Sunday, October 10, 2021

NCERT Class 9 Hindi Sparsh Chapter 2 Everest Meri Shikhar Yatra Explanation, Notes and Question Answers

NCERT Class 9 Hindi Sparsh Chapter 2 Everest Meri Shikhar Yatra Explanation, Notes and Question Answers

एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

लेखक परिचय :

बचेंद्री पाल

लेखिका का नाम : बचेंद्री पाल

जन्म : 24 मई 1954 , उत्तराखंड के चमोली जिले के बंपा गाँव में।

माता का नाम : हंसादेई नेगी पिता का नाम: किशन सिंह पाल

बचेंद्री पाल अपने माता-पिता की पाँच संतानों में से तीसरी संतान हैं । आर्थिक समस्याओं के कारण पिता पढ़ाई का खर्च उठा पाने में असमर्थ थे। अत: आठवी कक्षा के बाद से बचेंद्री ने अपनी शिक्षा का खर्च सिलाई कढ़ाई कर स्वयं उठाया था। उस समय ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा नहीं देते थे। बचेंद्री के दसवीं पास कर लेने पर उनके माता-पिता भी उनके विवाह के बारे में सोचने लगे । किंतु उनके प्रधानाध्यापक के द्वारा समझाने पर बचेंद्री को उच्च शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति मिल गई । बचेंद्री पाल ने अवसर का लाभ उठाते हुए संस्कृत में एम.ए. किया और बी.एद. कर प्रशिक्षित अध्यापिका बन गई ।

बचेंद्री को बचपन से ही पर्वतारोहण का शौक था । पर्वतीय क्षेत्र की होने के कारण उन्हें पर्वतारोहण का अनुभव भी था। अत: पढ़ाई पूरी करने के बाद बचेंद्री पाल ने अपने शौक पूरा करने के लिए अवसर ढूँढना प्रारंभ किया। इसी दौरान महिलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए इंडियन माउंटेन फाउंडेशन ने एवरेस्ट अभियान पर जाने वाली महिलाओं की खोज शुरू की । अवसर का लाभ उठाते हुए बचेंद्री इस अभियान दल में शामिल हो गईं और ट्रेनिंग के दौरान 7500 मीटर ऊँची मान चोटी पर सफलता पूर्वक चढ़ीं। कई महीनों के अभ्यास और कठिन परिश्रम के बाद बचेंद्री पाल को 7 मार्च 1986 को एवरेस्ट अभियान में जाने का अवसर मिला । 22 मई 1984 को बचेंद्री पाल ने अपने अभियान दल के सदस्य अंग दोरजी के साथ एवरेट विजय करने में सफलता पाई । इसके साथ ही बचेंद्री पाल एवरेस्ट विजय करने वाली प्रथम भारतीय और विश्व की पाँचवी महिला पर्वतारोही बन गईं ।

एवरेस्ट विजय के बाद भी बचेंद्री पाल अनेक पर्व‍तारोही अभियानों से जुड़ी रहीं , जिसमें इंडो नेपालीज़ वोमेन माउंट एवेरेस्ट एक्स्पीडिशन प्रमुख है जिसमें 1993 में सात महिला पर्वतारोही शिखर पर पहुँची थी । बचेंद्री पाल अनेक सामाजिक कार्यों में भी हिस्सा लेती रहीं हैं ।वर्तमान में इस्पात कंपनी 'टाटा स्टील' में कार्यरत, जहाँ चुने हुए लोगो को रोमांचक अभियानों का प्रशिक्षण देती हैं।

पुरस्कार : बचेंद्री पाल को अनेक सम्मान और पुरस्कार प्राप्त होते रहे हैं जिनमें कुछ प्रमुख पुरस्कार नीचे दिए गए हैं ।

1.भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन से पर्वतारोहण में उत्कृष्टता के लिए स्वर्ण पदक 1984

2.पद्मश्री पुरस्कार 1984

3.उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग द्वारा स्वर्ण पदक 1985 ।

4. नेशनल एडवेंचर पुरस्कार भारत सरकार 1994 ।

बचेंद्री पाल राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद द्वारा प्रदान भारत का तृतीय सर्वोच्च पुरस्कार पद्म भूषण ग्रहण करते हुए

5. अर्जुन पुरस्कार भारत सरकार 1986

6.इसके अतिरिक्त बचेंद्रीपाल को भारत का तृतीय सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण 16 मार्च 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद द्वारा प्रदान किया गया ।

’एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा ” लेखिका बचेंद्री पाल की रोमांचक पर्वतारोहण यात्रा का स्वयं लिखा हुआ विवरण है। उसी का अंश यह पाठ है जिसमें लेखिका ने एवरेस्ट विजय के लोमहर्षक क्षण को अंकित किया है।

एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा’ पाठ की व्याख्या

एवरेस्ट अभियान दल 7 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से चल दिया। एक मजबूत अग्रिम दल बहुत पहले ही चला गया था जिससे कि वह हमारे "बेस कैंप' पहुंचने से पहले दुर्गम हिमपात के रास्ते को साफ़ कर सके।

दुर्गम= inaccessible हिमपात snowfall एवरेस्ट अभियान दल Everest expedition team अग्रिम दल front team /advance party

व्याख्या: बचेंद्री पाल अपने एवरेस्ट अभियान दल ( expedition team) बचेंद्री पाल के साथ 7 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज से रवाना हुई । उनसे पहले ही एक अन्य मजबूत दल एवरेस्ट के लिए निकल पड़ा था जिससे कि वह बचेंद्री के एवरेस्ट अभियान दल के बेस कैंप पहुँचने से पहले ही वहाँ के कठिन बर्फ़ भरे रास्ते को साफ़ कर सके।

नमचे बाजार, शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है। अधिकांश शेरपा इसी स्थान तथा यहीं के आसपास के गाँवों के होते हैं। यह नमचे बाजार ही जहाँ से मैंने सर्वप्रथम एवरेस्ट को निहारा, जो नेपालियों में 'सागरमाथा' के नाम से प्रसिद्ध है। मुझे यह नाम अच्छा लगा।

सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र most important urban area

व्याख्या: नमचे बाजार नेपाल के शेरपालैंड का एक सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण शहरी इलाका है ।शेरपा नेपाल में रहने वाली एक जनजाति (tribe) है और उसी जनजाति के नाम पर इस स्थान का नाम शेरपालैंड पड़ा है। वे लोग नमचे बाजार के आसपास के गाँवों में ही बसे हुए हैं । नमचे बाजार से ही लेखिका बचेंद्री पाल ने बार एवरेस्ट को देखा था । नेपाल में एवरेस्ट को सागरमाथा के नाम से जाना जाता है । लेखिका को सागरमाथा नाम पसंद आया।

एवरेस्ट की तरफ़ गौर से देखते हुए, मैंने एक भारी बर्फ़ का बड़ा फूल (प्लूम) देखा, जो पर्वत शिखर पर लहराता एक ध्वज-सा लग रहा था। मुझे बताया गया कि वह दृश्य शिखर की ऊपरी सतह के आसपास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक की गति से हवा चलने के कारण बनता था, क्योंकि तेज़ हवा से सूखा बर्फ पर्वत पर उड़ता रहता था। बर्फ़ का यह ध्वज 10 किलोमीटर या इससे भी लंबा हो सकता था। शिखर पर जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को दक्षिण-पूर्वी पहाड़ी पर इन तूफ़ानों को झेलना पड़ता था, विशेषकर खराब मौसम में। यह मुझे डराने के लिए काफ़ी था, फिर भी मैं एवरेस्ट के प्रति विचित्र रूप से आकर्षित थी और इसकी कठिनतम चुनौतियों का सामना करना चाहती थी।

शिखर peak ध्वज flag

व्याख्या: लेखिका ने एवरेस्ट को ध्यानपूर्वक देखा । लेखिका ने एक बड़ा भारी बर्फ़ का प्लूम देखा जो कि एक लहराते हुए (waving )झंडे के समान दिख रहा था । यह दृश्य एवरेस्ट की चोटी के ऊपरी सतह के आस-पास 150 किलोमीटर या इससे भी अधिक तेज़ चाल से चलने वाली हवा के कारण बनता है । क्योंकि तेज़ हवा में सूखा हुआ बर्फ़ पर्वत पर उड़ता रहता है और एक स्थान से दूसरी जगह पर इकट्ठा होता रहता है ।इस घटना को आप रेगिस्तानी रेत के एक स्थान से दूसरे स्थान पर इकट्ठे होने की घटना से समझ सकते हैं । बर्फ़ का ध्वज दस किलोमीटर या इससे भी अधिक लंबा हो सकता था ।शिखर पर जाने वाले हर व्यक्ति को दक्षिण-पूर्वी पहाड़ी पर इन तूफ़ानों का सामना करना पड़ता है । मौसम जब खराब होता है तो ऐसी परिस्थितियाँ अधिक हो जाती हैं । ये परिस्थितियाँ किसी भी व्यक्ति को डराने के लिए काफ़ी थीं । लेखिका भी इन परिस्थितियों से डर सकतीं थीं । किंतु लेखिका एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए काफ़ी उत्सुक थीं । और इसकी कठिनतम चुनौतियों का सामना करना चाहतीं थीं।

जब हम 26 मार्च को पैरिच पहुँचे, हमें हिम-स्खलन के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का दुःखद समाचार मिला। खुंभु हिमपात पर जानेवाले अभियान-दल के रास्ते के बाईं तरफ़ सीधी पहाड़ी के धसकने से, ल्होत्से की ओर से एक बहुत बड़ी बर्फ़ की चट्टान
नीचे खिसक आई थी। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे।

हिमपात snowfall धसकने subside

व्याख्या: 26 मार्च को लेखिका अपने दल के साथ पैरिच पहुँची , उसी दिन उन्हें हिम-स्खलन के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का समाचार मिला । बचेंद्री पाल कहती हैं कि खुंभु हिमपात पर जानेवाले अभियान-दल के रास्ते के बाईं तरफ़ सीधी पहाड़ी के धसकने से, ल्होत्से की ओर से एक बहुत बड़ी बर्फ की चट्टान नीचे खिसक आई थी। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे।

इस समाचार के कारण अभियान दल के सदस्यों के चेहरों पर छाए अवसाद को देखकर हमारे नेता कर्नल खुल्लर ने स्पष्ट किया कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।

अवसाद Depression सहज भाव taking with ease

व्याख्या: इस समाचार के कारण बचेंद्री पाल के अभियान दल के सदस्यों के चेहरों पर छाई उदासी को देखकर उनके दल के नेता कर्नल खुल्लर ने सभी सदस्यों को स्पष्ट शब्दों में बताया कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु को भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए। उनके कहने का अभिप्राय था कि एवरेस्ट पर चढ़ाई करना कोई आसान काम नहीं है, वहाँ पर जाना मौत के मुँह में कदम रखने के बराबर है।

उपनेता प्रेमचंद, जो अग्रिम दल का नेतृत्व कर रहे थे, 26 मार्च को पैरिच लौट आए। उन्होंने हमारी पहली बड़ी बाधा खुंभु हिमपात की स्थिति से हमें अवगत कराया। उन्होंने कहा कि उनके दल ने कैंप-एक (6000 मी.), जो हिमपात के ठीक ऊपर है, वहाँ तक का रास्ता साफ़ कर दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ता चिह्नित कर, सभी बड़ी कठिनाइयों का जायजा ले लिया गया है। उन्होंने इस पर भी ध्यान दिलाया कि ग्लेशियर बर्फ़ की नदी है और बर्फ़ का गिरना अभी जारी है। हिमपात में अनियमित और अनिश्चित बदलाव के कारण अभी तक के किए गए सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं और हमें रास्ता खोलने का काम दोबारा करना पड़ सकता है।

अनियमित irregular अनिश्चित uncertain

व्याख्या: लेखिका के दिल्ली से रवाना होने से पहले ही एक अन्य दल लेखिका के दल की सहायता करने के लिए रवाना हुआ था । यह अग्रिम दल (आगे चलने वाला दल) जिसका नेतृत्व उपनेता प्रेमचंद कर रहे थे 26 मार्च को पैरिच लौट आया और उन्होंने खुंभु हिमपात की स्थिति के बारे में लेखिका के दल को बताया। खुंभु एवरेस्ट के मार्ग पर पड़ने वाला एक ग्लेशियर है जहाँ अकसर बर्फ़बारी होती रहती है । यह स्थान पर्वतारोहियों के लिए एक बड़ी बाधा के रूप में देखा जाता है । प्रेमचंद ने बताया कि अग्रिम दल ने खुंभु हिमपात के ठीक ऊपर कैंप -1 लगाया है और यह स्थान 6000 मी. की ऊँचाई पर है । यहाँ तक रास्ता बना दिया गया है । अस्थाई पुल बना दिये गए हैं और रस्सियाँ बाँधकर और झंडियाँ लगाकर मार्ग चिह्नित कर दिया गया है । साथ ही सभी कठिनायों के बारे में जाँच कर ली गई है । प्रेमचंद ने यह भी बताया कि ग्लेशियर एक बर्फ़ की नदी होती है और बर्फ़ का गिरना अभी तक जारी है जिसके कारण संभव है कि कुछ अनियमित और अनिश्चित बदलाव करने पड़ सकते हैं अथवा सभी अब तक के कार्य जैसे - रस्सी बाँधना , झंडियों से रास्ते का निशान लगाना या रास्ता खोलने का काम दोबारा करना पड़ सकता है।

'बेस कैंप' में पहुँचने से पहले हमें एक और मृत्यु की खबर मिली। जलवायु -अनुकूल न होने के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी। निश्चित रूप से हम आशाजनक स्थिति में नहीं चल रहे थे।

एवरेस्ट शिखर को मैंने पहले दो बार देखा था, लेकिन एक दूरी से। बेस कैंप पहुँचने पर दूसरे दिन मैंने एवरेस्ट पर्वत तथा इसकी अन्य श्रेणियों को देखा। मैं भौंचक्की होकर खड़ी रह गई और एवरेस्ट, ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरी, बर्फीली टेढ़ी-मेढ़ी नदी को निहारती रही।

