Wednesday, July 12, 2023

कविता गुड़िया

कविता गुड़िया 

कविता पढ़ना बच्चों को बहुत पसंद होता है। बच्चे ही क्यों बड़े भी कविताओं से आनंदित होते हैं। यहाँ पर कुँवर नारायण जी की  एक ऐसी ही कविता उद्धृत की गई है जो बाल मन को तो गुदगुदाती ही है, बड़ों को भी अपना बचपन याद दिला देती है। 

मेले से लाया हूँ इसको 
छोटी सी प्यारी गुड़िया 
नुक्कड़ पर बैठी बुढ़िया
बेच रही थी इसे भीड़ में

मोल भाव करके हूँ लाया
ठोक बजा कर देख लिया,
आँख खॊल मूँद सकती है
यह कहती है पिया- पिया।

जड़ी सितारों से है इसकी 
चुनरी लाल रंग वाली
 बड़ी भली हैं इसकी आँखें 
मतवाली काली-काली ।

ऊपर से है बड़ी सलोनी
अंदर गुदड़ी है तो क्या?
ओ गुड़िया तू इस पल मेरे 
शिशु मन पर विजयी माया।

रखँगा मैं तुझे खिलौनों की 
अपनी अलमारी में।
कागज़ के फूलों की नन्हीं
रंगारंग फुलवारी में ।

 नये-नये कपड़े- गहनों से
 तुझको रोज़ सजाऊँगा, 
खेल -खिलौनों की दुनियाँ में 
तुझको परी बनाऊँगा। 

कवि कुँवर नारायण  





 

 

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