Saturday, January 6, 2024

चित्र वर्णन 1

 चित्र वर्णन 1

सीबीएसई में छोटी कक्षाओं से लेकर कक्षा 9वीं तक चित्र वर्णन एक मुख्य रचनात्मक प्रश्न है। इसमें छात्र को कोई साधारण सा चित्र देकर उसका वर्णन करने को कहा जाता है। यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पूरे पाँच अंक का प्रश्न है। चित्र वर्णन की सीमा 50 से 60 शब्दों तक है। इसीलिए कम शब्दों में अधिक भाव डल कर चित्र वर्णन किया जाना चाहिए।

चित्र वर्णन  का उद्देश्य छात्र की लेखन क्षमता का विकास है। छात्रों की लेखन क्षमता बढ़ाने के लिए उनकी आयु के अनूकूल भिन्न -भिन्न चित्र रखे जाने चाहिए और उसी अनुसार एक बच्चे से उस चित्र के वर्णन की अपेक्षा रखी जानी चाहिए। एक छोटी कक्षा के बच्चे से आशा की जाती है कि  बच्चा चित्र में दिखाई देने वाली मुख्य वस्तुओं को पहचानते हुए उन पर वाक्य बना सकने की क्षमता रखे। वहीं कक्षा आठवीं और नौवीं के बच्चों से अपेक्षा की जाती है कि वे चित्र के पीछॆ छिपे भाव और उस चित्र को देखकर उस विषय पर मन में आने वाले  भावों को कलमबद्ध कर सके। 

नीचे इसे उदाहरण द्वारा समझाया गया है- 

 चित्र वर्णन : कक्षा 4,5 और 6 के छात्रों द्वारा-


यह बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं। इसमें पाँच बच्चे हैं। एक लड़के ने बैट पकड़ा है। बैट उपर उठा रखा है।  दूसरे बच्चे फील्डिंग कर रहे हैं। वह रोड पर खेल रहे हैं हैं। तीन लकड़ियाँ  स्टंप की तरह लगाई हैं।   पेड़ दिख रहे हैं । नीचे एक टोपी गिरी हुई है। पत्थर भी गिरे हुए हैं। 

चित्र वर्णन : कक्षा 7, 8 और 9वीं के छात्रों द्वारा

यह एक गाँव का दृश्य दिख रहा है जिसमें कुछ बच्चे  समुद्र किनारे क्रिकेट खेल रहे हैं। क्रिकेट एक मज़ेदार खेल है। इसकी एक खूबी यह है कि इसे दो बच्चे भी खेल सकते है और पूरी टीम के साथ भी। दूसरी बात यह कि इसे कहीं भी कभी भी खेला जा सकता है,इसीलिए क्रिकेट इतना अधिक प्रचलित हो गया।  गाँव के बच्चे कम सुविधा में लकड़ी के स्टंप लगाकर ही खेल रहे हैं। इनके पास खेलने के लिए उचित सामान भी नहीं है।  इन्हें इस प्रकार खेलने से चोट भी लग सकती है। मैं चाहता हूँ कि हर बच्चे के पास खेलने के लिए अच्छा मैदान और अच्छॆ उपकरण हों। 

आशा है कि एक ही चित्र पर दो अलग वर्गों के लिखने का स्तर  किस तरह होना चाहिए , यह अंतर समझ आ गया होगा।  7वीं , 8वीं और नौंवीं के बच्चों चित्र को अलग दृष्टिकोण से देखकर अपने लेखन-कला को उभारना चाहिए और मौलिक विचारों को प्रकट करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। 



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