जलवायु -अनुकूल न होना unfavourable climate श्रेणियों series भौंचक्की surprised

व्याख्या: बचेंद्री पाल कहती हैं कि ‘बेस कैंप’ में पहुँचने से पहले उन्हें और उनके साथियों को एक और मृत्यु की खबर मिली। जलवायु के सही न होने के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी। निश्चित रूप से अब बचेंद्री पाल और उनके साथी कोई अच्छी उम्मीद वाली स्थिति में न थे । सभी घबराए हुए थे। एवरेस्ट शिखर को बचेंद्री पाल ने पहले दो बार देखा था, लेकिन दूरी से ही देखा था इस बार लेखिका को एवरेस्ट निकट से देखने का अवसर मिला। बेस कैंप पहुँचने पर दूसरे दिन बचेंद्री पाल ने एवरेस्ट पर्वत तथा इसकी दूसरी श्रेणियों को देखा। बचेंद्री पाल हैरान होकर खड़ी रह गई और एवरेस्ट, ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरी, बर्फीली टेढ़ी-मेढ़ी नदी को देखती रह गईं ।(एवरेस्ट, ल्होत्से और नुत्से पर्वत श्रंखलाओं के नाम हैं)

हिमपात अपने आपमें एक तरह से बर्फ के खंडों का अव्यवस्थित ढंग से गिरना ही था। हमें बताया गया कि ग्लेशियर के बहने से अकसर बर्फ़ में हलचल हो जाती थी, जिससे बड़ी-बड़ी बर्फ़ की चट्टानें तत्काल गिर जाया करती थीं और अन्य कारणों से भी अचानक प्राय: खतरनाक स्थिति धारण कर लेती थीं। सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चौड़े हिम-विदर में बदल जाने का मात्र खयाल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रवास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।

बर्फ के खंड ice blocks चट्टान rocks तत्काल quickly हिम-विदर snow fissure

आरोहियों climbers/ mountaineers

व्याख्या:हिमपात में बर्फ़ के टुकड़े बेतरतीब तरीके से गिरते रहते हैं । पर्वतारोहियों को बताया गया कि कई बार ग्लेशियर के बहने से बर्फ़ में कुछ हलचल भी हो जाती है जिससे बड़ी बड़ी चट्टानें भी गिर जाती हैं । यह स्थिति अकसर काफ़ी खतरनाक हो जाती है क्योंकि ऐसे समय में एक धारातल सा दिखने वाला क्षेत्र अचानक से एक बड़ी सी दरार में बदल जाता है । लेखिका लिखतीं हैं कि यह स्थिति सोच कर ही डर सा लगता है और इससे भीअधिक भयानक बात यह थी कि पर्वतारोहियों की टोली को जानकारी दी गई कि एवरेस्ट प्रवास stay के दौरान हिमपात एक दर्ज़न पर्वतारोहियों mountaineers और कुलियों ( helpers who carry luggage ) को लगातार छूता रहेगा अर्थात लगातार हिमपात होने की संभावना थी ।

दूसरे दिन नए आनेवाले अपने अधिकांश सामान को हम हिमपात के आधे रास्ते
तक ले गए। डॉ. मीनू मेहता ने हमें अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुलों का
बनाना, लट्ठों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को
बाँधना और हमारे अग्रिम दल के अभियांत्रिकी कार्यों के बारे में हमें विस्तृत जानकारी दी।

तीसरा दिन हिमपात से कैंप-एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के
लिए निश्चित था। रीता गोंबू तथा मैं साथ-साथ चढ़ रहे थे। हमारे पास एक
वॉकी-टॉकी था, जिससे हम अपने हर कदम की जानकारी बेस कैंप पर दे रहे थे।
कर्नल खुल्लर उस समय खुश हुए, जब हमने उन्हें अपने पहुँचने की सूचना दी
क्योंकि कैंप-एक पर पहुँचनेवाली केवल हम दो ही महिलाएँ थीं।

अंगदोरजी, लोपसांग और गगन बिस्सा अंततः साउथ कोल पहुँच गए और 29
अप्रैल को 7900 मीटर पर उन्होंने कैंप-चार लगाया। यह संतोषजनक प्रगति थी।

संतोषजनक प्रगति satisfactory progress सामान ढोना carry luggage अभियांत्रिकी technical

व्याख्या: बचेंद्री पाल कहती हैं कि दूसरे दिन नए आने वाले अपने ज़्यादातर सामान को वे हिमपात के आधे रास्ते तक ले गए। डॉ मीनू मेहता ने बचेंद्री पाल और उनके साथियों को अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुलों का बनाना, लठ्ठों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना और उनके पहले दल के तकनीकी कार्यों के बारे में उन्हें विस्तार से सारी जानकारी दी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि उनका तीसरा दिन हिमपात से कैंप-एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के लिए पहले से ही निश्चित था। रीता गोंबू तथा बचेंद्री पाल साथ-साथ चढ़ रहे थे। उनके पास एक वॉकी-टॉकी था, जिससे वे अपने हर कदम की जानकारी बेस कैंप पर दे रहे थे। कर्नल खुल्लर उस समय खुश हुए, जब रीता गोंबू तथा बचेंद्री पाल ने उन्हें अपने पहुँचने की सूचना दी क्योंकि कैंप-एक पर पँहुचने वाली केवल वे ही दो महिलाएँ थीं। अंग दोरजी , लोपसांग और गगन बिस्सा भी अंत में साउथ कोल कैंप में पहुँच गए। 29 अप्रैल को 7900 मीटर पर उन्होंने कैंप-चार लगाया। लेखिका ने इस प्रगति को संतोषजनक बताया ।।

जब अप्रैल में मैं बेस कैंप में थी, तेनजिंग अपनी सबसे छोटी सुपुत्री डेकी के साथ
हमारे पास आए थे। उन्होंने इस बात पर विशेष महत्त्व दिया कि दल के प्रत्येक सदस्य
और प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। जब मेरी बारी आई, मैंने अपना परिचय
यह कहकर दिया कि मैं बिलकुल ही नौसिखिया हूँ और एवरेस्ट मेरा पहला अभियान
है। तेनजिंग हँसे और मुझसे कहा कि एवरेस्ट उनके लिए भी पहला अभियान है, लेकिन
यह भी स्पष्ट किया कि शिखर पर पहुँचने से पहले उन्हें सात बार एवरेस्ट पर जाना पड़ा
था। फिर अपना हाथ मेरे कंधे पर रखते हुए उन्होंने कहा, "तुम एक पक्की पर्वतीय
लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।"

नौसिखिया novice / beginner पर्वतीय लड़की mountain girl

व्याख्या: जब अप्रैल में लेखिका अपने बेस कैंप में थी उसी दौरान उनकी मुलाकात प्रथम एवरेस्ट विजेताओं में से एक तेनजिंग से हुई थी जो अपनी पुत्री डेकी के साथ अभियान दल के लोगों से मिलने आए थे। तेनजिंग की सहृदय का उल्लेख करते हुए वह लिखती हैं कि उन्होंने यह कोशिश की कि वे अभियान दल के हर सदस्य और हर शेरपा कुली से बात करें । लेखिका ने तेनजिंग को अपना परिचय एक नौसिखिया पर्वतारोही के रूप में दिया और बताया कि यह लेखिका का एवरेस्ट विजय का प्रथम प्रयास है । तेनजिंग हँसे और कहा कि एवरेस्ट उनके लिए भी पहला अभियान है लेकिन यह भी बताया कि तेनजिंग अपने सातवें प्रयास में एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ सके थे। उन्होंने बचेंद्री का उत्साह बढ़ाने के लिए कहा कि तुम एक पक्की पहाड़ी लड़की लगती हो ,अतः तुम्हें तो एवरेस्ट की चोटी पर अपनी पहली कोशिश में ही पहुँच जाना चाहिए।

15-16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन मैं ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलॉन के बने तंबू के कैंप-तीन में थी। कैंप में 10 और व्यक्ति थे।लोपसांग, तशारिंग मेरे तंबू में थे, एन.डी. शेरपा तथा और आठ अन्य शरीर से मज़बूत और ऊँचाइयों में रहनेवाले शेरपा दूसरे तंबुओं में थे।मैं गहरी नींद में सोई हुई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग मेरे सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज के टकराने से मेरी नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक जोरदार धमाका भी हुआ। तभी मुझे महसूस हुआ कि एक ठंडी, बहुत भारी कोई चीज मेरे शरीर पर से मुझे कुचलती हुई चल रही है। मुझे साँस लेने में भी कठिनाई हो रही थी।

ढलान slope तंबू tent

व्याख्या: 15-16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन लेखिका ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलॉन के बने तंबू के कैंप-तीन में थी। कैंप में 10 और व्यक्ति थे।लोपसांग, तशारिंग लेखिका के तंबू में थे, एन.डी. शेरपा तथा और आठ अन्य शरीर से मज़बूत और ऊँचाइयों में रहनेवाले शेरपा दूसरे तंबुओं में थे।उस समय बचेंद्री पाल गहरी नींद में सोई हुई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग उनके सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज के टकराने से नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक जोरदार धमाका भी हुआ। तभी लेखिका ने महसूस किया कि एक ठंडी, बहुत भारी कोई चीज उनके शरीर पर से कुचलती हुई चल रही है। उन्हें साँस लेने में भी कठिनाई हो रही थी।

यह क्या हो गया था? एक लंबा बर्फ का पिंड हमारे कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका विशाल हिमपुंज बना गया था। हिमखंडों, बर्फ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ के इस विशालकाय पुंज ने, एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज गति और भीषण गर्जना के साथ, सीधी ढलान से नीचे आते हुए हमारे कैंप को तहस-नहस कर दिया। वास्तव में हर व्यक्ति को चोट लगी थी। यह एक आश्यर्च था कि किसी की मृत्यु नहीं हुई थी।

लोपसांग अपनी स्विस छुरी की मदद से हमारे तंबू का रास्ता साफ़ करने में सफल हो गए थे और तुरंत ही अत्यंत तेजी से मुझे बचाने की कोशिश में लग गए। थोड़ी-सी भी देर का सीधा अर्थ था मृत्यु। बड़े-बड़े हिमपिंडों को मुश्किल से हटाते हुए उन्होंने मेरे चारों तरफ़ की कड़े जमे बर्फ की खुदाई की और मुझे उस बर्फ की कब्र से निकाल बाहर खींच लाने में सफल हो गए।

कब्र Grave

व्याख्या: बचेंद्री पाल यह जान न सकी कि यह क्या हो रहा था । एक बड़ा लंबा बरफ़ का टुकड़ा ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर उनके कैंप के ठीक ऊपर आ गिरा था और एक विशाल बर्फ़ का ढेर सा बन गया था । लेखिका ने इस हिमखंडों, बर्फ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ के इस विशालकाय पुंज के कैंप पर गिरने की तुलना एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज गति और भीषण गर्जना के साथ की । इस बर्फ़ की चट्टान ने सीधी ढलान से नीचे आते हुए बचेंद्री पाल के कैंप को तहस-नहस कर दिया। इस घटना में भाग्यवश किसी की मृत्यु नहीं हुई । किंतु हरेक को चोट आई थी। लेखिका अपने टाईंट में दबी हुई थी उनके दल के सदस्य लोपसांग ने अपनी स्विस छुरी की मदद से लेखिका के टैंट का रास्ता साफ़ किया और अत्यंत तेज़ी से उन्हें बचाने की कोशिश में लग गए। क्योंकि थोड़ी सी देर होने पर मृत्यु का खतरा था । बड़े- बड़े बर्फ़ के टुकड़े हताते हुए उन्होंने बचेंद्री पाल के चारों ओर जमी कड़ी बर्फ़ की तेज़ी से खुदाई की और लेखिका को वहाँ से निकाल लेने में सफ़लता पाई । इस खतरनाक हादसे में लेखिका मौत के मुँह से बचकर बाहर आईं थीं ।

सुबह तक सारे सुरक्षा दल आ गए थे और 16 मई को प्रातः 8 बजे तक हम प्रायः सभी कैंप-दो पर पहुँच गए थे। जिस शेरपा की टाँग की हड्डी टूट गई थी, उसे एक खुद के बनाए स्ट्रेचर पर लिटाकर नीचे लाए। हमारे नेता कर्नल खुल्लर के शब्दों में, "यह इतनी ऊँचाई पर सुरक्षा कार्य का एक ज़बरदस्त साहसिक कार्य था।"सभी नौ पुरुष सदस्यों को चोटों अथवा टूटी हड्डियों आदि के कारण बेस कैंप में भेजना पड़ा। तभी कर्नल खुल्लर मेरी तरफ़ मुड़कर कहने लगे, “क्या तुम भयभीत थी?"

“जी हाँ। "

"क्या तुम वापिस जाना चाहोगी?"

"नहीं" मैंने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया।

व्याख्या: बचेंद्री पाल कहती हैं कि अगली सुबह तक सारे सुरक्षा दल आ गए थे और 16 मई को प्रातः 8 बजे तक वे सभी कैम्प-दो पर पहुँच गए थे। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जिस शेरपा की टाँग की हड्डी टूट गई थी, उसे खुद के बनाए हुए स्ट्रेचर पर लिटाकर बेस कैंप भेजा गया। बचेंद्री पाल और उनके दल के नेता कर्नल खुल्लर ने पिछली रात को हुए हादसे को उनके शब्दों में कुछ इस तरह कहा कि यह इतनी ऊँचाई पर सुरक्षा-कार्य का एक अत्यंत साहस से भरा कार्य था। बचेंद्री पाल कहती हैं कि सभी नौ पुरुष सदस्यों को जिन्हें चोटें आई थी और हड्डियां टूटी थी उन्हें बेस कैंप में भेजना पड़ा। तभी कर्नल खुल्लर बचेंद्री पाल की तरफ मुड़े और कहने लगे कि क्या वह डरी हुई है? बचेंद्री पाल ने हाँ में उत्तर दिया। कर्नल खुल्लर के फिर से पूछने पर कि क्या वह वापिस जाना चाहती है? बचेंद्री पाल ने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया कि वह वापिस नहीं जाना चाहती।

जैसे ही में साउथ कोल कैंप पहुँची, मैंने अगले दिन की अपनी महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। मैंने खाना, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्ठे किए। जब दोपहर डेढ़ बजे बिस्सा आया, उसने मुझे चाय के लिए पानी गरम करते देखा की जय और मीनू अभी बहुत पीछे थे। मैं चिंतित थी क्योंकि मुझे अगले दिन उनके साथ ही चढ़ाई करनी थी। वे धीरे-धीरे आ रहे थे क्योंकि वे भारी बोझ लेकर और बिना ऑक्सीजन के चल रहे थे।

व्याख्या :जैसे ही बचेंद्री पाल साउथ कोल कैंप पहुँची, उन्होंने अगले दिन की अपनी महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। बचेंद्री पाल ने खाना, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्ठे किए। जब दोपहर डेढ़ बजे बिस्सा आया, तो उसने बचेंद्री पाल को चाय के लिए पानी गरम करते देखा। की, जय और मीनू अभी बहुत पीछे थे। बचेंद्री पाल चिंतित थी क्योंकि उन्हें अगले दिन उनके साथ ही चढ़ाई करनी थी। वे धीरे-धीरे आ रहे थे क्योंकि वे भारी बोझ लेकर और बिना ऑक्सीजन के चल रहे थे।

दोपहर बाद मैंने अपने दल के दूसरे सदस्यों की मदद करने और अपने एक
थरमस को जूस से और दूसरे को गरम चाय से भरने के लिए नीचे जाने का निश्चय
किया। मैंने बर्फ़ीली हवा में ही तंबू से बाहर कदम रखा। जैसे ही मैं कैंप क्षेत्र से बाहर
आ रही थी मेरी मुलाकात मीनू से हुई। की और जय अभी कुछ पीछे थे। मुझे जय
जेनेवा स्पर की चोटी के ठीक नीचे मिला। उसने कृतज्ञतापूर्वक चाय वगैरह पी लेकिन
मुझे और आगे जाने से रोकने की कोशिश की। मगर मुझे की से भी मिलना था।
थोड़ा-सा और आगे नीचे उतरने पर मैंने की को देखा। वह मुझे देखकर हक्का-बक्का
रह गया।

“तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री?"

