Wednesday, July 19, 2023

छाती पर आधरित मुहावरे

 छाती पर आधरित मुहावरे

दोस्तों आपने मुहावरे तो  बहुत सुने होंगे। आज आपके लिए खास मुहावरे लाए हैं जो सिर्फ़ छाती पर आधारित हैं।  छाती पर मुहावरों के भी कितने अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं यह बडा आश्चर्य का विषय है। पढिये और आनंद लीजिए। 

छाती पर मूंग दलना-

अर्थ-अत्यन्त कष्ट देना

वाक्य प्रयोग- लक्ष्मण ने अपना हिस्सा तो ले ही लिया , अब भाई पर जमीन का केस डल कर उसकी  छाती पर  मूंग दल रहा है। 

छाती पर पत्थर रखना-

अर्थ-दुःख सहने के लिए हृदय कठोर करना।

वाक्य प्रयोग- अपनी छाती पर पत्थर रखकर उसने अपने पिता की एक मात्र निशानी, अपना पुश्तैनी मकान भी बेच दिया।

छाती पर साँप लोटना-

अर्थ-ईर्ष्या से हृदय जल उठना।

वाक्य प्रयोग- पंकजा की उन्नति की चर्चा सुनकर उसकी सहेली की छाती पर साँप लोटने लगते हैं।

छाती पीटना 

अर्थ-मातम मनाना- 

वाक्य प्रयोग- अपने बडे भाई की मृत्यु पर  नव्या छाती पीट कर रोने लगी ।

छाती जलना 

अर्थ-ईर्ष्या होना

 वाक्य प्रयोग- जब से मेरा चर मंजिला मकन बना है तब से मेरे  पडोसियों की छाती जल रही है ।

छाती दहलना 

अर्थ-डरना, भयभीत होना

वाक्य प्रयोग-  रेल दुर्घटना का दृश्य इतना भयंकर था कि छाती दहल जा रही थी ।

छाती दूनी होना 

अर्थ-अत्यधिक उत्साहित होना

वाक्य प्रयोग- जब से ही रोहन का कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी  में दखिला हुआ, तब से उसके पिता  की छाती दूनी हो गई।

छाती फूलना 

अर्थ-गर्व होना

वाक्य प्रयोग- मेरी सफ़लता  देख कर मेरे अध्यापक की छाती फूल गई।

छाती सुलगना 

अर्थ-ईर्ष्या होना- 

वाक्य प्रयोग- कुछ लोग इतने ईर्ष्यालु होते हैं कि किसी को भी सुखी देखकर उन की  छाती सुलग उठती है।

छाती पर पत्थर होना- 

अर्थ-भारी दुःख होना - 

वाक्य प्रयोग- जब से  राधा विधवा हुई है उसके पिता छाती पर पत्थर रख कर जी रहे हैं।  

Thursday, July 13, 2023

NCERT DURVA PART 3 CH1 GUDIYA KA BHAVARTH पाठ 1 गुड़िया कविता का भावार्थ

NCERT DURVA PART 3 CH1 GUDIYA KA BHAVARTH  पाठ 1 गुड़िया कविता का भावार्थ   

गुड़िया कविता के रचयिता कवि कुँवर नारायण सिंह हैं। कवि ने इस कविता के माध्यम से बाल मनोभावों का सुंदर चित्रांकन किया है। यहाँ पर इस कविता का भावार्थ दिया गया है।

काव्यांश 1:

मेले से लाया हूँ इसको 
छोटी सी प्यारी गुड़िया 
बेच रही थी इसे भीड़ में
नुक्कड़ पर बैठी बुढ़िया

संदर्भ : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक दुर्वा भाग 3 से ली गई  है। इसके रचयिता कवि कुँवर नारायण सिंह हैं । उन्होंने इस काव्य के माध्यम से एक बाल मन की  मधुर  भावनाएँ व्यक्त की हैं । इस काव्यांश में नन्हें बालक के खिलौनों के प्रति लगाव को दर्शाया गया है।

