़ा राखिये , आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना , निरमल करै सुभाइ।।

प्रसंग- प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है। इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं। इसमें कबीरदास जी निंदा करने वाले व्यक्तियों को अपने पास रखने की सलाह देते हैं ताकि आपके स्वभाव में सकारात्मक परिवर्तन आ सके।

व्याख्या - इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि हमें हमेशा निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने निकट रखना चाहिए। हो सके तो अपने आँगन में ही उनके लिए घर बनवा लेना चाहिए अर्थात हमेशा अपने आस- पास ही रखना चाहिए,  ताकि हम उनके द्वारा बताई गई हमारी गलतिओं को सुधार सकें।  इससे हमारा स्वभाव बिना साबुन और पानी की मदद के ही साफ़ हो जायेगा।

दोहा७: पोथी पढ़ि - पढ़ि जग मुवा , पंडित भया न कोइ।
ऐकै अषिर पीव का , पढ़ै सु पंडित होइ।

प्रसंग - प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है।  इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं।  इसमें कबीर जी पुस्तकीय ज्ञान को महत्त्व न देकर ईश्वर - प्रेम को  महत्त्व देते हैं।
व्याख्या - कबीर जी कहते है कि इस संसार में मोटी - मोटी पोथियाँ  (किताबें ) पढ़ कर कई मनुष्य इस संसार से चले गए परन्तु कोई भी मनुष्य पंडित (ज्ञानी ) नहीं बन सका।  यदि किसी व्यक्ति ने ईश्वर प्रेम का एक भी अक्षर पढ़ लिया तो वह पंडित बन जाता है अर्थात ईश्वर प्रेम ही एकमात्र सत्य है और इसे जानने वाला ही वास्तविक ज्ञानी है।

दोहा८: हम घर जाल्या आपणाँ , लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि।।

प्रसंग - प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से ली गई है।  इस साखी के कवि कबीरदास जी हैं।  इसमें कबीर मोह - माया रूपी घर को जला कर  अर्थात त्याग कर ज्ञान को प्राप्त करने की बात करते हैं।

व्याख्या - कबीर जी कहते हैं कि उन्होंने ज्ञान रूपी मशाल लेकर अपने हाथों से अपना घर (माया –मोह) जला दिया है अर्थात उन्होंने मोह -माया रूपी घर को जला कर ज्ञान प्राप्त कर लिया है।  अब उनके हाथों में जलती हुई मशाल ( लकड़ी ) ,यानि ज्ञान है।  कबीरदास जी अपने शिष्यों से कहते है कि जो उनके साथ चलना चाहता  हैं अर्थात उनका अनुयायी बनना चाहता हैं ,उसे भी मोह - माया से मुक्त होकर  ज्ञान प्राप्त होगा।

प्रश्न- अभ्यास

( ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न: मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?

.१.मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता प्राप्त होती है क्योंकि मीठी वाणी बोलने से मन का अहंकार समाप्त होता है। मन प्रसन्न होता है और सुनने वाला भी प्रसन्न होता है प्रतिक्रिया स्वरूप, दूसरे से भी हमें अच्छा व्यवहार मिलता है । इस प्रकार मीठी वाणी अपने मन को तो शीतलता प्रदान करती ही है, सुनने वाले को भी सुख  पहुँचाती है।

प्रश्न 2: दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

. कबीर ने साखी में दीपक को ज्ञान का प्रतीक और  अँधकार को अज्ञान का प्रतीक माना है। जिस तरह दीपक के प्रकाश से अँधकार मिट जाता है उसी प्रकार जब हमें यह ज्ञान प्राप्त होता है कि ईश्वर तो  हमारी आत्मा में ही है हमारे स्वयं के भीतर ही विद्यमान है तो उसी समय हमारा अज्ञान रूपी अँधकार नष्ट हो जाता है।ज्ञान के प्रभाव से मनुष्य का अहंकार (अहम्) नष्ट होता है और परमात्मा का साक्षात्कार होता है ।

प्रश्न 3: ईश्वर कण-कण में व्याप्त है । पर हम उसे क्यों देख नहीं पाते?

. ईश्वर कण-कण में व्याप्त है पर हम उसे क्यों देख नहीं पाते,  इसका कारण यह कि हमारे मन में अज्ञानता का पर्दा पड़ा हुआ है। हम ईश्वर को उसी तरह बाहर ढूँढ़ते हैं जैसे मृग अपनी कुंडली में बसी कस्तूरी को बाहर वन में ढूँढता है। उसी प्रकार हम भी ईश्वर को अज्ञानवश बाहर ढूँढ रहे हैं  लेकिन वे तो हमारे भीतर- बाहर सर्वत्र विराजमान हैं।  अज्ञानतावश हम उनका अनुभव नहीं कर पाते।

प्रश्न 4: संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन ? यहाँ सोना और जागना किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

.कबीर ने दुनिया को सुखी और स्वयं को दुःखी माना । क्योंकि दुनिया भगवान की प्राप्ति के प्रति उदासीन है और अपने दैनिक जीवन में व्यस्त हैं किन्तु एक जागरूक आत्मा निरंतर भगवद प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहती है और भगवान से विरह पर दुःख का अनुभव करती है। यहाँ पर जागना जागरूकता या ज्ञान  का प्रतीक है जबकि सोना ईश्वर के प्रति उदासीनता  या अज्ञानता का प्रतीक माना गया है।

प्रश्न 5: अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?