मैंने उसे दृढ़तापूर्वक कहा, "मैं भी औरों की तरह एक पर्वतारोही हूँ, इसीलिए इस
दल में आई हूँ। शारीरिक रूप से मैं ठीक हूँ। इसलिए मुझे अपने दल के सदस्यों को
मदद क्यों नहीं करनी चाहिए।" की हँसा और उसने पेय पदार्थ से प्यास बुझाई, लेकिन
उसने मुझे अपना किट ले जाने नहीं दिया।

हक्का-बक्का Astound

व्याख्या : दोपहर के बाद लेखिका नेअपने दल के उन सदस्यों की मदद करने की सोची जो भारी सामान लेकर आ रहे थे । लेखिका ने एक थरमस में जूस और दूसरे में गरम चाय लेकर नीचे जाने का निश्चय किया। जब उन्होंने अपने तंबू से बाहर पाँव रखा तब बर्फ़ीली हवा चल रही थी कैंप क्षेत्र से बाहर आते ही लेखिका की मुलाकात दल की सदस्या मीनू से हुई । की और जय अभी पीछे थे। जय लेखिका को जेनेवा स्पर की चोटी के नीचे प मिला और उन्होंने आभार व्यक्त करते हुए चाय आदि पीये किंतु लेखिका को और नीचे उतरने से रोका क्योंकि ऐसा खतरनाक और मेहनत का काम सिद्ध होता । लेकिन लेखिका की से भी मिलना चाहती थीं । थोड़ा नीचे उतरने पर बचेंद्री पाल को की भी मिला । लेखिका चुंकि पहले ही ऊपर पहुँच चुकी थी अत: की उन्हें देख कर आश्चर्य चकित हो गया और पूछा कि तुमने इतना खतरा क्यों लिया? बचेंद्रीपाल ने दृढ़तापूर्वक उत्तर दिया कि वे भी एक पर्वतारोही हैं और इसी दल की सदस्य हैं स्वास्थ्य भी ठीक है अतः उनका कर्तव्य है कि वे अपने दल के अन्य सदस्यों की मदद करें । इस उत्तर पर की हँसा। उसने बचेंद्रीपाल द्वारा लाए पेय को पीया ।बचेंद्रीपाल ने उनका सामान उठाने की पेशकश की जिसे की ने स्वीकार नहीं किया।

थोड़ी देर बाद साउथ कोल कैंप से ल्हाटू और बिस्सा हमें मिलने नीचे उतर आए और
हम सब साउथ कोल पर जैसी भी सुरक्षा और आराम की जगह उपलब्ध थी, उस पर लौट
आए साउथ कोल 'पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर' जगह के नाम से प्रसिद्ध है।

व्याख्या : बचेंद्री पाल कहती हैं कि थोड़ी देर बाद साउथ कोल कैंप से ल्हाटू और बिस्सा उनसे मिलने नीचे उतर आए। और वे सब साउथ कोल कैंप पर जैसी भी सुरक्षा और आराम की जगह उपलब्ध थी, उस पर लौट आए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि साउथ कोल ‘पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर’ जगह के नाम से प्रसिद्ध है।

अगले दिन मैं सुबह चार बजे उठ गई बर्फ पिघलाया और चाय बनाई, कुछ बिस्कुट और आधी चॉकलेट का हलका नाश्ता करने के बाद मैं लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। अंगदोरजी बाहर खड़ा था और कोई आसपास नहीं था।

अंगदोरजी बिना ऑक्सीजन के ही चढ़ाई करनेवाला था। लेकिन इसके कारण उसके पैर ठंडे पड़ जाते थे। इसलिए वह ऊँचाई पर लंबे समय तक खुले में और रात्रि में शिखर कैंप पर नहीं जाना चाहता था। इसलिए उसे या तो उसी दिन चोटी तक चढ़कर साउथ कोल पर वापस आ जाना था अथवा अपने प्रयास को छोड़ देना था।

वह तुरंत ही चढ़ाई शुरू करना चाहता था… और उसने मुझसे पूछा, क्या मैं उसके साथ जाना चाहूँगी? एक ही दिन में साउथ कोल से चोटी तक जाना और वापस आना बहुत कठिन और श्रमसाध्य होगा! इसके अलावा यदि अंगदोरजी के पैर ठंडे पड़ गए तो उसके लौटकर आने का भी जोखिम था। मुझे फिर भी अंगदोरजी पर विश्वास था और साथ-साथ मैं आरोहण की क्षमता और कर्मठता के बारे में भी आश्वस्त थी। अन्य कोई भी व्यक्ति इस समय साथ चलने के लिए तैयार नहीं था।

आरोहण की क्षमता climbing ability आश्वस्त confident

व्याख्या : बचेंद्री पाल कहती हैं कि अगले दिन वह सुबह चार बजे उठी। उसने बर्फ को पिघलाया (क्योंकि वहाँ पानी अपने तरल रूप में उपलब्ध नहीं रहता ) और चाय बनाई, कुछ बिस्कुट और आधी चाॅकलेट का हल्का नाश्ता करने के बाद वह लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। बचेंद्री पाल ने देखा कि अंगदोरजी बाहर खड़ा था और कोई भी आसपास नहीं था। अंगदोरजी बिना ऑक्सीजन के ही चढ़ाई करनेवाला था। लेकिन इसके कारण उसके पैर ठंडे पड़ जाते थे। इसलिए वह ऊँचाई पर लंबे समय तक खुले में और रात्रि में शिखर कैंप पर नहीं जाना चाहता था। बचेंद्री पाल कहती हैं कि इसलिए उसे या तो उसी दिन चोटी तक चढ़कर साउथ कोल पर वापस आ जाना था अथवा बिना ऑक्सीजन के चढ़ाई करने की अपनी कोशिश को छोड़ देना था। बचेंद्री पाल कहती हैं कि वह तुरंत ही चढ़ाई शुरू करना चाहता था… और उसने बचेंद्री पाल से पूछा, क्या वह उसके साथ जाना चाहेगी? बचेंद्री पाल जानती थी कि एक ही दिन में साउथ कोल से चोटी तक जाना और वापस आना बहुत कठिन और बहुत मेहनत का काम होगा! इसके अलावा यदि अंगदोरजी के पैर ठंडे पड़ गए तो उसके बीच में से ही वापस लौटकर आने का भी डर था। बचेंद्री पाल को फिर भी अंगदारजी की योग्यता और पहाड़ में चढ़ने की क्षमता पर विश्वास था अत: वे अंगदोरजी के साथ चोटी पर चढ़ने के लिए तैयार हो गई। बचेंद्री पाल कहती हैं कि अन्य कोई भी व्यक्ति इस समय उसके साथ चलने के लिए तैयार नहीं था।

एवरेस्ट पर चढ़ाई करते पर्वतारोही

सुबह 6.20 पर जब अंगदोरजी और मैं साउथ कोल से बाहर आ निकले तो दिन
ऊपर चढ़ आया था। हलकी-हलकी हवा चल रही थी, लेकिन ठंड भी बहुत अधिक
थी। मैं अपने आरोही उपस्कर में काफ़ी सुरक्षित और गरम थी। हमने बगैर रस्सी के
ही चढ़ाई की। अंगदोरजी एक निश्चित गति से ऊपर चढ़ते गए और मुझे भी उनके
साथ चलने में कोई कठिनाई नहीं हुई।

आरोही उपस्कर mounting equipment/ suit

व्याख्या: सुबह 6:20 पर बचेंद्री पाल अंगदोरजी के साथ साउथ कोल कैंप से बाहर निकलीं तो सूरज ऊपर तक निकल आया था ।(पर्वतीय क्षेत्रों में चोटियों में सुर्योदय जल्दी‍ दिखाई देता है ) हलकी हवा चल रही थी किंतु बहुत अधिक ठंड थी किंतु अपने माउंटेनियरिंग सूट में लेखिका सुरक्षित और गर्म थीं । उन्होंने बिना रस्सी के चढ़ाई की । अंग दोरजी एक नियत गति से चढ़ रहे थे और बचेंद्री ने उनके साथ चढ़ने में कोई परेशानी या कठिनाई महसूस नहीं की ।

जमे हुए बर्फ़ की सीधी व ढलाऊ चट्टानें इतनी सख्त और भुरभुरी थीं, मानो शीशे की चादरें बिछी हों। हमें बर्फ़ काटने के फावड़े का इस्तेमाल करना ही पड़ा और मुझे इतनी सख्ती से फावड़ा चलाना पड़ा जिससे कि उस जमे हुए बर्फ़ की धरती को फावड़े के दाँते काट सकें। मैंने उन खतरनाक स्थलों पर हर कदम अच्छी तरह सोच-समझकर उठाया।

भुरभुरी crumbly फावड़ा Spade

व्याख्या: बर्फ़ जब गिरती है तो हलकी होती है किंतु पुरानी और जमी हुई बर्फ़ सख्त हो जाती है । एवरेस्ट में भी लेखिका को बर्फ़ की सीधी और ढलाऊ पर चढ़ाई की । चट्टानें सख्त और भुरभुरी थीं बर्फ़ काटने के लिए बर्फ़ काटने वाले फ़ावड़े (shovels) को इस्तेमाल करना पड़ा। जिससे कि उस जमे हुए बर्फ़ की धरती को फावड़े के दाँते काट सकें। उन्होंने खतरनाक स्थलों पर हर कदम अच्छी तरह सोच-समझकर उठाया।

दो घंटे से कम समय में ही हम शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंगदोरजी ने पीछे
मुड़कर देखा और मुझसे कहा कि क्या मैं थक गई हूँ। मैंने जवाब दिया, "नहीं।"
जिसे सुनकर वे बहुत अधिक आश्चर्यचकित और आनंदित हुए। उन्होंने कहा कि
पहलेवाले दल ने शिखर कैंप पर पहुँचने में चार घंटे लगाए थे और यदि हम इसी
गति से चलते रहे तो हम शिखर पर दोपहर एक बजे एक पहुँच जाएँगे।

व्याख्या: दो घंटे से कम समय में ही शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंगदोरजी ने पीछे
मुड़कर देखा और मुझसे कहा कि क्या मैं थक गई हूँ। मैंने जवाब दिया, "नहीं।"
जिसे सुनकर वे बहुत अधिक आश्चर्यचकित और आनंदित हुए। उन्होंने कहा कि
पहलेवाले दल ने शिखर कैंप पर पहुँचने में चार घंटे लगाए थे और यदि हम इसी
गति से चलते रहे तो हम शिखर पर दोपहर एक बजे एक पहुँच जाएँगे।

बचेंद्री पाल, अंगदोरजी और ल्हाटू एवरेस्ट की चोटी पर

ल्हाटू हमारे पीछे-पीछे आ रहा था और जब हम दक्षिणी शिखर के नीचे आराम कर रहे थे, वह हमारे पास पहुंच गया। थोड़ी-थोड़ी चाय पीने के बाद हमने फिर चढ़ाई शुरू की। ल्हाटू एक नायलॉन की रस्सी लाया था। इसलिए अंगदोरजी और मैं रस्सी के सहारे चढ़े, जबकि ल्हाटू एक हाथ से रस्सी पकड़े हुए बीच में चला। उसने रस्सी अपनी सुरक्षा की बजाय हमारे संतुलन के लिए पकड़ी हुई थी। ल्हाटू ने ध्यान दिया कि मैं इन ऊँचाइयों के लिए सामान्यत: आवश्यक, चार लीटर ऑक्सीजन की अपेक्षा, लगभग ढाई लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़ रही थी। मेरे रेगुलेटर पर जैसे ही उसने ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई, मुझे महसूस हुआ कि सपाट और कठिन चढ़ाई भी अब आसान लग रही थी।

व्याख्या : ल्हाटू अंग दोरजी और बचेंद्री के पीछे -पीछे आ रहा था और जब वे दक्षिणी चोटी के नीचे आराम कर रहे थे तब वह उन तक पहुँच गया। थोड़ी थोड़ी चाय पीने के बाद उन लोगों ने फ़िर से चढ़ाई शुरु की । पहले वे लोग बिना रस्सी के चढ़ाई कर रहे थे किंतु ल्हाटू अपने साथ नायलॉन की रस्सी लेकर आया था अतः वे लोग रस्सी के सहारे चढ़े। ल्हाटू बीच में रस्सी पकड़े चल रहा था वह रस्सी अपनी सुरक्षा की बजाय अंग दोरजी और बचेंद्री के संतुलन के लिए पकड़े चल रहा था ।इसीबीच ल्हाटू ने देखा कि बचेंद्री कम ऑक्सीजन सुप्लाई के साथ चढ़ रही थी । उसने तुरंत ऑक्सीजन सप्लाई बढ़ाई जिससे लेखिका को ऊँचाई चढ़ने में आसानी हो गई । एवरेस्ट की ऊँचाइयों के लिए सामान्यत: चार लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की आवश्यकता होती है जबकि लेखिका लगभग ढाई लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़ रही थी।

दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई थी। उस ऊँचाई पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ के कणों को चारों तरफ़ उड़ा रहे थे, जिससे दृश्यता शून्य तक आ गई थी। अनेक बार देखा कि केवल थोड़ी दूर के बाद कोई ऊँची चढ़ाई नहीं है। ढलान एकदम सीधा नीचे चला गया है।

मेरी साँस मानो रुक गई थी। मुझे विचार कौंधा कि सफलता बहुत नजदीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर मैं एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचनेवाली में प्रथम भारतीय महिला थी।