भावार्थ : एक छोटा बालक मेले से गुड़िया ले कर आया है और  प्रसन्नता से बता रहा है कि वह अपनी छोटी सी प्यारी सी गुड़िया मेले से लाया है । इस गुड़िया को मेले की भीड़ में एक बुढ़िया बेच रही थी जो सड़क के  कोने पर बैठी हुई थी।

काव्यांश 2:

मोल भाव करके लाया हूँ
ठोक बजाकर देख लिया
आँखें खोल मूँद सकती है
यह कहती है पिया पिया

संदर्भ : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक दुर्वा भाग 3 से लिया गया है। इसके रचयिता कवि कुँवर नारायण सिंह हैं । उन्होंने इस काव्य के माध्यम से व्यक्त की हैं । इस काव्यांश में जहाँ कवि ने बालक की मासूमियत को प्रस्तुत किया है वहीं उसका व्यवहारिक ज्ञान भी दिखाई देता है। 

भावार्थ : बच्चा बता रहा है कि उसने ऐसे ही इस गुड़िया को नहीं खरीद लिया। उसने अच्छी तरह मोल भाव किया और  गुड़िया को  काफ़ी देर मोल-भाव करने के बाद अच्छी तरह से परख कर सौदा किया है। उसकी यह गुड़िया अपनी आँखें खोल और बंद कर सकती है और यह पिया- पिया की आवाज़ भी निकाल सकती है।

काव्यांश 3:

जड़ी सितारों से है इसकी 
चुनरी लाल रंग वाली
 बड़ी भली हैं इसकी आँखें 
मतवाली काली-काली ।

संदर्भ : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक दुर्वा भाग 3 से लिया गया है। इसके रचयिता कवि कुँवर नारायण सिंह हैं । उन्होंने इस काव्य के माध्यम से एक छोटे बच्चे की भावनाएँ व्यक्त की हैं । इस काव्यांश में बच्चा अपनी गुड़िया की सुंदरता के बारे में बता रहा है।

भावार्थ : इन पंक्तियों के द्वारा बच्चा गुड़िया की सूंदरता का वर्णन उसकी गुड़िया के कपड़ॊम और आँखों के  बारे में बता कर करता है।  बच्चा बताता है कि उसकी गुड़िया ने सितारों जड़ी लाल रंग की चुन्नी ओड़ रखी है । गुड़िया की बड़ी-बड़ी सुंदर मनमोहने वाली काली आँखें भी है। इससे पता चलता है कि बच्चा गुड़िया के प्रति बहुत आकर्षित है। 

काव्यांश 4:

ऊपर से है बड़ी सलोनी
अंदर गुदड़ी है तो क्या?
ओ गुड़िया तू इस पल मेरे
शिशुमन पर विजयी माया।

संदर्भ : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक दुर्वा भाग 3 से लिया गया है। इसके रचयिता कवि कुँवर नारायण सिंह हैं । इस काव्यांश में बच्चा बता रहा कि वह यह सच्चाई जानता है  कि गुड़िया पुराने कपड़ों से बनी है  फिर भी उसे गुड़िया बहुत पसंद है ।

भावार्थ : बच्चा बताता है कि उसकी गुड़िया बहुत सुंदर है । भले ही गुड़िया फ़टे-पुराने कपड़ों से बनी हुई है फ़िर भी बच्चे को गुड़िया बहुत पसंद आ रही है।  कवि के अनुसार इस क्षण में मानों  बालक के बाल मन पर गुडिया ने विजय पा ली हो।

काव्यांश 5:

रखँगा मैं तुझे खिलौनों की 
अपनी अलमारी में।
कागज़ के फूलों की नन्हीं
रंगारंग फुलवारी में ।