उ. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने निंदक (आलोचना करने वाले) को अपने पास रखने का सुझाव दिया।कबीर के अनुसार आलोचक हमारा सबसे बड़ा हितैषी होता है ।क्योंकि वह हमारी कमियों को सामने लाता है जिससे हमें उन कमियों को सुधारने का अवसर मिलता है और बिना प्रयास ही हमारा स्वभाव  निर्मल होता जाता है।

प्रश्न 6:’ऐकै अषिर पीव का पढै सु पंडित होइ’- इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?

 .” पीव" का अर्थ प्रिय अथवा प्रेम से है। कबीर दास जी का मानना है कि बड़े- बड़े ग्रंथ पढ़ने से कोई विद्वान नहीं बनता।किंतु  भगवान के नाम का एक अक्षर मात्र प्रेम से आत्मसात करने से ही व्यक्ति विद्वान बन जाता है।कबीर के अनुसार उसी शिक्षा का महत्त्व है जो हमें ईश्वर की ओर उन्मुख कर दे। अन्यथा किताबी शिक्षा व्यर्थ है।

प्रश्न 7 : कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा स्पष्ट कीजिए।

उ.७.कबीर ने अपनी साखी द्वारा जनता को ईश्वर भक्ति का प्रभावशाली संदेश दिया । कबीर की साखी की विशेषता यह कि यह जन भाषा है । यह आसानी से सुग्राह्य है। कबीर ने अपने ज्ञान को अपनी साखियों के माध्यम से जन- जन तक पंहुचाया।  इसमें अनेक क्षेत्रों की भाषाओं  यथा - अवधी, राजस्थानी, भोजपुरी और पंजाबी भाषाओं का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है , इसीलिए विद्वानों ने इसे पंचमेल खिचड़ी या सधुक्कड़ी भाषा का नाम प्रदान किया । दोहा छंद में लिखी गई ये साखियाँ गाने में सुमधुर और व्यवहारिक और नैतिक ज्ञान से ओत- प्रोत हैं।  कबीर ने अपनी साखी द्वारा जनता को ईश्वर की भक्ति का प्रभावशाली संदेश दिया ।सरल भाषा के प्रयोग के कारण आसानी से याद भी हो जाती है। इन्हीं सब खूबियों के कारण आज भी कबीर के दोहे सामयिक और जनता में प्रचलित है ।

) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

1 विरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागे कोइ।

भावार्थ: पंक्ति का आशय यह है कि प्रेमी से अलगाव (विरह)एक सर्प के समान है जो  लगातार हमें डसता रहता है और शरीर का क्षय करता है । इस विरह रूपी सर्प के विष पर किसी भी मंत्र का प्रभाव नहीं पड़ता है ,क्योंकि यह विरह ईश्वर के न मिल पाने के कारण है और ईश्वर से मिलन ही इस कष्ट से मुक्ति का उपाय है।

. कस्तूरी कुंडली बसै , मृग ढूँढै बन मांहि।

भावार्थ:

इस पंक्ति का भाव है कि भगवान हमारे शरीर के अंदर ही वास करते हैं। जैसे हिरण की नाभि में कस्तूरी होती है, जिसकी सुगंध निकलने पर मृग उस से प्रभावित होकर चारों तरफ ढूँढ़ता फिरता है।ठीक उसी प्रकार मनुष्य ईश्वर की खोज में विभिन्न धार्मिक स्थलों में घूमता रहता है किंतु वे तो हमारे अंत: करण में ही विद्यमान हैं। अज्ञान वश व्यक्ति उन्हें प्राप्त नहीं कर पाता।

3.जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।

भावार्थ:

इसका भाव यह है कि जब तक मनुष्य में  अहंकार की भावना रहती हैं,अज्ञान  रहता है तब तक उसे भगवान की प्राप्ति नहीं होती,किन्तु अज्ञान हटते ही उसे ईश्वर मिल जाते हैं और भीतर बाहर सब तरह से ईश्वर की चेतना का अनुभव है। आशय यह है कि ईश्वर प्राप्ति के लिए पूर्ण समर्पण आवश्यक है।

. पोथी पढ़ पढ़ जग मुवा, पंडित भया न कोइ।

भावार्थ:

इस पंक्ति का भाव है कि  ज्ञान की बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ने से कोई विद्वान नहीं बनता जब तक कि ईश्वर के प्रति प्रेम नहीं है। प्रेम से ईश्वर के नाम का एक अक्षर भी व्यक्ति को तत्वज्ञानी और पंडित (विद्वान) बना देता है।

भाषा अध्ययन-

1.   पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए-

औरन- औरों का, दुसरों का ,

माँहि- मध्य में, बीच में

देख्य़ा- देखा

भुवंगम –भुजंग, साँप

नेडा- निकट, पास

आँगणि-आँगन

 

साबन- साबुन

मुवा= मरा

पीव- प्रिय

जालौं- जलाऊँ

तास- उसका

 

  

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