दृश्यता visibility विचार कौंधा Thoughts flashed

व्याख्या : जब वे दक्षिणी शिखर पर पहुँचे तब वहाँ हवा की गति ज्यादा थी और चारों तरफ़ तेज हवा के साथ बर्फ के कण उड़ रअहे थे जिससे वहाँ न के बराबर दिखाई दे रहा था। कई बार इस प्रकार भ्रम होता कि मानो आगे कोई चढ़ाई नहीं है और सीधी ढलान नीचे की तरफ़ जा रही हो । अचानक बचेंद्री पाल ने महसूस किया कि वे चोटी के बहुत नजदीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर वे एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी और एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचनेवाली में प्रथम भारतीय महिला बन चुकी थीं।

एवरेस्ट शंकु की चोटी पर इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति साथ-साथ खड़े हो सकें। चारों तरफ़ हजारों मीटर लंबी सीधी ढलान को देखते हुए हमारे सामने प्रश्न सुरक्षा का था। हमने पहले बर्फ के फावड़े से बर्फ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से स्थिर किया। इसके बाद मैं अपने घुटनों के बल बैठी बर्फ़ पर अपने माथे को लगाकर मैंने 'सागरमाथे' के ताज का चुंबन लिया। बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया।

व्याख्या : एवरेस्ट की चोटी शंकु के आकार की है और वहाँ इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति एक साथ खड़े हो सकें। नीचे चारों तरफ़ हजारों मीटर लंबी सीधी ढलान थी अब प्रश्न उन लोगों की सुरक्षा का था। इसलिए उन्होंने पहले बर्फ के फावड़े से बर्फ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से स्थिर किया। इसके बाद लेखिका ने अपने घुटनों के बल बैठ कर बर्फ़ पर अपने माथे को लगाया और सागरमाथे' के ताज का चुंबन लिया। बिना उठे ही बचेंद्रीपाल ने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला और इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ में दबा दिया। अपनी सफलता से भाव विभोर हो उठी लेखिका को इस अविस्मरणीय क्षण में अपने माता-पिता को याद करती हैं।

जैसे मैं उठी. मैंने अपने हाथ जोड़े और मैं अपने रज्जु नेता अंगदोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी। अंगदोरजी जिन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया और मुझे लक्ष्य तक पहुँचाया। मैंने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की दूसरी चढ़ाई चढ़ने पर बधाई भी दी। उन्होंने मुझे गले से लगाया और मेरे कानों में फुसफुसाया, "दीदी, तुमने अच्छी चढ़ाई की। मैं बहुत प्रसन्न हूँ!"

प्रोत्साहन encouragement फुसफुसाया whispered

व्याख्या : पूजा करने के बाद बचेंद्री पाल जैसे ही उठीं वे अपने रज्जू नेता अंगदोरजी के सामने सम्मान पूर्वक झुकीं। लेखिका की इस सफलता में अंग दोरजी का बड़ा योगदान है । क्योंकि उन्होंने बचेंद्री को प्रोत्साहित किया और उनके लक्ष्य तक पहुँचाया। । बचेंद्री पाल ने अंगदोरजी को बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की चोटी में पहुँचने में सफलता पाने के लिए बधाई दी , वहीं अंग दोरजी ने भी बचेंद्री पाल को गले लगाते हुए इस सफलता के लिए बधाई देते हुए उनकीं तारीफ़ की कि उन्होंने अच्छी चढ़ाई की और वे बहुत खुश हैं ।

कुछ देर बाद सोनम पुलजर पहुँचे और उन्होंने फोटो लेने शुरू कर दिए। इस समय तक ल्हाटू ने हमारे नेता को एवरेस्ट पर हम चारों के होने की सूचना दे दी थी। तब मेरे हाथ में वॉकी-टॉकी दिया गया। कर्नल खुल्लर हमारी सफलता से बहुत प्रसन्न थे। मुझे बधाई देते हुए उन्होंने कहा, "मैं तुम्हारी इस अनूठी उपलब्धि के लिए तुम्हारे माता-पिता को बधाई देना चाहूँगा!" वे बोले कि देश को तुम पर गर्व है और अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो तुम्हारे अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम भिन्न होगा !

अनूठी उपलब्धि unique achievement

व्याख्या: बचेंद्री पाल कहती हैं कि कुछ देर बाद सोनम पुलजर वहाँ पहुँचे और उन्होंने फोटो लेने शुरू कर दिए। इस समय तक ल्हाटू ने उनके नेता को एवरेस्ट पर उन चारों के होने की सूचना दे दी थी। तब बचेंद्री पाल के हाथ में वॉकी-टॉकी दिया गया। कर्नल खुल्लर उनकी सफलता से बहुत प्रसन्न थे। बचेंद्री पाल को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि वे बचेंद्री पाल की इस अनूठी उपलब्धि के लिए बचेंद्री पाल के माता-पिता को बधाई देना चाहते हैं। वे बोले कि देश को बचेंद्री पाल पर गर्व है और अब वह एक ऐसे संसार में वापस जाएगी, जो उसके द्वारा अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम अलग होगा।

एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा’ पाठ का सारांश

एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा लेखिका बचेंद्री पाल की प्रथम एवरेस्ट विजय का और भारत की प्रथम महिला एवरेस्ट विजेता होने की लोमहर्षक यात्रा का वर्णन है । लेखिका 7 मार्च को दिल्ली से हवाई जहाज द्वारा नेपाल पहुँचती हैं और नमचे बाजार से सर्वप्रथम एवरेस्ट पर्वत के दर्शन करतीं हैं । लेखिका वहाँ से 26 मार्च को पैरिच पहुँचती हैं और वहाँ पहुचते ही उनके दल को एवरेस्ट अभियान दल के एक शेरपा कुली की मृत्यु और सोलह शेरपाओं के घायल होने की खबर मिलती है । इस घटना पर कर्नल खुल्लर स्पष्ट करते हैं कि एवरेस्ट अभियान पर इस तरह की घ्हटनाओं के लिए तैयार रहना चाहिए और इसे सहज भाव से स्वीकार करना चाहिए । उपनेता प्रेमचंद द्वारा उनके दल को खुंभू हिमपात की स्थिति का पता चलता है इसी बीच एक और रसोई सहायक की मृत्यु की खबर मिलती है जो अधिक ठंड के कारण जलवायु सहन न कर पाया था । तभी लेखिका एवरेस्ट को पास से देखती हैं और इसकी उँचाइयों और विशालता से चकित सी रह जाती हैं । डॉ. मीनू मेहता एवरेस्ट अभियान दल को प्रशिक्षण और तकनीकी जानकारी देतीं हैं । वहीं बेस कैंप पर बचेंद्री पाल और उनके दल के सद्स्यों की मुलाकात प्रथम एवरेस्ट विजेताओं में से एक तेनजिंग के साथ होती है । वे अभियान दल के सदस्यों को प्रोत्साहन देते हैं और बचेंद्री पाल को प्रोत्साहन देते हुए कहते हैं कि वे एक पर्वतीय लड़की हैं इसलिए उन्हें अपने पहले प्रयास में ही चोटी पर पँहुच जाना चाहिए ।

लेखिका बचेंद्री पाल अपने दल के साथ एवरेस्ट अभियान पर चलती हैं जहाँ ल्होत्से की ढलान पर बने कैंप पर लेखिका के तंबू के ऊपर बर्फ की शिला आ गिरती है । दल के नौ सदस्य घायल हो जाते हैं । लोपसांग अपनी स्विस छुरी की सहायता से बचेंद्री पाल की जीवन रक्षा करते हैं । इस घटना में बचेंद्री पाल मौत के मुँह से बच कर वापस आती हैं वे डर जाती हैं किंतु अपना प्रयास नहीं छोड़ना चाहती । इसी प्रकार अन्य घटनाओं का उल्लेख करते हुए और एवरेस्ट अभियान की तकलीफ़ों और रोमांच का वर्णन करती हुई बचेंद्री पाल अंगदोरजी के साथ शिखर पर सर्वप्रथम जा पहुँचती है और एवरेस्ट पर पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला बन जाती हैं । अंग दोरजी उन्हें बधाई देते हैं तभी सोनम पुलजर भी वहाँ पहुँच जाते हैं और फोतो शूट करते हैं । ल्हाटू दल के नेता कर्नल खुल्लर को उनकी सफलता के बारे में सूचना देते है । कर्नल खुल्लर ने उन्हें बधाई देते बधाई देते हुए कहा कि वे बचेंद्री पाल की इस अनूठी उपलब्धि के लिए बचेंद्री पाल के माता-पिता को बधाई देना चाहते हैं। वे बोले कि देश को बचेंद्री पाल पर गर्व है और अब वह एक ऐसे संसार में वापस जाएगी, जो उसके द्वारा अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम अलग होगा। पूरा घटनाक्रम इस तरह से लिखा गया है कि पाठक खुद ही एवरेस्ट पर चढ़ने का रोमांच महसूस करता है ।

प्रश्‍न अभ्यास

मौखिक

निम्‍नलिखित प्रश्‍नों के उत्‍तर एक-दो पंक्‍तियों में दीजिए-

1.अग्रिम दल का नेतृत्‍व कौन कर रहा था ?

उत्‍तर : अग्रिम दल का नेतृत्व उपनेता प्रेमचंद कर रहे थे।

2. लेखिका को सागरमाथा नाम क्यों अच्छा लगा ?

उत्‍तर : लेखिका ने सर्वप्रथम नमचे बाजार से एवरेस्ट के दर्शन किए। नेपाल में यह पर्वत सागरमाथा के नाम से प्रसिद्ध है । एवरेस्ट की विराटता को देखते हुए लेखिका को एवरेस्ट का सागरमाथा नाम अच्छा लगा ।

3. लेखिका को ध्वज जैसा क्या लगा ?

उत्‍तर : लेखिका ने जव एवरेस्ट की ओर ध्यान से देखा तो उन्हें एक बर्फ़ का बड़ा और भारी फूल (प्लूम) दिखाई दिया जो उन्हें शिखर पर लहराते हुए ध्वज जैसा लगा।

4. हिमस्खलन से कितने लोगों की मृत्यु हुई और कितने घायल हुए?

उत्‍तर : हिमस्खलन से सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए ।

5. मृत्यु‍ के अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने क्या कहा ?

उत्‍तर : शेरपा कुली की मृत्यु के बाद अभियान दल के सदस्यों के चेहरे पर छाए अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने कहा कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी मृत्यु को भी सहज भाव से स्वीकार करना चाहिए।

6. रसोई सहायक की मृत्यु कैसे हुई ?

उत्‍तर : रसोई सहायक की मृत्यु जलवायु अनुकूल न होने के कारण हुई ।

7. कैंप -चार कहाँ और कब लगाया गया ?

उत्‍तर : कैंप -चार साउथ कोल पर 29अप्रैल 1984 को 7900 मीटर की ऊँचाई पर लगाया गया था।

8. लेखिका ने शेरपा कुली को अपना परिचय किस प्रकार दिया ?

उत्‍तर : लेखिका ने तेनजिंग को अपना परिचय एक नौसिखिया कह कर दिया ।

9. लेखिका की सफलता पर कर्नल खुल्लर ने उसे किन शब्दों में बधाई दी ?

लेखिका को बधाई देते हुए कर्नल खुल्लर ने कहा, "मैं तुम्हारी इस अनूठी उपलब्धि के लिए तुम्हारे माता-पिता को बधाई देना चाहूँगा!" वे बोले कि देश को तुम पर गर्व है और अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो तुम्हारे अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम भिन्न होगा !

(क) निम्‍नलिखित प्रश्‍नों के उत्तर 25-30 शब्दों में लिखिए 1

1.नज़दीक से एवरेस्ट को देखकर लेखिका को कैसा लगा ?

उत्‍तर : बेस कैंप पहुँचने पर दुसरे दिन लेखिका ने एवरेस्ट पर्वत को नज़दीक से देखा । इससे पहले दो बार उन्होंने एवरेस्ट को दूर से देखा था । बेस कैंप से लेखिका ने एवरेस्ट पर्वत और इसकी अन्य श्रेणियों को देखा और इसकी भव्यता को देख आश्‍चर्यचकित रह गईं । वे एवरेस्ट , ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरी , बर्फ़ीली टेढ़ी-मेढ़ी नदी को निहारती रहीं।

2. डॉ. मीनू मेहता ने क्या जानकारियाँ दी ?

उत्‍तर : डॉ. मीनू मेहता ने अल्यूमिनियम की सीढ़ीयों से अस्थाई पुल बनाना , लट्‍ठों और रस्सियों का उपयोग , बर्फ़ की आड़ी -तिरछी दीवारों पर रस्सियाँ बाँधना और अग्रिम दल के अभियांत्रिकी कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारियाँ दीं।

3. तेनजिंग ने लेखिका की तारीफ़ में क्या कहा ?

उत्‍तर : तेनजिंग से लेखिका की मुलाकात बेस कैंप में हुई । लेखिका ने जब अपना परिचय एक नौसिखिए के रूप में दिया तो तेनजिंग ने उनका उत्साह बढ़ाते हुए उनके कंधे पर हाथ रख कर कहा कि तुम तो एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो । तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए

4. लेखिका को किन के साथ चढ़ाई करनी थीं ?

उत्‍तर : लेखिका को दल के अन्य सदस्यों लोपसांग , अंगदोरजी , तशारिंग ,गगन बिस्सा , की, जय , मीनू और रीता गोंबू के साथ चढ़ाई करनी थी । बचेंद्री पाल और रीता गोंबू कैंप एक पर पहुँचने वाली मात्र दो महिलाएँ थीं । इसके अलावा अभियान दल में सहायता के लिए कई शेरपा कुली और रसोई सहायक आदि अन्य अनेक सदस्य भी थे ।

5. लोपसांग ने तंबू का रास्ता कैसे साफ़ किया ?

उत्‍तर : लोपसांग ने स्विस छुरी की मदद से तंबू का रास्ता का रास्ता सफ़ किया । उन्होंने बड़ी
तेज़ी से लेखिका के चारों तरफ़ जमे हुए कड़े बर्फ़ की खुदाई की । और बड़े -बड़े हिम पिंडों को हटाते हुए लेखिका बर्फ़ की कब्र से नइकाअल लाने में सफ़ल हुए ।

6. साउथ कोल कैंप पहुँच कर लेखिका ने अगले दिन की महत्‍त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी कैसे शुरु की ?