संदर्भ : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक दुर्वा भाग 3 से लिया गया है। इसके रचयिता कवि कुँवर नारायण सिंह हैं ।  इस काव्यांश में बच्चा गुड़िया के रख-रखाव व अच्छी देखभाल की योजना बना रहा है। ।

भावार्थ : बच्चे को गुड़िया बहुत पसंद है । इसलिए वह गुड़िया को  संबोधित करते हुए कहता है कि वह अपनी खिलौनों की अलमारी में  गुड़िया को रखना चाहता है। इस से यह बात भी पता चलती है कि बालक अपना सामान व्यवस्थित रखता है। वह गुड़िया को कागज़ के फूलों के नन्हीं रंगीन फुलवारी में  गुड़िया को सजाएगा।

काव्यांश 6:

नए-नए कपड़े गहनों से
तुझको रोज सजाऊंगा
खेल खिलौनों की दुनिया में
तुझको परी बनाऊँगा।

संदर्भ : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक दुर्वा भाग 3 से लिया गया है। इसके रचयिता कवि कुँवर नारायण सिंह हैं । इस काव्यांश में कवि ने  बालक की सुँदरता और  अच्छे कपड़ों की अभिरुचि भी दर्शायी है।  

भावार्थ : बच्चे को गुड़िया इतनी पसंद है कि जहाँ गुडिया के लिए आकर्षण दिखता है वहीं बालक के  गुड़िया से कहता है कि वह गुड़िया को नित्य ही नए कपड़े और गहनों से पहनाएगा और सजाएगा । साथ  ही अपने खेल - खिलौनों की दुनिया में  गुड़िया को एक परी की तरह रखेगा। इन पंक्तियों से पता चलता है कि बालक अपनी गुड़िया से बहुत प्यार करता है।

कवि कुँवर नारायण  

Wednesday, July 12, 2023

कविता गुड़िया

कविता गुड़िया 

कविता पढ़ना बच्चों को बहुत पसंद होता है। बच्चे ही क्यों बड़े भी कविताओं से आनंदित होते हैं। यहाँ पर कुँवर नारायण जी की  एक ऐसी ही कविता उद्धृत की गई है जो बाल मन को तो गुदगुदाती ही है, बड़ों को भी अपना बचपन याद दिला देती है। 

मेले से लाया हूँ इसको 
छोटी सी प्यारी गुड़िया 
नुक्कड़ पर बैठी बुढ़िया
बेच रही थी इसे भीड़ में

मोल भाव करके हूँ लाया
ठोक बजा कर देख लिया,
आँख खॊल मूँद सकती है
यह कहती है पिया- पिया।

जड़ी सितारों से है इसकी 
चुनरी लाल रंग वाली
 बड़ी भली हैं इसकी आँखें 
मतवाली काली-काली ।

ऊपर से है बड़ी सलोनी
अंदर गुदड़ी है तो क्या?
ओ गुड़िया तू इस पल मेरे 
शिशु मन पर विजयी माया।

रखँगा मैं तुझे खिलौनों की 
अपनी अलमारी में।
कागज़ के फूलों की नन्हीं
रंगारंग फुलवारी में ।

 नये-नये कपड़े- गहनों से
 तुझको रोज़ सजाऊँगा, 
खेल -खिलौनों की दुनियाँ में 
तुझको परी बनाऊँगा। 

कवि कुँवर नारायण  





 

 