साउथ कोल कैंप पंहुचते ही लेखिका बचेंद्री पाल ने अगले दिन के महत्‍त्वपूर्ण चढ़ाई शुरु कर दी । उन्होंने खाना , कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्‍ठे किए। उन्होंने चाय बनाने के लिए पानी को गरम किया । फ़िर एक थरमस में जूस और दूसरे में चाय लेकर अपने दल के अन्य सदस्यों की मदद के लिए चल पड़ीं ।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1. उपनेता प्रेमचंद ने किन स्थितियों से अवगत कराया?
उत्तर-
उपनेता प्रेमचंद ने अभियान दल को खुंभु हिमपात की स्थिति की जानकारी देते हुए कहा कि उनके दल ने कैंप-एक जो खुंभु हिमपात के ठीक ऊपर है, वहाँ तक का रास्ता साफ़ कर दिया है और पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों  से रास्ता चिन्हित कर, सभी बड़ी कठिनाइयों का जायजा ले लिया गया है। उन्होंने इस पर भी ध्यान दिलाया कि ग्लेशियर बरफ़ की नदी है और बरफ़ का गिरना अभी जारी है। हिमपात में अनियमितता और अनिश्चित बदलाव के कारण अभी तक के किए गए सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं और रास्ता खोलने का काम दोबारा करना पड़ सकता है।

प्रश्न 2 . हिमपात किस तरह होता है और उससे क्या-क्या परिवर्तन आते हैं?
उत्तर-
बर्फ़ के खंडों का अव्यवस्थित ढंग से गिरना ही हिमपात कहलाता है। ग्लेशियर के बहने से बर्फ में हलचल मच जाती है। जिससे बर्फ़ की बड़ी-बड़ी चट्टानें तत्काल गिर जाती हैं। ऐसा होने की स्थिति खतरनाक हो जाती है क्योंकि धरातल पर दरार पड़ने की संभावना बढ़ जाती है औरअकसर बर्फ़ में गहरी-चौड़ी दरारें बन जाती हैं। हिमपात से पर्वतारोहियों की कठिनाइयाँ बहुत अधिक बढ़ जाती हैं।

प्रश्न 3. लेखिका ने तंबू में गिरे बरफ़ पिंड का वर्णन किस तरह किया है?
उत्तर-
लेखिका ने तंबू में गिरे बरफ़ के पिंड का वर्णन करते हुए कहा है कि वह ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए नाइलॉन के तंबू के कैंप-तीन में थी। तंबू में लोपसांग और तशारिंग उनके साथ थे। अचानक रात साढ़े बारह बजे लेखिका के सिर में कोई सख्त चीज़ टकराई और उनकी नींद खुल गई। तभी एक जोरदार धमाका हुआ और उन्हें लगा कि एक ठंडी बहुत भारी चीज़ उनके शरीर को कुचलती चल रही थी। इससे उन्हें साँस लेने में कठिनाई होने लगी। लेखिका को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ है? उन्होंने बर्फ़ के विशल पिंड के तंबू पर गिरने की गति की तुलना एक्सप्रेस रेलगाड़ी की गति से की । इस बर्फ़ के पुंज ने कैंप को तहस -नहस कर दिया था।

प्रश्न 4. लेखिका को देखकर ‘की’ हक्का-बक्का क्यों रह गया?
उत्तर-
‘की’ बचेंद्री पाल का पर्वतारोही साथी था। उसे भी बचेंद्री के साथ पर्वत-शिखर पर जाना था। उसे साउथ कोल शिखर कैंप पर पहुँचने में देर हो गई थी। वह सामान ढोने के कारण पीछे रह गया था। अतः बचेंद्री उसके लिए चाय-जूस आदि लेकर उसे रास्ते में लिवाने के लिए पहुँची।इतनी बर्फ़ीली हवा में नीचे जाना जोखिम भरा काम था। की को यह कल्पना नहीं थी कि बचेंद्री उसकी चिंता करेंगी और उसे साथ लाने के लिए कैंप से वापस  आएँगी। इसलिए जब उसने बचेंद्री पाल को चाय-जूस लिए आया देखा तो वह हक्का-बक्का रह गया।

प्रश्न 5. एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए कुल कितने कैंप बनाए गए? उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पाठ से ज्ञात होता है कि एवरेस्ट पर चढ़ाई के लिए कुल छ: कैंप बनाए गए

  1. पहला कैंप 6000 मीटर की ऊँचाई पर था यह खुंभु हिमपात से ठीक ऊपर था।इसमें सामान जमा किया हुआ था ।
  2.  दूसरा कैंप- यह चढ़ाई के रास्ते में था।
  3. कैंप-तीन  इसे ल्होत्से की सीधी बर्फ़ीली ढलान पर लगाया गया था । यह रंगीन नायलोन से बना था। यहीं पर ल्होत्से से ग्लेशियर से टूटकर बर्फ़ पिंड कैंप पर आ गिरा था
  4. कैंप - चार : यह 7900 मीटर की ऊँचाई पर बनाया गया था । यह कैंप साउथकोल पर बनाए जाने के कारण साउथकोल कैंप कहलाया गया था। यहीं से अभियान दल को एवरेस्ट पर चढ़ाई करनी थी।
  5. कैंप पाँच : साउथ कोल के बाद एक शिखर कैंप था जहाँ से लेखिका ने अंगदोरजी के साथ एवरेस्ट के शिखर की चढ़ाई  की ।
  6.  इसके अलावा एक बेस कैंप भी बनाया गया था। जो कि एवरेस्ट अभियान का मुख्य कैंप था।

प्रश्न 6.चढ़ाई के समय एवरेस्ट की चोटी की स्थिति कैसी थी?

उत्तर: जब बचेंद्री पाल एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची तो वहाँ चारों ओर तेज़ हवा के कारण बर्फ़ उड़ रही थी। बर्फ़ के छोटे कणों के तेज़ हवा के उड़ने के कारण सामने कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। पर्वत की शंकु चोटी इतनी तंग थी कि दो आदमी वहाँ एक साथ खड़े नहीं हो सकते थे। नीचे हजारों मीटर तक ढलान ही ढलान थी। अतः वहाँ अपने आपको स्थिर खड़ा करना बहुत कठिन था। उन्होंने बर्फ के फावड़े से बर्फ़ तोड़कर अपने सुरक्षित खड़े होने योग्य स्थान बनाया।

प्रश्न 7. सम्मिलित अभियान में सहयोग एवं सहायता की भावना का परिचय बचेंद्री के किस कार्य से मिलता है?
उत्तर-
एवरेस्ट पर विजय पाने के अभियान के दौरान लेखिका बचेंद्री पाल अपने साथियो ‘जय’, ‍‘की’ और ‘मीनू’ के साथ चढाई कर रही थी, परंतु वह इनसे पहले साउथ कोल कैंप पर जा पहुँची। लेखिका अपने साथियों के लिए चिंतित हुईं, क्योंकि वे भारी बोझ लादे बिना ऑक्सीजन के चढ़ाई कर रहे थे। लेखिका ने आराम करने की अपेक्षा दूसरे दिन की तैयारी शुरु कर दी। दोपहर बाद इन सदस्यों की मदद करने के लिए एक थरमस को जूस से और दूसरे को गरम चाय से भर लिया और बरफ़ीली हवा में जोखिम उठाकर कैंप से बाहर निकल कर उन सदस्यों की मदद के लिए नीचे उतरने लगी। बचेंद्रीपाल के इस कार्य से सहयोग एवं सहायता की भावना का परिचय मिलता है।

(ग) निम्‍नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

1- एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।

स्पष्टीकरण: 1. इस कथन के माध्यम से कर्नल खुल्लर यह कहना चाहते हैं कि एवरेस्ट पर पहुँचना एक महान अभियान है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में कदम-कदम पर खतरा बना रहता है। इस कथन के माध्यम से कर्नल खुल्लर अभियान में आने वाले खतरों से परिचित करा रहे हैं और मानसिक रूप से इन खतरों के लिए, यहाँ तक कि मृत्यु तक का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रहे थे।

2- सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चौड़े हिम-विदर में बदल जाने का मात्र खयाल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज़्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रयास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।

स्पष्टीकरण: 2. इन कथनों के माध्यम से लेखिका एवरेस्ट अभियान की भयावहता को सजीव कर रही हैं। बड़े-बड़े हिम खंडों का गिरना और उसके परिणाम बड़े ही खतरनाक हैं। लेखिका हिम विदर की कल्पना कर सिहर उठती है। इसके अतिरिक्त हिमपात का प्रकोप इस अभियान को और भी अधिक भयानक बना रहा था परंतु बिना हिम्मत खोए वो अपना लक्ष्य प्राप्त करती है। इन शब्दों के द्वारा लेखिका अभियान में लगातार आने वाले खतरों की सम्भावना के बारे में बता रही हैं

3- बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया।

स्पष्टीकरण:3. लेखिका एवरेस्ट की शंकु पर पहुँचने वाली पहली भारतीय महिला है। एवरेस्ट विजय के क्षण लेखिका को अभिभूत करने वाले क्षण थे ।लेखिका ने अपने विजय का श्रेय माँ दुर्गा और हनुमानजी को दिया। एवरेस्ट की शंकु पर इनकी पूजा यह दर्शाता है कि ये धार्मिक स्वभाव की है। सफलता के क्षण हर व्यक्ति अपनों से बाँट कर मनाना चाहता है ।लेखिका के जीवन के यह पल भी उनके जीवन के सबसे आनंद के पल और अविस्मरणीय क्षण थे जिन्हें वह अपने माता-पिता के साथ बॉटना चाहती थी। इससे यह पता चलता है कि ये अपने माता-पिता का बहुत सम्मान करती थीं और उनके अत्यंत निकट थीं ।

भाषा अध्ययन

1.इस पाठ में प्रयुक्त निम्‍नलिखित शब्दों की व्याख्या पाठ के संदर्भ में कीजिए -

निहारा है, धसकना , खिसकना , सागरमाथा ज़ायजा लेना , नौसिखिया

उत्तर :

निहारा है - निहारा का अर्थ होता है प्यार से देखना या प्रसन्नतापूर्वक देखना-

एवरेस्ट पर चढ़ाई करना लेखिका का लक्ष्य था , इसलिए उन्होंने एवरेस्ट को सिर्फ़ देखा ही नही , उन्होंने एवरेस्ट को निहारा ।

धसकना - धसकना का अर्थ है बीच की खाली (पोली) जगह में मिट्टी या अन्य पदार्थ का भर जाना , कई बार रेत या मिट्टी या बर्फ़ के बीछ में खाली जगह रह जाती है अवसर आने पर ऊपर का पदार्थ ्बीच की खाली जगह में आ जाता है । इसी घटना को धसकना कहते हैं
खुंभु हिमपात पर सीधी पहाड़ी पर बर्फ़ के धसकने से एक शेरपा कुली की मौत हो गई थी ।

खिसकना - जब कोई वस्तु अपनी जगह से हट जाती है तो उसे खिसकना कहते हैं ग्लेशियरों के बहने से बरफ़ की बड़ी-बड़ी चट्टानें खिसकने लगती हैं।

सागरमाथा - एवरेस्ट शिखर दुनिया में समुद्रतल से सबसे अधिक ऊँचा स्थान है । इसलिए नेपाल में एवरेस्ट पर्वत सागरमाथा के नाम से प्रसिद्ध है । सागरमाथा एवरेस्ट का एक नाम है

ज़ायजा लेना - जाँच करना या पड़ताल करना अथवा जानकारी लेना - उपनेता प्रेमचंद ने सभी कठिनाइयों का जायजा ले लिया था ।

नौसिखिया - नया सीखने वाला - लेखिका एवरेस्ट के अभियान में पहली बार भाग ले रहीं थीं इस लिए उन्होंने स्वयं को नौसिखिया बताया ।

2. निम्‍नलिखित पंक्‍तियों में उचित विराम चिह्‍नों का प्रयोग कीजिए --

(क) उन्होंने कहा तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो तुम्हें तो शिखर पर पहले प्रयास में ही पहुँच जाना चाहिए ।

(ख) क्या तुम भयभीत थीं

(ग) तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री

उत्तर :

(क) उन्होंने कहा, "तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो ।तुम्हें तो शिखर पर पहले प्रयास में ही पहुँच जाना चाहिए । "

(ख) "क्या तुम भयभीत थीं ? "

(ग)" तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री ? "

3. नीचे दिए उदाहरण के अनुसार निम्‍नलिखित शब्द -युग्मों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-

उदाहरण : हमारे पास एक वॉकी -टॉकी था ।

टेढ़ी- मेढ़ी हक्का- बक्का गहरे -चौड़े इधर-उधर आस-पास लंबे-चौड़े

उत्तर:

टेढ़ी- मेढ़ी - आगे चल कर सड़क बहुत टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है ।

हक्का- बक्का -- अचानक खुद को पुलिस से घिरा पाकर हत्यारे हक्का- बक्का हो गए।

गहरे -चौड़े - बरसात के कारण रास्ता गहरे-चौड़े नाले में बदल गया।

इधर-उधर - पिता को चोट लगने के कारण घबराहट में वह लड़की सहायता के लिए इधर -उधर देख रही थी ।

आस-पास - हमारे घर के आस-पास अनेक सुँदर बगीचे हैं ।

लंबे-चौड़े -शाम को बच्चे अकसर इस लंबे -चौड़े मैदान में खेलते दिख जाते हैं ।

4. उदाहरण के अनुसार विलोम शब्द बनाइए-

उदाहरण : अनुकूल - प्रतिकूल

नियमित -............. विख्यात - ....... आरोही - ...... निश्चित - ....... सुंदर - .......

उत्तर:

नियमित - अनियमित विख्यात - कुख्यात आरोही - अवरोही निश्चित - अनिश्चित सुंदर - असुंदर

5. निम्‍नलिखित शब्दों में उपयुक्त उपसर्ग लगाइए- -

जैसे - पुत्र- सुपुत्र

वास व्यवस्थित कूल गति रोहण रक्षित

उत्तर:

वास -- आवास , निवास , सुवास , दुर्वास , वनवास

व्यवस्थित -- सुव्यवस्थित, अव्यवस्थित

कूल -- अनुकूल , प्रतिकूल

गति-- प्रगति ,सुगति, दुर्गति

रोहण -- आरोहण , अवरोहण

रक्षित -- आरक्षित , सुरक्षित , असुरक्षित

6. निम्‍नलिखित क्रिया विशेषणों का उचित प्रयोग करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए --

अगले दिन, कम समय में, कुछ देर बाद , सुबह तक

(क) मैं ..............................यह कार्य कर लुँगा।

(ख) बादल घिरने के ................... ही वर्षा हो गई ।

(ग) उसने बहुत ....................... इतनी तरक्की कर ली ।

(घ) नाङकेसा को ................... गाँव जाना था ।

उत्तर :

(क) मैं सुबह तक यह कार्य कर लुँगा।

(ख) बादल घिरने के कुछ देर बाद ही वर्षा हो गई ।

(ग) उसने बहुत कम समय में इतनी तरक्की कर ली ।

(घ) नाङकेसा को अगले दिन गाँव जाना था ।

***********

विलोम शब्द

 विलोम शब्द
विलोम शब्द

घटना  X   बढ़ना            जंगली  X   पालतू  
सजीव X   निर्जीव          खाद्य    X   अखाद्य  
स्वतंत्र  X परतंत्र             पक्ष      X     विपक्ष 
 सभ्य   X  असभ्य           तोड़ना X    जोड़ना 
विराट  X   लघु               आहार X   निराहार 
साकार X निराकार        धर्म      X   अधर्म 
गणतंत्र X राजतंत्र           मौन     X   वाचाल 
स्थूल    X  सूक्ष्म              ठंडा     X    गरम




Wednesday, October 6, 2021

NCERT Class 9 Hindi Sparsh Chapter 1 Dukh Ka Adhikar Explanation, Notes and Question Answers.

NCERT Class 9 Hindi Sparsh Chapter 1 Dukh Ka Adhikar Explanation, Notes and Question Answers

लेखक परिचय:

 लेखक का नाम: यशपाल

जन्म: सन् 1903

जन्म स्थान : फ़िरोजपुर छावनी

लेखक के बारे में :- आरंभिक शिक्षा फ़िरोजपुर छावनी में , उच्च शिक्षा लाहौर में पाई । विद्यार्थी काल से क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े रहे । अमर शहीद भगत सिंह के  साथ मिल कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में भाग लिया । वर्ग-संघर्ष, मनोविश्लेषण और पैना व्यंग्य इनकी कहानियों की विशेषता है ।

प्रमुख रचनाएँ:

उपन्यास :-

देशद्रोही , पार्टी कामरेड, दादा कामरेड , झूठा सच , तेरी, मेरी और उसकी बात।

कहानी संग्रह— ज्ञानदान , तर्क का तूफ़ान , पिंजड़े की उड़ान . फूलों का कुर्ता और उत्तराधिकारी ।

आत्मकथा- सिंहावलोकन ।

पुरस्कार:- तेरी, मेरी और उसकी बात उपन्यास पर साहित्य अकादमी

मृत्यु: सन् 1976 को उनका स्वर्गवास  हो गया।

पाठ -1 दुःख का अधिकार

मनुष्यों की पोशाकें( dresses) उन्हें विभिन्न श्रेणियों (divisions) में बाँट देती हैं। प्रायः(often) पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार (rights)और उसका दर्जा (status) निश्चित करती है। वह हमारे लिए अनेक बंद दरवाजे खोल देती है, परंतु कभी ऐसी भी परिस्थिति आ जाती है कि हम जरा नीचे झुककर समाज की निचली श्रेणियों ( lower class)की अनुभूति(feelings) को समझना चाहते हैं। उस समय यह पोशाक ही बंधन और अड़चन( hindrance) बन जाती है। जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं, उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है

व्याख्या: लेखक का कहना है कि लोगों की पोशाकें उन्हें समाज के अलग- अलग स्तर में बाँट देती हैं । पहनावा समाज में हमारे अधिकारों और हमारे सामाजिक स्थिति को निश्चित करता है कई बार हमारा पहनावा हमारे लिए प्रगति के मार्ग खॊल देता है अतः हमारा पहनावा या पोशाक अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । किंतु कई बार ऐसी स्थिति भी आती है जब यह पोशाक ही हमारे लिए बंधन या रोक बन बन जाती है । ऐसा तब होता है जब हम अपने से नीचे के स्तर के व्यक्ति की अनुभूतियों को समझना चाहते हैं तब पोशाक एक बंधन बन रुकावट डालती है । हमें डर होता है कि यदि हम अपने से निचले स्तर के लोगों से बात्चीत करेंगे तो लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे ? लेखक ने इस बात की तुलना हवा में तैरती हुई कटी पतंग से की है । जिस प्रकार हवा कटी हुई पतंग को नीचे गिरने से रोकती है उसी प्रकार पोशाक भी हमें अपने स्तर से नीचले स्य्तर के व्यक्ति की भावनाओं को समझने से रोकती है । इस प्रकार लेखक ने पोशाक के माध्यम से समाज की मनःस्थिति को प्रकट किया है ।

बाज़ार में फुटपाथ पर कुछ खरबूजे (musk melons) डलिया में और कुछ जमीन पर बिक्री(sell) के लिए रखे जान पड़ते थे। खरबूजों के समीप एक अधेड़ उम्र की औरत बैठी रो रही थी। खरबूजे बिक्री के लिए थे, परंतु उन्हें खरीदने के लिए कोई कैसे आगे बढ़ता? खरबूजों को बेचनेवाली तो कपड़े से मुँह छिपाए सिर को घुटनों पर रखे फफक-फफककर रो (weeping bitterly)रही थी।

व्याख्या : लेखक बाजार में एक स्त्री को देखते हैं जो खरबूज़े बेच रही थी उसके कुछ खरबूज़े एक टोकरी पर और कुछ फुटपाथ पर थे। वह एक प्रौढ़ उम्र की स्त्री थी । वह जोर-जोर से रो रही थी इस लिए उसके खरबूज़े खरीदने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था ।

पड़ोस की दुकानों के तख्तों (woody planks)पर बैठे या बाजार में खड़े लोग घृणा से उसी स्त्री के संबंध में बात कर रहे थे। उस स्त्री का रोना देखकर मन में एक व्यथा-सी उठी, पर उसके रोने का कारण जानने का उपाय क्या था? फुटपाथ पर उसके समीप बैठ सकने में मेरी •पोशाक ही व्यवधान hindrance बन खड़ी हो गई।

व्याख्या : लेखक को स्त्री की यह स्थिति अजीब सी लगती है । आसपास के दुकानों के लोग स्त्री के बारे में घृणा से बातें कर रहे थे । उस स्त्री का रोना देख कर लेखक पीड़ा महसूस करते हैं किंतु उसके पास जा कर उसके दुःख को जानने में संकोच का अनुभव करते हैं । लेखक कहते हैं कि अच्छी पोशाक पहन कर उस स्त्री के हाल न जान सके । उनकी पोशाक उस स्त्री के समीप बैठ सकने में रुकावट बन गई ।

एक आदमी ने घृणा (Hatred) से एक तरफ थूकते हुए कहा, "क्या ज़माना है। जवान लड़के को मरे पूरा दिन नहीं बीता और यह बेहया (shameless) दुकान लगा के बैठी है। " दूसरे साहब अपनी दाढ़ी खुजाते हुए कह रहे थे, "अरे जैसी नीयत होती है। अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है। "

व्याख्या: एक आदमी ने उस स्त्री के लिए घृणा से थूकते हुए कहा देखो क्या जमाना आ गया है बेटे को मरे एक दिन पूरा भी नहीं हुआ और यह बेशर्म औरत यहाँ दुकान लगा कर बैठी है । उसके नज़र में उस औरत ने मानो बड़ा अपराध कर दिया हो । तभी दूसरा आदमी अपनी दाढ़ी खुजलाते हुए कहता है कि "अरे जैसी नीयत होती है। अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है। " वे दोनों उसे पैसों का लालची ठहरा रहे थे ।

सामने के फुटपाथ पर खड़े एक आदमी ने दियासलाई की तीली (match stick)से कान खुजाते हुए कहा, "अरे, इन लोगों का क्या है? ये कमीने लोग रोटी के टुकड़े पर जान देते हैं। इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई (husband -wife), धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।"

व्याख्या: लोग इतने पर ही न रुके । सामने की दुकान का आदमी गालियाँ देते हुए कहने लगा कि ये लोग रोटी के टुकड़े को ही सब कुछ मानते हैं । इनके लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण रोटी ही है । यहाँ पर "ये कमीने लोग" उन गरीब लोगों के लिए कहा गया जो दिन रात मेहनत कर किसी तरह अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं । लेखक इस कथन के द‍वारा गरीबों के प्रति समाज की असंवेदनशीलता प्रकट करना चाहते हैं ।

परचून की दुका ( grocery store) पर बैठे लाला जी ने कहा, "अरे भाई, उनके लिए मरे-जिए का कोई मतलब न हो, पर दूसरे के धर्म-ईमान का तो खयाल करना चाहिए। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और वह यहाँ सड़क पर बाज़ार में आकर खरबूजे बेचने बैठ गई है। हज़ार आदमी आते-जाते हैं। कोई क्या जानता है कि इसके घर में सूतक है। कोई इसके खरबूजे खा ले तो उसका ईमान-धर्म कैसे रहेगा? क्या अँधेर है! "

व्याख्या: तभी सामने के परचून की दुकान के दुकानदार ने ने कहा कि अगर इस महिला के लिए कोई मरे या जिए इसका कोई महत्त्व नहीं तो कम से कम उस को दूसरों के धर्म ईमान के बारे में सोचना चाहिए था क्योंकि किसी के मरने पर बारह दिन तक सूतक रहता है तो उस व्यक्ति का छुआ हुआ सामान नहीं खा सकते । अब वह बाज़ार में खरबूज़े बेच रही है । यदि किसी को उस स्त्री के पुत्र के निधन के बारे में पता न हो तो वह खरबूज़े खा लेगा और उसका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा । इस स्त्री ने अँधेर मचा रखा है अर्थात यह किसी परंपरा का पालन नहीं कर रही । लोगों ने उस स्त्री पर आक्षेप लगाए किंतु किसी को भी उस से सहानुभूति न थी और न कोई उस से इस कठिन परिस्थिति में भी खरबूज़े बचने के निर्णय लेने का असली कारण जानना चाहता था। लेखक यहाँ समाज की रूढ़ीवादी परंपराओं को प्रकट कर रहे हैं जहाँ परंपरा व्यक्ति और परिवार से अदहिक महत्त्वपूर्ण हो गई है ।

पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर पता लगा उसका तेईस बरस जवान लड़का था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती हैं। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर ज़मीन में कछियारी करके परिवार का निर्वाह करता था। खरबूज़ों की डलिया बाजार में पहुँचाकर कभी लड़का स्वयं सौदे के पास बैठ जाता, बैठ जाती। कभी लड़का परसों सुबह मुँह-अँधेरे बेलों में से पके खरबूजे चुन रहा था। गीली मेड़ की तरावट में विश्राम करते हुए एक साँप पर लड़के का पैर पड़ गया। साँप ने लड़के को डँस लिया।

व्याख्या : जब लेखक को उस औरत के बारे में जानने की इच्छा हुई तो लेखक ने वहाँ पास-पड़ोस की दुकानों से उस औरत के बारे में पूछा और पूछने पर पता लगा कि उसका तेईस साल का एक जवान लड़का था। घर में उस औरत की बहू और पोता-पोती हैं। उस औरत का लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर ज़मीन में सब्जियाँ उगाने का काम करके परिवार का पालन पोषण करता था। खरबूजो की टोकरी बाजार में पहुँचाकर कभी उस औरत का लड़का खुद बेचने के लिए पास बैठ जाता था, कभी वह औरत बैठ जाती थी। पास-पड़ोस की दुकान वालों से लेखक को पता चला कि लड़का परसों सुबह अँधेरे में ही बेलों में से पके खरबूजे चुन रहा था। खरबूजे चुनते हुए उसका पैर दो खेतों की गीली सीमा पर आराम करते हुए एक साँप पर पड़ गया। साँप ने लड़के को डँस लिया।

लड़के की बुढ़िया माँ बावली होकर ओझा को बुला लाई। झाड़ना-फूँकना हुआ। नागदेव की पूजा हुई। पूजा के लिए दान-दक्षिणा चाहिए। घर में जो कुछ आटा और अनाज था, दान-दक्षिणा में उठ गया। माँ, बहू और बच्चे 'भगवाना' से लिपट-लिपटकर रोए, पर भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला। सर्प के विष से उसकासब बदन काला पड़ गया था।

व्याख्या : एकमात्र युवा बेटे को साँप के काटने पर माँ लगभग पागल -सी ही हो गई और एक ओझा को बुला लाई । ओझा के द्वारा नागदेवता की पूजा करवाई गई। इस पूजा को करवाने के लिए भी थोड़ा धन चाहिए था । इसमें घर में मौजूद जो कुछ आटा या अनाज था लग गया । बाकि बचा हुआ ओझा को दान देने में खत्म हो गया । माँ , भगवाना की पत्नी और बच्चे सब भगवाना से लिपट कर रोए । किंतु भगवाना को बचा न सके। साँप के विष से भगवाना का शरीर काला पड़ गया । "भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।" वाक्य से भगवाना की मृत्यु और लाचार परिवार की मार्मिक स्थिति प्रकट की गई है। इस घटना के द्वारा समाज में फ़ैले अंधविश्वास और अज्ञान को प्रकट कर रहे हैं जहाँ उचित चिकित्सा के बिना एक युवक मर जाता है ।

जिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है, परंतु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जाए?
उसके लिए तो बजाज की दुकान से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके लिए
माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।

व्याख्या : समाज की कूरीतियों पर कटाक्ष करता हुआ यह वाक्य हृदय को छू लेने वाला है । "जिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है, परंतु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जाए? उसके लिए तो बजाज की दुकान से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।" यहाँ पर परिवार की आर्थिक दशा का उल्लेख तो हो ही रहा है साथ ही उन परंपराओं पर भी हथौड़ा मारा गया है जो मृत व्यक्ति को जीवित व्यक्ति से अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध कर देती हैं ।

भगवाना परलोक चला गया। घर में जो कुछ चूनी-भूसी थी सो उसे विदा करने
में चली गई। बाप नहीं रहा तो क्या, लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे।
दादी ने उन्हें खाने के लिए खरबूजे दे दिए लेकिन बहू को क्या देती? बहू का बदन
बुखार से तवे की तरह तप रहा था। अब बेटे के बिना बुढ़िया को दुअन्नी-चवन्नी
भी कौन उधार देता।

व्याख्या : भगवाना की मृत्यु होने पर घर में रखा हुआ जो कुछ भी धन था वह भी अंतिम संस्कार में खर्च हो गया । मरने वाला तो चला गया किंतु जीवित लोगों को तो भूख प्यास लगती ही है ।छोटे बच्चे भूख के मारे बुरी तरह रोने लगे । दादी ने उन्हें खाने के लिए खरबूज़े दिए किंतु आकस्मिक रूप से हुए पति वियोग में भगवाना की पत्नी बुखार से पीड़ित हो गई । उस के खाने के लिए तो अन्न चाहिए था । अब जब भगवाना नहीं रहा तो परिवार को उधार भी देने को कोई तैयार न था क्योंकि लोगों को लगता था कि जब कमाने वाला बेटा ही न रहा तो बुढ़िया उधार चुकता न कर पाएगी ।

बुढ़िया रोते-रोते और आँखें पोंछते-पोंछते भगवाना के बटोरे हुए खरबूजे डलिया
में समेटकर बाज़ार की ओर चली-और चारा भी क्या था?