Saturday, July 8, 2023

Hindi Idioms on Hair बाल पर आधारित मुहावरे

Hindi Idioms on Hair  बाल पर आधारित मुहावरे 

बाल हमारे शरीर के महत्त्वपूर्ण अंग हैं । हालांकि बाल न होने से स्वास्थ्य में कोई विशेष दृश्यमान असर तो नहीं पड़ता, किंतु सुंदरता की दृष्टि से बाल आवश्यक हैं । यदि ऐसा न होता तो बालों की सुंदरता बढ़ाने के लिए बाज़ार में इतने सारे उत्पाद उपलब्ध न होते। बालों को बढ़ाने के लिए, उनको सुंदर और घने बनाए रखने के लिए और उनको झड़ने से बचाए रखने के लिए आज नित-प्रतिदिन शोधकार्य हो रहे हैं। इतना ही नहीं, जिन लोगों के बाल पूरी तरह से झड़ चुके हैं उनके लिए भी नकली बाल  के विग बाज़ार में आसानी से मिल रहे हैं । बाल जितने जरूरी सुंदर और आकर्षक दिखने के लिए हैं, उतने ही महत्त्वपूर्ण भाषा में इनके मुहावरों का प्रयोग है। बालों के मुहावरों के  अर्थ और प्रयोग जान कर  इस सुंदरता का आनंद लीजिए। 

1. बाल बराबर होना- बहुत पतला/ बारीक होना-   

उसकी पैर की  हड्डी में बाल बराबर दरार आ गई ।
अलमारी इतनी अधिक भर चुकी है कि उसमें बाल बराबर भी कुछ नहीं रख सकते।

2. बाल की खाल निकालना-  बहुत जाँच परख करना / अनावश्यक दोष निकालना- 
मैंने तो एक साधारण सी बात कही थी तुम बेकार ही बाल की खाल निकाल रहे हो। 
रमेश किसी भी बात पर संतुष्ट नहीं होता। उसे हर बात पर बाल की खाल निकालने की आदत है।  

3. बाल-बाल बचना- किसी संकट के बहुत पास से बच जाना/  किसी समस्या से बच जाना
सड़क दुर्घटना में मोहन बाल-बाल बच गया।
आज तो पिताजी ने पिक्चर हॉल के पास देख ही लिया था किसी तरह बाल-बाल बचा।

4. बाल बाँका न होना- किसी तरह की क्षति या कष्ट न होना 
रोहन दूसरी मंजिल से नीचे गिर गया किंतु उसका बाल भी बाँका नहीं हुआ।
जब तक भाग्य तुम्हारे साथ है कोई भी तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं नहीं कर सकता।

5. धूप में बाल सफ़ेद करना- बिना किसी अनुभव  के / बिना कुछ सीखे उम्र गुजार देना
मैने यूँ ही बाल धूप में सफ़ेद नहीं किये हैं । मुझे सब पता है। 
अम्मा जी अब तक आपको यह पता नहीं चला कि किसके साथ कैसे बात की जाती है  कहीं आपने अपने बाल धूप में तो सफ़ेद नहीं किये? बहू ने सास से चिढ़चिढ़ाते हुए कहा। 

6. बाल पकना-  अनुभवी होना 
"बेटा मेरे पढ़ाते-पढ़ाते मेरे बाल पक गए । अब तुम मुझे सिखाओगे कि किस तरह पढ़ाना है " शिक्षिका ने नए जिलाधिकारी से कहा। 
रेखा मैम ने  सारा जीवन काम करते हुए ही अपने बाल पकाए हैं। 

7. खिचड़ी बाल - आधे सफ़ेद और आधे काले बाल -
सामने खड़े आदमी के सिर पर खिचड़ी बाल दिखाई दे रहे थे। 
वे साँवले रंग के नाटे कद और खिचड़ी बालों वाले शख्स हैं। 

8. नाक का बाल होना- प्रिय होना / बहुत नज़दीकी व्यक्ति होना - 
विश्वास मंत्री जी की नाक का बाल है।  किसी भी काम के लिए इसी से संपर्क करो।
रामलाल तो अपने बॉस की नाक का बाल है । इसके तो बड़े मज़े हैं।

9. बाल खड़े होना -कुछ अनपेक्षित होने पर भौचक्का रह जाना / घबरा जाना
अचानक शेर को सामने देख कर मेरे शरीर के सब बाल खड़े हो गए।
थ्री डी मूवी के रोमांचक दृश्य देखकर मेरे बाल खड़े हो गए।

10. मूँछ का बाल -निहायत ही करीबी होना/गहरी दोस्ती
रामप्रसाद और सलीम एक दूसरे की मूँछ का बाल है।
इंस्पेक्टर से सच्चाई का पता मैं आसानी से लगा लुँगा क्योंकि मैं उसकी मूँछ का बाल हूँ। 

11. बाल बराबर फ़र्क न होना- ज़रा भी अंतर न होना 
सरिता अपने सगे बेटे और सौतेले बेटे  के बीच बाल बराबर भी फ़र्क नहीं समझती।
रामेश्वर ने कभी भी अपने भाई और बेटे के बीच बाल बराबर भी फ़र्क नहीं किया , फ़िर भी छोटे भाई ने उस पर दोहरे व्यवहार का इल्ज़ाम लगा दिया। 

12. आँख में सुवर का बाल होना - कृतघ्न होना / धोखेबाज़ होना
मैं तो इस सतीश पर ज़रा भी विश्वास नहीं करता। इसकी आँख में सुवर का बाल है। 
इस आदमी से सावधान रहना! बड़ा ही शातिर है । इसकी आँख में सुवर का बाल है। 

13. बाल नोचना- पछतावा होना  - 
 जब तक नौकरी थी तब तक तुम ढंग से काम नहीं करते थे। अब बाल नोचने से क्या लाभ ? 
जब तक हरीश की पत्‍नी साथ थी वह उस से मार-पीट करता था । जब उसकी पत्‍नी घर छोड़कर चली गई तो  बाल नोच रहा है। 




Sunday, July 2, 2023

MCQ Questions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब with Answers

 

MCQ Questions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब with Answers



मैं लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता। जवाब ही क्या था। अपराध तो मैंने किया, लताड़ कौन सहे? भाई साहब उपदेश की कला में निपुण थे। ऐसी-ऐसी लगती बातें कहतें ,ऐसे-ऐसे सूक्ति बाण चलाते कि मेरे जिगर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते और हिम्मत टूट जाती। इस तरह जान तोड़ कर मेहनत करने की शक्ति मैं अपने में न पाता था। और उस निराशा में ज़रा देर के लिए सोचने लगता-’क्यों न घर चला जाऊँ। जो काम मेरे बूते से बाहर है, उसमें हाथ डालकर क्यों अपनी जिंदगी खराब करूँ।’ मुझे अपना मूर्ख रहना मंजूर था, लेकिन उतनी मेहनत से मुझे तो चक्कर आ जाता था, लेकिन घंटे-दो-घंटे के बाद निराशा के बादल फट जाते और मैं इरादा करता कि आगे से खूब जी लगाकर पढूँगा। चटपट एक टाइम-टेबिल बना डालता। बिना पहले से नक्शा बनाए कोई स्कीम तैयार किए बिना कैसे शुरु करूँ।टाइम-टेबिल में खेलकूद की मद बिलकुल उड़ जाती।

1. लेखक किसकी लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता?

  1. बड़े भाई साहब की                        
  2.  दादा की
  3. अध्यापक की                 
  4. इनमें से कोई नहीं|
उत्तर:
    1 बड़े भाई साहब की।

2. लेखक द्वारा आँसू बहाने का क्या कारण था?

  1. बड़े भाई साहब का उपदेश देना          
  2. बड़े भाई की डाँट सुनना
  3. अध्यापक द्वारा दंडित करना                 
  4. कक्षा में अनुत्तीर्ण होना।
उत्तर:
2.बड़े भाई साहब की  डाँट सुनना

3. भाई साहब की डाँट सुनने के बाद निराश हुआ छोटा भाई क्या सोचने लगता था?

  1. पढ़ाई मन लगाकर करूँगा      
  2. क्यों न घर वापस चला जाऊँ
  3. पुनः खेल खेलने चला जाऊँ         
  4. उनकी बातों पर कोई ध्यान न दूँ।   
उत्तर:
2.घर वापस चला जाऊँ।~

4. भाई साहब हर समय छोटे भाई को क्या उपदेश देते थे? 