बुढ़िया खरबूजे बेचने का साहस करके आई थी, परंतु सिर पर चादर लपेटे, सिर को घुटनों पर टिकाए हुए फफक-फफककर रो रही थी।

कल जिसका बेटा चल बसा, आज वह बाज़ार में सौदा बेचने चली है, हाय रे पत्थर-दिल!

व्याख्या – लेखक कहता है कि बुढ़िया खरबूजे बेचने का साहस करके बाजार तो आई थी, परंतु सिर पर चादर लपेटे, सिर को घुटनों पर टिकाए हुए अपने लड़के के मरने के दुःख में बुरी तरह रो रही थी। लेखक अपने आप से ही कहता है कि कल जिसका बेटा चल बसा हो, आज वह बाजार में सौदा बेचने चली आई है, इस माँ ने किस तरह अपने दिल को पत्थर किया होगा?

उस पुत्र वियोगिनी के दुःख का अंदाज़ा लगाने के लिए पिछले साल अपने पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुःखी माता की बात सोचने लगा। वह संभ्रांत महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से उठ न सकी थी। उन्हें पंद्रह-पंद्रह मिनट बाद पुत्र वियोग से मूर्छा आ जाती थी और मूर्छा न आने की अवस्था में आँखों से आँसू न रुक सकते थे। दो-दो डॉक्टर हरदम सिरहाने बैठे रहते थे। हरदम सिर पर बरफ रखी जाती थी। शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र-शोक से द्रवित हो उठे थे।

व्याख्या –अपने पुत्र को खोने वाली उस माँ के दुःख का अंदाजा लगाने के लिए लेखक पिछले साल उसके पड़ोस में पुत्र की मृत्यु से दुःखी माता की बात सोचने लगा। वह बेचारी महिला पुत्र की मृत्यु के बाद अढ़ाई मास तक पलंग से ही नहीं उठ पाई थी। लेखक अपने पड़ोस में रहने वाली संपन्न परिवार की महिला के बारे में बताते हुए कहते हैं कि वे बार बार बेहोश हो जाती थीं । दो डॉक्टर सदा उनके सिरहाने पर बैठे रहते थे जब वे होश में होतीं थी तो उनकेआँसू रुकते नहीं थे सारे शहरवासियों को उनसे संवेदना थी । इन दोनों स्त्रियों की तुलना लेखक इस लिए कर रहे थे क्योंकि दोनों स्त्रियों को समान रूप से पुत्र वियोग का दुःख झेलना पड़ा । पुत्र खोने का दुःख सबको समान होता है । चाहे वह अमीर हो या गरीब । किंतु एक स्त्री को सम्पन्नता के कारण अपने दुख को प्रकट करने का अवसर मिला और उसके दुख को सबने अनुभव किया । वहीं विपन्नता के कारण दूसरी स्त्री के पास न तो दुःख मनाने का समय था न ही उसे अपने दुख को प्रकट करने का अवसर मिला । किसी को भी उस से कोई संवेदना न थी ।

जब मन को सूझ का रास्ता नहीं मिलता तो बेचैनी से कदम तेज़ हो जाते हैं
उसी हालत में नाक ऊपर उठाए, राह चलतों से ठोकरें खाता मैं चला जा रहा था
सोच रहा था

शोक करने , ग़म मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और ..... दुखी होने का भी एक अधिकार होता है ।

व्याख्या – समाज की इस दोहरी मानसिकता , दोहरे मापदंड , गरीबी -अमीरी के इस गहरे विभाजन से लेखक विचलित हो उठा और बेचैनी में तेज़ कदमों से चलते हुए आगे बढ़ने लगा । लेखक बेचैन हालत में नाक ऊपर उठाए चल रहा था और अपने रास्ते में चलने वाले लोगों से ठोकरें खाता हुआ चला जा रहा था और सोच रहा था कि शोक करने और ग़म मनाने के लिए भी इस समाज में सुविधाएँ चाहिए और… दुःखी होने का भी एक अधिकार होता है।

पाठ का सारांश ( Summary ):

दुःख का अधिकार "यशपाल "द्‍वारा लिखा गया लेख है , जिसकी शुरुआत उन्होंने पोशाक के बारे में बात करते हुए की है । लेखक ने आम आदमी की संकीर्ण सोच का परिचय देते हुए बताया है कि अच्छी पोशाक पहनने पर लोग किसी गरीब के दुख बँटाने पर संकोच महसूस करते हैं । इस लेख में दो छोटी कथाओं के द्वारा समाज के दोहरी सोच और मापदंड का परिचय दिया गया है । एक तरफ़ भगवाना की माँ जो अपने एक मात्र युवा पुत्र को साँप के द्वारा डसे जाने के कारण खो चुकी है । घर की माली हालत इतनी खराब है कि बीमार बहु और छोटे छोटे पौत्र जो भूख से बिलबिला रहे थे उनको खिलाने के लिए भी घर में कुछ नहीं है। इन परिस्थितियों में शोक में डूबी बूढी स्त्री किसी प्रकार साहस रख कर खरबूज़े बेचकर अपने परिवार का उदर भरना चाहती है , किंतु समाज के रूढ़िवादी लोग उसके दुख और परिस्थितियों को नज़रअंदाज़ करते हुए उस पर व्यंग्य करते हैं । उस पर उनका धर्म भ्रष्ट करने का आरोप लगाते हैं । यहाँ तक कि उसको धन का लालची बताते हैं । उस पर व्यंग्य करते हुए वह घोषित कर देते हैं कि गरीबों के लिए धन ही सर्वस्व है । इन परिस्थितियों में लेखक को अपने पड़ोस की एक संभ्रांत महिला की याद आती है , उसे भी पुत्र शोक हुआ था । वे पुत्र की मृत्यु के बाद वे अढाई मास तक पलंग से उठ भी न सकी थीं । बार बार उन्हें मूर्छा आ जाती थी। दो डॉक्टर उनके सिरहाने पर बैठे रहते थे और हरदम उनके सिर पर बरफ़ रखी जाती थीं । पूरा शहर उनके शोक से द्रवित हो उठा और हर जगह उनकी चर्चा थी । लेखक इन दोनों स्त्रियों की तुलना करते हुए करते हुए समझाना चाहते हैं कि पुत्र शोक का दुःख तो दोनों के लिए समान है , किंतु एक संपन्‍न परिवार की महिला को शोक मनाने का अवसर मिला और लोगों की सहानुभूति मिली , किंतु गरीब स्त्री को न तो अपने पुत्र की मृत्यु के शोक का अवसर मिला और न सहानुभूति । साथ ही उसे इन परिस्थियों में लोगों की घृणा का भी सामना करना पड़ा । इन दोनों कथाओं से लेखक बेचैन हो जाते हैं ।वे सभ्य समाज में गरीबों की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि शोक करने के लिए , ग़म मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और .... दुःखी होने का भी एक अधिकार होता है ।

शब्दार्थ:

पोशाक- Dress – वस्त्र, पहनावा
अनुभूति- Feelings – एहसास
अड़चन - obstacle – विघ्न, रुकावट,बाधा
अधेड़ - middle aged( b/w 40 yrs to 60 yrs) – आधी उम्र का, ढलती उम्र का
व्यथा - agony , pain – पीड़ा,दुःख
व्यवधान - disruption – बाधा ,रुकावट
बेहया- Shameless – बेशर्म , निर्लज्ज
नीयत - motive – इरादा,आशय
बरकत - Profit , good luck – वृद्धि, लाभ,  सौभाग्य
खसम - husband – पति
लुगाई - wife – पत्नी

परचून की दुकान- grocery store आटा ,दाल ,चावल आदि की दुकान।

सूतक A twelve days time period after death when the family of the dead is considered impure hence avoided to touch and eat with them – छूत, परिवार में किसी के मरने पर कुछ निश्चित समय तक परिवार के लोगों को न छूना।

कछियारी - growing vegetables- खेतों में तरकारी बोना।
निर्वाह Living – गुजारा

मेड़ weir - खेत के चारों तरफ़ मिट्टी डालकर बनाया हुआ घेरा, दो खेतों के बीच की सीमा

तरावट- wetness गीलापन, नमी, शीतलता, ठंडक

ओझा Exorcist - झाड़-फूक करने वाला ( मंत्र द्वारा इलाज करने वाला)

छन्नी –ककना -minor jewellary - मामूली गहना , जेवर ।

सहूलियत - facilities -सुविधा ।

प्रश्‍न अभ्यास

मौखिक

I.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए:

प्रश्न 1. किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?

उत्तर: किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें उसकी सामाजिक स्थिति या दर्जे (श्रेणी)का पता चलता है।

प्रश्न 2. खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था?

उत्तर: खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे इसलिए खरीदने नहीं आता था, क्योंकि वह कपड़े से  मुंह छुपाए हुए सिर को घुटनों पर रख फफक-फफककर रो रही थी।

प्रश्न 3. उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा ?

उत्तर: उस स्त्री को देखकर लेखक का हृदय पीड़ा से भर उठा और वह उसके दुख का कारण जानने के लिए बेचैन हो गया।

प्रश्न 4. उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?

उत्तर: उस स्त्री के बेटे की मृत्यु का कारण एक साँप के द्वारा डसा जाना  था। जब उस स्त्री का बेटा खरबूजे के खेत में बने हुए मेड़ पर खरबूज़े चुन रहा था, तभी किसी जहरीले साँप ने उसे डस लिया था।

प्रश्न 5.बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता?

उत्तर: उस बुढ़िया के परिवार में केवल उसका लड़का ही काम करता था। और उसके मरने के बाद लोगों को डर लगने लगा कि उनके पैसे वापस कौन देगा। इसलिए उसे कोई भी उधार नहीं देता था।

लिखित :

II.() निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए:

प्रश्न 1. मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्व है?

उत्तर: मनुष्य के जीवन में पोशाक का बहुत बड़ा महत्व है। पोशाक सिर्फ शरीर ढकने के काम नहीं आती बल्कि पोशाक समाज में मनुष्य का सामाजिक दर्जा भी तय करती है। हम जब कभी किसी व्यक्ति से मिलते हैं तो पहले उसकी पोशाक देखते हैं । पोशाक से ही मनुष्य की आर्थिक स्थिति पता चलती है। इस पोशाक से उसके अधिकार तय होते हैं और जीवन में आगे बढ़ने के लिए नए रास्ते भी खुल जाते हैं, किंतु कभी-कभी पोशाक लोगों की अनुभूतियों को समझने में बाधक भी बन जाती है।

प्रश्न 2 पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?

उत्तर: पोशाक हमारे लिए तब बंधन और अड़चन बन जाती है , जब हम अपने से नीचे दर्जे वाले के साथ उसका दुख बाँटते हैं। कभी कभी ऐसा होता है कि हम नीचे झुक कर समाज के निचले वर्ग के  दर्द को जानना चाहते हैं। ऐसे समय में हमारी पोशाक अड़चन बन जाती है क्योंकि अपनी अच्छी पोशाक के कारण हम झुक नहीं पाते हैं। हमें यह डर सताने लगता है कि अच्छे पोशाक में झुकने से आस -पास के लोग क्या कहेंगे? कहीं अच्छी पोशाक में झुकने के कारण हम समाज में अपना दर्जा न खो दें।

प्रश्न 3. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया ?

उत्तर: लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया क्योंकि वह फटे -पुराने कपड़े पहने फुटपाथ पर बैठी थी। लेखक एक अच्छी पोशाक पहने हुए थे, उन्हें समाज में बनाई अपनी प्रतिष्ठा के बिगड़ जाने का  डर था इसलिए उस गरीब और उपेक्षित स्त्री से चाहते हुए भी उसके रोने का कारण नहीं पूछ पाये |

प्रश्न 4. भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?

उत्तर: भगवाना के पास डेढ़ बीघा जमीन पर सब्जियां और ख़रबूज़े उगाकर बेचता था। इस प्रकार कछियारी करके अपने परिवार का निर्वाह करता था। कभी-कभी वह स्वयं दुकानदारी करता था तो कभी दुकान पर उसकी माँ बैठती थी।

प्रश्न 5. लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?

उत्तर: लडके की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने चल पड़ी क्योंकि लड़के के इलाज में बुढ़िया की सारी जमा पूँजी ख़त्म हो गई थी। जो कुछ बचा था वह लड़के के अंतिम संस्कार में खर्च हो गया। उसके बेटे के छोटे-छोटे बच्चे थे वह बहुत भूखे थे। उसकी बहू की तबीयत बहुत खराब थी। वह बुखार से पीड़ित थी । अब बच्चों की भूख मिटाने की जिम्मेदारी बुढ़िया पर आ गई थी इस लिए वह अपने बेटे भगवाना द्वारा ही तोडकर लाए हुए खरबूजे बेचने चल पड़ी ताकि कुछ कमा कर ला सके ।

प्रश्न 6. बुढ़िया के दुःख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?

उत्तर: बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद इसलिए आई कि उस संभ्रांत महिला के पुत्र की मृत्यु पिछले साल ही हुई थी। पुत्र के शोक में वह महिला ढ़ाई महीने(Two and half month) बिस्तर से उठ नहीं पाई थी। उसकी देखभाल के लिए  दो-दो डॉक्टर हरदम लगे रहते थ॥ सिर पर बरफ़ रखी जाती थी । शहर भर के लोगों में उस महिला के दुःख की चर्चा थी, जबकि यहाँ बाजार में सभी उस बुढ़िया के बारे तरह-तरह  में बातें  कर रहे थे। अमीर होने के कारण ।एक महिला के पास अपना दुख प्रकट करने के समय और सुविधा थी  पर, दूसरी ओर एक बुढ़िया जो बहुत ही गरीब थी उसके पास  दुख प्रकट करने के लिए न तो समय था और न हीं  सुविधा थी।

III.() निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60) शब्दों में लिखिए:

प्रश्न 1. बाज़ार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में तरह- तरह की बातें कर रहे थे। कोई कह रहा था कि बेटे की मृत्यु के तुरंत बाद बुढ़िया को बाहर निकलना ही नहीं चाहिए था। कोई कह रहा था कि सूतक की स्थिति में वह दूसरे का धर्म भ्रष्ट कर सकती थी इसलिए उसे नहीं निकलना चाहिए था। किसी ने कहा, कि ऐसे लोगों के लिए रिश्तों नातों की कोई अहमियत नहीं होती। वे तो केवल रोटी को अहमियत देते हैं। कोई उसे बेशर्म कह रहे थे और कई लोग तो उस पर थूक कर जा रहे थे। अधिकांश लोग उस स्त्री को नफरत की नजर से देख रहे थे। कोई भी उसकी दुविधा को नहीं समझ रहा था।

प्रश्न 2. पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?