  1. पढ़ाई  करने का                          
  2. खेल-कूद न करने का 
  3. समय व्यर्थ न करने का        
  4. उपर्युक्त सभी। 

उत्तर:

2. पर्युक्त सभी।

5. निराशा के बादल हटने पर छोटा भाई क्या निश्चय करता था?

  1. अपने बूते से बाहर का काम नहीं करना    
  2. दादा के पास घर  चले जाने का।
  3. बड़े भाई को खूब परेशान करने का    
  4. खूब मन लगाकर पढ़ाई करना

उत्तर:

                (iv) खूब मन लगाकर पढ़ाई करना 

मेरा  टाइम-टेबिल  बना  लेना एक बात है, उसपर अमल करना दूसरी बात। पहले ही दिन उसकी अवहेलना शुरू हो जाती । मैदान की वह सुखद हरियाली, हवा के हलके-हलके झोंके, फुटबॉल की वह उछल-कूद , कबड्डी के वह दाँव-घात , वॉलीबाल की वक तेज़ी और फुरती, मुझे अज्ञात और अनिवार्य रूप से खींच ले जातीऔर वहाँ जाते ही मैं सबकुछ भूल जाता। वह जानलेवा टाइम-टेबिल, वह आँख-फोड़ पुस्तकें, किसी की याद न रहती और भाई साहब को नसीहत और फ़जीहत का अवसर मिल जाता। मैं उनके साए से भागता, उनकी आँखों से दूर रहने की चेष्टा करता, कमरे में इस तरह दबे पाँव आता कि उन्हें खबर न हो। उनकी नज़र मेरी ओर उठी और मेरे प्राण निकले। हमेशा सिर पर एक नंगी तलवार सी लटकती मालूम होती। फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का तरस्कार न कर सकता था।

1.लेखक टाइम-टेबिल की अवहेलना क्यों कर देता था?

(i) भाई की डाँट फटकार के कारण          

(ii) खेल - कूद के शौक के कारण        

(iii) मैदान की वह सुखद हरियाली के कारण   

(iv)पढ़ाई में होशियार होने के कारण

उत्तर:

(ii) खेल - कूद के शौक के कारण   

 2. बड़े भाई को नसीहत और फ़जीहत का अवसर कैसे मिल जाता ?

(i) जानलेवा टाइम-टेबिल  के कारण           (ii) ज्यादा पढ़ने के कारण

(iii)  पढ़ाई   की अवहेलना के कारण      (iv) खेल-कूद का तिरस्कार करने के कारण   

उत्तर:

(iii)  पढ़ाई   की अवहेलना के कारण  

3. सिर पर एक नंगी तलवार सी लटकने का अर्थ है --

(i)जान का खतरा होना               (ii) लड़ने के लिए तलवार निकालना

  (iii)हिम्मत हारना                      (iv) तलवार ले कर घूमना  

उत्तर:

(i)जान का खतरा होना   

4.छोटा भाई किसके साए से भागता थे ?

(i) अध्यापक के                      (ii) पिताजी के

(iii) बड़े भाई साहब के                     (iv) खेल-कूद के

उत्तर:

(iii) बड़े भाई साहब के  

5. ’ दबे पाँव आना’ का अर्थ है-

(i) पाँव दबा कर आना                 (ii) भाई के पाँव दबाना

(iii) जोर से आवाज़ करना                    (iv) बिना आ्वाज़ किए आना

उत्तर:

(iv) बिना आ्वाज़ किए आना



विराम चिह्न ‘Punctuation

 विराम चिह्न /Punctuation  छोड़ो मत मारो   मोटे वाक्यों को आप निम्न में से किसी एक प्रकार से पढ़ सकते हैं।  "छोड़ो ,मत मारो  ।"  &quo...