उत्तर: पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को यही पता चला कि इसका बेटा ही एकमात्र घर में काम करने वाला था। वह कछियारी ( vegetable farming)करके अपने माँ के साथ बाजार में फल व सब्जी बेचता था। एक दिन पहले साँप के काटने से बुढ़िया के इकलौते जवान बेटे की मृत्यु हो गई । काफ़ी झाड़-फूंक करने के बाद भी वह बच न सका था । उनकी मृत्यु के अगले दिन, बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे और बहू बुखार से तड़प रही थी। जब किसी व्यक्ति ने बुढ़िया को पैसे उधार (loan) नहीं दिए तो पुत्र की मृत्यु के शोक को हृदय में दबाए बुढ़िया पुत्र के द्वारा ही तोड़े गए खरबूजों को बेचने  के लिये बाजार में आई थी।

प्रश्न 3. लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?

उत्तर: लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया ने जो उचित लगा, जो उसकी समझ में आया किया। उसने झटपट ओझा को बुलाया। ओझा झाड़-फूँक शुरु किया। घर में नागदेव की पूजा भी करवाई। पूजा के लिये दान दक्षिणा चाहिए ।  बुढ़िया ने घर में जो कुछ आटा और अनाज था, वह दान  दे दिया। परंतु उसका बेटा बच नही पाया।

प्रश्न 4. लेखक ने बुढ़िया के दुःख का अंदाजा कैसे लगाया ?

उत्तर:  लेखक को बुढ़िया के दुख का अंदाजा उसके पड़ोस में रहने वाली एक संभ्रांत महिला के पुत्र के शोक से हुआ। लगातार ढाई महीने तक दो डाक्टरों की निगरानी में रहने के बाद भी वह महिला हर पंद्रह मिनट में मूर्छित हो जाती थी। वह बिस्तर से उठ नहीं पाती थी और लगातार आँसू बहाती रहती थी। पुत्र के निधन का दुख अर्थ-भेद के आधार पर कम-ज्यादा नहीं होता। परंतु समाज ने निर्धन बुढ़िया को शोक मनाने का भी अधिकार न दिया था।

प्रश्न 5. इस पाठ का शीर्षकदुःख का अधिकारकहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस पाठ में मुख्य पात्र एक बुढ़िया है जो पुत्र शोक से पीड़ित है। उस बुढ़िया की तुलना एक अन्य संभ्रांत घर की स्त्री से की गई है जिसने ऐसा ही दर्द झेला था। लेखक इस तथ्य को महसूस करते हैं कि पुत्र शोक संपन्न अथवा विपन्न दोनों के लिए समान ही होता है । संभ्रांत परिवार की स्त्री ढ़ाई महीने तक पुत्र की मृत्यु का शोक से उबर न सकी थी। उसके शोक मनाने की चर्चा कई लोग करते थे। लेकिन बुढ़िया की गरीबी ने उसे पुत्र का शोक मनाने का भी मौका नहीं दिया। बुढ़िया को मजबूरी में दूसरे ही दिन खरबूजे बेचने के लिए घर से बाहर निकलना पड़ा। ऐसे में लोग उसे नफरत की नजर से ही देख रहे थे। कुछ लोग उस बूढ़ी स्त्री के लिए अपमान जनक शब्द भी बोल रहे थे । किसी को उसके प्रति सहानुभूति न थी ।जहाँ संभ्रांत स्त्री को संपन्नता के कारण शोक मनाने का पूरा अधिकार मिला ,वहीं दूसरी ओर  एक गरीब स्त्री इस अधिकार से वंचित रह गई। इसलिए इस पाठ का शीर्षक बिलकुल सार्थक है।

IV.() निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:

प्रश्न 1. जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देती उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।

उत्तर: यह कहानी समाज में फैले अंधविश्वासों और अमीर- गरीब के भेदभाव को उजागर करती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक अमीरों के अमानवीय व्यवहार और गरीबों की विवशता को दर्शाता है। लेखक के अनुसार जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देती, उसी प्रकार खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें अपने से नीचे हैसियत वालों से एकदम मिलने जुलने नहीं देती। उस समय यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन कर हमारे मानवीय व्यवहार प्रकट से  रोक देती है।

प्रश्न 2. इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।

उत्तर: जब बुढ़िया अपने पुत्र की मृत्यु के दूसरे दिन ही खरबूज़े बेचने फ़ुटपाथ पर बैठ गई किंतु उस समय भी शोक के कारण घुटनों में सिर दबाए रो रही थी तब किसी ने उसकी मज़बूरी नही जाननी चाही और एक आदमी कान में दियासलाई की तीली से खुजाते हुए यह वाक्य बोला कि इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है। गरीबों को दो वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से नसीब हो पाती है, इसलिए अपनी भूख मिटाने के लिए उसे रोज पैसा कमाने जाना पड़ता है, चाहे उसके घर में कितना मुसीबत क्यों न आ पड़े। लेकिन हमारे  समाज में प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक परंपराओं और रूढ़ियों का पालन करना पड़ता है। ऐसे में  गरीबों की मजबूरी को ना समझ कर समाज के कुछ लोग इस तरह के व्यंग्य करते है, और उनकी मजबूरी को उनका लालच सिद्ध करने की कोशिश करते है और ऐसे कटु वाक्य  कहने में भी लोग संकोच नहीं करते ।

प्रश्न 3. शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और …… दुखी होने का भी एक अधिकार होता है।

उत्तर: लेखक के अनुसार संभ्रांत महिला जो धनी थी उसके पास अपने शोक को प्रकट करने के लिए बहुत समय  और सहूलियत थी। लेकिन वहीं दूसरी ओर गरीब बुढ़िया जिसको अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए, अपने बेटे की मृत्यु होने के बाद दूसरे दिन ही काम करने जाना पड़ता है। यह सब यह दर्शाता है, कि गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए, क्योंकि दुःख के समय में भी इतना धन होना चाहिए, कि जिससे  कोई व्यक्ति अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण कर पाए। गरीब को तो रोटी कमाने की उलझन ही उसे दुख मनाने के अधिकार से वंचित कर देती है।

भाषा-अध्ययन

1.निम्‍नांकित शब्द समूह को पढ़ो और समझो--

(क) कङ्घा, पतङ्ग, चञ्चल, ठण्डा, सम्बन्ध

(ख) कंघा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंधा

(ग) अक्षुण्ण, सम्मिलित, दुअन्नी, चवन्नी, अन्न

(घ) संशय, संसद, संरचना, संवाद, संहार।

(ङ) अँधेरा, बाँट, मुँह, ईट, महिलाएँ, में, मैं

ध्यान दो कि ङ. ञ् ण् न् और म् ये पाँचों पंचमाक्षर कहलाते हैं। इनके लिखने की विधियाँ तुमने ऊपर देखीं इसी रूप में या अनुस्वार के रूप में। इन्हें दोनों में से किसी भी तरीके से लिखा जा सकता है और दोनों ही शुद्ध हैं। हाँ, एक पंचमाक्षर जब दो बार आए तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा; जैसे- अम्मा, अन्न आदि। इसी प्रकार इनके बाद यदि अंतस्थ य. र. ल, व और ऊष्म श, ष, स. ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा, परंतु उसका उच्चारण पंचम वर्णों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है; जैसे- संशय, संरचना में 'न्', संवाद में 'म्' और संहार में 'ङ्' ।

(ं) यह चिह्न है अनुस्वार का और (ँ) यह चिह्न है अनुनासिक का। इन्हें क्रमशः बिंदु और चंद्र-बिंदु भी कहते हैं। दोनों के प्रयोग और उच्चारण में अंतर है। अनुस्वार का प्रयोग व्यंजन के साथ होता है अनुनासिक का स्वर के साथ।

नीचे रंगीन अक्षर पंचमाक्षर हैं।

क ख ग घ
च छ ज झ
ट ठ ड ढ (ड़, ढ़)
त थ द ध
प फ ब भ
य र ल व
श ष स ह 
क्ष त्र ज्ञ

ङ. ञ् ण् न् और म् अनुस्वार व्यंजनों के साथ प्रयोग किए जाते है। नीचे दी पंक्तियों में इनका प्रयोग समझें।

(क) कङ्घा, पतङ्ग, चञ्चल, ठण्डा, सम्बन्ध

(ख) कंघा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंधा

कङ्घा --कंघा, पतङ्ग= पतंग, चञ्चल= चंचल ठण्डा=ठंडा, , सम्बन्ध= संबंध दोनों तरीके शुद्ध और मान्य हैं ।

जब कोई पंचमाक्षर एक साथ दो बार आता है तो वह अनुस्वार में नहीं बदलते उदाहरण= अक्षुण्ण, सम्मिलित, दुअन्‍नी , चवन्‍नी , अन्‍न

यदि अंतस्थ य. र. ल, व और ऊष्म श, ष, स. ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा, परंतु उसका उच्चारण पंचम वर्णों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है; जैसे- संशय, संरचना में 'न्', संवाद में 'म्' और संहार में 'ङ्' ।

( ँ ) चंद्रबिंदु वाले शब्द अनुनासिक हैं इनका उच्चरण अलग होता है और नाक से बोलने की प्रतीति होती है अनुनासिक का स्वर के साथ प्रयोग किए जाते है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए

उत्तर:

शब्दपर्याय
ईमानविश्वास, सच्चाई ,भरोसा
बदनकाया, शरीर , तन
अंदाजाअनुमान, आंकलन
बेचैनीपरेशानी, व्याकुलता, अकुलाहट ,अधीरता
गमदुःख, शोक
दर्जाश्रेणी, पदवी, दर्जा, स्तर, स्थिति
जमीनपृथ्वी, धरती, वसुधा ,भूमि
जमानायुग, काल,समय
बरकतइजाफा, वृद्धि, बढ़त , प्रगति

प्रश्न 3. निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्मों को छाँटकर लिखिए

उदाहरण: बेटा-बेटी।

उत्तर-
शब्द युग्म
पोता- पोती          खसम-लुगाई

दुअन्नी-चवन्नी        झड़ना-फूंकना     

धर्म-ईमान           दान-दक्षिणा         

 छन्नी- ककना         चूनी-भूसी

पास-पड़ोस           फफक-फफककर

प्रश्न 4. पाठ के संदर्भ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यांशों की व्याख्या कीजिए:

बंद दरवाजे खोल देना, निर्वाह करना, भूख से बिलबिलाना, कोई चारा होना, शोक से द्रवित हो जाना।

उत्तर: बंद दरवाजे खोल देना– अवसर मिलना - अच्छे व्यवहार को देखकर लोग प्रभावित हो जाते हैं। इस प्रभाव में आकर वे उस व्यक्ति के लिए सभी बंद दरवाजे खोल देते हैं।

निर्वाह करना– गुजारा करना -  गरीब लोगों का जीवन निर्वाह बहुत मुश्किल से होता है।


भूख से बिलबिलाना- भूख के कारण तड़पना-- खाना न मिलने के कारण भगवाना के बच्चे भूख से बिलबिला उठे।

कोई चारा होना: कोई उपाय न होना:- लंबे समय तक काम न मिलने के कारण मोहन के घर में अनाज का एक भी दाना न बचा । घर का सामान बेचने के अलावा  उनके सामने कोई चारा नहीं रह गया। ।

शोक से द्रवित होना– दुःख देखकर करुणा से पिघल जाना- भगवाना की माँ के दुःख  को देखकर लेखक  शोक से द्रवित हो गया ।

प्रश्न 5. निम्नलिखित शब्द-युग्मों और शब्द समूहों को अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
(
) छन्नी-ककना, अढाई-मास, पास-पड़ोस, दुअन्नी-चवन्नी, मुंह-अंधेरे, झाड़ना -फूंकना
(
) फफक-फफककर, बिलख-बिलखकर, तड़प-तड़पकर, लिपट-लिपटकर

उत्तर: (क) १. छन्नी-ककना- भगवाना को बचाने के लिए गरीब माँ ने अपने छन्नी-ककना तक बेच दिए।
२. अढाई-मास- हमारी परीक्षा अढाई-मास बाद शुरू होंगी ।
३. पास-पड़ोस- हमारे पास-पड़ोस के लोग बहुत ही अच्छे स्वभाव के हैं ।
४. दुअन्नी-चवन्नी- अब दुअन्नी-चवन्नी का जमाना नहीं रहा ।
५. मुंह-अंधेरे- वह मुंह-अंधेरे ही उठ जाता है।
६. झाड़-फूंक – साँप काटने पर झाड़-फूंक करने में समय बरबाद न कर किसी योग्य डॉक्टर के पास जाना चाहिए ।

(ख) १. फफक-फफककर- भूख के मारे भगवाना के बच्चे फफक-फफककर रो रहे थे।
२. बिलख-बिलखकर: चोट लगते ही बच्चा बिलख-बिलखकर रोने लगा।
३. तड़प-तड़पकर : बंगाल में अकाल के दौरान सैंकड़ों लोग भूख से तड़प-तड़पकर मर गए।
४. लिपट-लिपटकर : पति के मृत शरीर को देख स्त्री उससे लिपट-लिपटकर रोने लगी ।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान से पढ़िए और इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए-
(क) 1. लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे।
2. उसके लिए तो बजाज की दुकान से कपड़ा लाना ही होगा।
3. चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
(ख) 1. अरे जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी ही बरकरत देता है।
2, भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।
उत्तर-
(क) 1. मज़दूर सुबह उठते ही शहर की ओर चल पड़े।
2. इस सप्ताह बच्चे की वर्दी लानी ही होगी।
3. चाहे इलाज के लिए खेती-बाड़ी ही क्यों न बेचना पड़े।
(ख) 1. अरे जैसी मेहनत करोगे वैसे ही परिणाम पाओगे।
2. उसका भाग्य जो एक बार बदला तो फ़िर उसने पलट कर पीछे न देखा ।

विराम चिह्न ‘Punctuation

 विराम चिह्न /Punctuation  छोड़ो मत मारो   मोटे वाक्यों को आप निम्न में से किसी एक प्रकार से पढ़ सकते हैं।  "छोड़ो ,मत मारो  ।"  &quo...